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विषय ८ : पवित्र आत्मा

[8-11] आप के जीवन को पवित्र आत्मा से भरपूर रखना (इफिसियों ५:६-१८)

आप के जीवन को पवित्र आत्मा से भरपूर रखना
(इफिसियों ५:६-१८)
“कोई तुम्हें व्यर्थ बातों से धोखा न दे, क्योंकि इन ही कामों के कारण परमेश्‍वर का क्रोध आज्ञा न माननेवालों पर भड़कता है। इसलिये तुम उनके सहभागी न हो। क्योंकि तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, अत: ज्योति की सन्तान के समान चलो (क्योंकि ज्योति का फल सब प्रकार की भलाई, और धार्मिकता, और सत्य है), और यह परखो कि प्रभु को क्या भाता है। अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन् उन पर उलाहना दो। क्योंकि उनके गुप्‍त कामों की चर्चा भी लज्जा की बात है। पर जितने कामों पर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है वह ज्योति है। इस कारण वह कहता है, “हे सोनेवाले, जाग और मुर्दों में से जी उठ; तो मसीह की ज्योति तुझ पर चमकेगी।” इसलिये ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो : निर्बुद्धियों के समान नहीं पर बुद्धिमानों के समान चलो। अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो कि प्रभु की इच्छा क्या है। दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इससे लुचपन होता है, पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ”।
 

हमें हमारे जीवन को पवित्र आत्मा से भरपूर रखने के लिए क्या करना चाहिए?
हमें खुदा का त्याग करना है, क्रूस को उठाना है, और हमारे बुरे विचारों का इंकार करना है, खुद को सुसमाचार के प्रचार के लिए समर्पित करना है।
 
“पवित्र आत्मा से भरे हुए जीवन” को बनाए रखने के लिए, हमें खुद को सुसमाचार प्रचार करने के लिए समर्पित करना चाहिए। पवित्र आत्मा से भरपूर जीवन जीने के लिए, हमें पहले पवित्र आत्मा को हमारे हृदय में रखनेवाले आशीष को पाना है। पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाने के लिए हमारे अन्दर दर्शाए गए विश्वास होना चाहिए, जैसे की, हमें परमेश्वर ने दिए पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करना चाहिए। यह विश्वास होने के द्वारा, हम उस आशीष को पाएंगे जिससे पवित्र आत्मा हमारे अन्दर रहेगा।
क्या जिन्होंने पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाया है वे पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन चाहते है? अवश्य वे चाहते है। लेकिन ऐसा क्यों है की उनमे से कुछ लोग ऐसा जीवन नहीं जी पाते? कारण यह है की उनकी खुद की समस्या परमेश्वर के वचन के ऊपर हावी हो जाति है, मतलब यह है की, वे परमेश्वर के साथ नहीं चल सकते। पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रखने के लिए, हमें परमेश्वर के वचनों को सीखना चाहिए और विश्वास करना चाहिए। सबसे पहले, आइए बाइबल में देखे की हमारे पास किस प्रकार का जीवन और विश्वास होना चाहिए।
 


कुछ लोग पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन नहीं जी पाते उसका कारण क्या है?

 
प्रथम, हम कह सकते है की ऐसा इसलिए है क्योंकि वे खुद का इनकार नहीं करते। बाइबल कहती है की जो लोग अपना इनकार करते है वे प्रभु के साथ चल सकते है। पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन खुद की प्रार्थनाओं से नहीं प्राप्त किया जा सकता, खुद का त्याग करने के लिए सबके अन्दर पवित्र आत्मा के अंतर्निवास पर विश्वास होना आवश्यक है। यहाँ तक की जिन्होंने पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाया है, उनके लिए भी कभी कभी परमेश्वर के राज्य के लिए खुद का इनकार करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए, पवित्र आत्मा की भरपूरी के जीवन के लिए, हमें पाबी और आत्मा के सुसमाचार की सेवा करनी चाहिए। केवल तभी व्यक्ति खुद का इनकार कर सकता है और धार्मिकता के सेवक के रोप में जीवन जी सकता है।
मत्ती १६:२४-२६ कहता है, “तब यीशु ने अपने चेलों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा। यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?”
कुछ लोग पवित्र आत्मा की भारपूरि का जीवन नहीं जी पाते उसका कारण यह है की वे देह की वासनाओं का इनकार नहीं कर पाते। यहाँ तक की जो लोग पवित्र आत्मा का अंतरनिवास पा चुके है वे केवल तभी पवित्र आत्मा का अनुसरण कर सकते है जब वे अपनी देह की वासनाओं का इनकार करे। प्रभु का अनुसरण करने के लिए हमें जीवन की सारी अभिलाषाओं को छोड़ना होगा। प्रभु कहते है, “अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले”।
सांसारिक मन के होना मृत्यु के समान है, लेकिन आत्मिक मन के होना जीवन और शान्ति है। जो लोग आत्मा में चलना चाहते है उन्हें देह का जीवन छोड़ना चाहिए। केव वही लोग पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रख सकते है जो यह बलिदान कर सकते है। यह पवित्र आत्मा की भरपूरी का सत्य है।
आप किसका अनुसरण करना चाहते है, प्रभु का या संसार का? आपके चुनाव के हिसाब से आपको पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन या वासना से भरा जीवन मिलेगा। यदि आप सच में पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहते है तो, चुनाव आपका है। परमेश्वर ने हमें सारे पापों से बचाया और हमें पवित्र आत्मा के अंतर्निवास का उपहार दिया। लेकिन यह आपके ऊपर निर्भर करता है की क्या आप पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहते है। दुसरे शब्दों में, पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित नहीं किया है। पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन हम लोगों पर निर्भर करता है जो पानी और आत्मा के खुबसूरत सुसमाचार पर विश्वास करते है।
 


पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीने के लिए आपकी इच्छा होनी चाहिए

 
यदि आप पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहते है तो परमेश्वर आपको अनुमति देगा। वह आपकी मदद करेगा और आपको आशीष देगा। लेकिन यदि आप यह नहीं चाहते, तो आप पवित्र आत्मा से भरपूर जीवन गवाँ देंगे।
आप अपनी इच्छा से नहीं लेकिन केवल पानी और आत्मा के सुसमाचार पे विश्वास करके ही पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पा सकते है। लेकिन पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रखना आपकी इच्छा पर निर्भर करता है।
इसलिए, यदि आप पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहते है, तो आपको खुद की इच्छा को जांचना चाहिए और परमेश्वर की मदद मांगनी चाहिए। यदि हम वास्तव में पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन चाहते है, तो परमेश्वर हमें आशीष देगा और हमारी इच्छा को पूरा करेगा। लेकिन हमारा उद्देश्य पाने के लिए, हमें देह की वासनाओं का नकार करना होगा।
दूसरा, पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीने के लिए, हमें खुद के क्रूस को उठाना होगा। हमें कहतीं परिस्थिति में भी परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलना होगा। पवित्र आत्मा की भरपूरी का धर्मी जीवन जीने का यही मतलब है।
और तीसरा, प्रभु कहता है, “क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा। यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” इसका मतलब है प्रभु का अनुसरण करना हमारे जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। वास्तव में, यदि हम उसका अनुसरण करते है, तो हमारी आत्मा और शरीर समृध्ध अहोते है, लेकिन यदि हम उसका अनुसरण नहीं करते और अपने खुद से जीवन जीना पसंद करते है, तो हमारी आत्मा और शरीर नाश होंगे।
क्यों हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन नहीं जी पाते? उसका कारण यही है की हम अपने खुद के विचारों को नकारते नहीं है जैसे की देह की वासनाएं। जब हम यीशु का अनुसरण करते है, तब आत्मा हमारे अंदरूनी व्यक्ति को मजबूत बनाता है इसलिए वह हमें बड़े आग्रह के साथ अगुवाई करता है।
इफिसियों ५:११-१३ में लिखा है, “अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी न हो, वरन् उन पर उलाहना दो। क्योंकि उनके गुप्‍त कामों की चर्चा भी लज्जा की बात है। पर जितने कामों पर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है वह ज्योति है”। मसीहियों को अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी नहीं होना चाहिए। लेकिन जब हम खुद को अन्धकार के निष्फल कामों में सहभागी बनाते है, तब परमेश्वर हमें उसे उजागर करने के लिए कहता है। हमें अपने अन्धकार के कामों का तिरस्कार करना है, क्यों की गुप्त में किए हुए उस कार्यों के बारे में बोलना भी लज्जा की बात है। लेकिन जिन सारी चीजों को उजागर किया गया है वह प्रकाश के द्वारा किया गया है।
इन सभी लज्जा की बातों को उजागर करने और बात करने में कौन सक्षम है? यदि अन्य, आपके भाई या बहन और परमेश्वर के सेवक उन्हें उजागर नहीं कर सकते हैं, तो आपको उन्हें स्वयं ही उजागर करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि सभी चीजें जो उजागर होती हैं, उन्हें प्रकाश द्वारा प्रकट किया जाता है। इसलिए हमें अपने बुरे कामों को सही नहीं मानना चाहिए, और पवित्र आत्मा के नेतृत्व में अपने या अपने अगुवे के द्वारा अंधेरे के निष्फल कार्यों को उजागर करना चाहिए।
इस संसार में, वे सभी चीजें जो समाप्त हो जाती हैं, जैसे ही उन्हें झिड़क दिया जाता है लेकिन परमेश्वर के संसार में, सभी उजागर चीजों को प्रकाश द्वारा प्रकट किया जाता है, जो कुछ भी प्रकट होता है वह प्रकाश है। क्योंकि हम परिपूर्णता से बहुत दूर हैं, इसलिए हम इस दुनिया में अनजाने में कई पाप करते हैं। हालाँकि, जब हम परमेश्वर के वचनों को स्वयं पर प्रकाश डालते हैं, तो हम कुछ पापों के प्रति सचेत हो जाते हैं और उन्हें स्वीकार करने में सक्षम हो जाते हैं। और इसलिए हम परमेश्वर को बहुत धन्यवाद देते है।
क्योंकि यीशु ने हमारे सारे पापों और अधर्मों को दूर कर दिया, और जब उसने यरदन में बपतिस्मा लिया तब परमेश्वर की सारी धार्मिकता पूरी हो गई, अब हम परमेश्वर की धार्मिकता से प्रकाश के द्वारा प्रगट होने के लिए सक्षम है। मनुष्यों ने जो अनगिनत पाप किए हैं उन्हें जब यूहन्ना ने यीशु को बपतिस्मा दिया तब उसके ऊपर डाल दिया गया था। वह परमेश्वर का मेम्ना है जिसने दुनिया के पापों को उठा लिया, क्रूस पर न्याय उठाने के लिए मर गया और पुनरुत्थित हुआ। यीशु ने मनुष्यजाति के सारे पापों को माफ कर दिया और जब उन्होंने कहा, “पूरा हुआ” (यूहना १९:३०), तब सारी मनुष्यजाति बचाई गई। यीशु ने जो भी किया उस पर हमारे विश्वास करने से हम पवित्र हुए है। क्योंकि हमारे पापों को माफ़ कर दिया गया है, इसलिए हम फिर से प्रकाश में आ पाए है और धार्मिकता से परमेश्वर का अनुसरण कर सकते है।
 

परमेश्वर ने हमें अवसर को बहुमूल्य जानने के लिए कहा है
 
पौलुस कहता है की यदि हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहते है, तो हमें अवसर को बहुमूल्य जानना पडेगा। इफिसियों ५:१६-१७ में लिखा है, “अवसर को बहुमूल्य समझो, क्योंकि दिन बुरे है। इस कारण निर्बुध्ध न हो, पर ध्यान से समझो को प्रभु की इच्छा क्या है”। यदि हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहते है, तो हमें अवसर को बहुमूल्य समझना पडेगा और निर्बुध्ध नहीं बनना है। हमें प्रभु की इच्छा क्या है उसे जानना चाहिए ओर उसे करना चाहिए। हमें उचित चीजों का चुनाव करना चाहिए: हमारे देह की इच्छा की परमेश्वर की भक्ति।
नया जन्म पाने के बाद, पवित्र आत्मा हमारे अन्दर बसता है। यदि हम पवित्र आत्मा अंतर्निवास पाते है, तो इसका मतलब है की हमारा स्वामी प्रभु है और वह हमारा राजा है। केवल वाही हमारा उद्धारकर्ता है और हमें उसे पूरी तरह से अपने परमेश्वर के रूप में स्वीकार करना चाहिए। वह स्वामी है जिसने हमें बनाया है, मेरे सारे पाप माफ़ किए है और मुझे आशीषित किया है। और वह मेरा राजा है जो मेरे जीवन और मृत्यु, आशीष और शाप पर अधिकार रखता है। हमें स्वीकार करना चाहिए की प्रभु खुद ही स्वामी और परमेश्वर है, जिससे हम अपने जीवन भर उसका अनुसरण कर सके।
आइए देखते है की फिलिप्पियों २:५-११ में क्या लिखा है। “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो; जिसने परमेश्‍वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्‍वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्‍वर ने उसको अति महान् भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है, कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे हैं, वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें; और परमेश्‍वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकर कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है”।
पौलुस कहता है, “वैसा तुम्हारा भी स्वभाव हो”। उसने कहा की यह यीशु का स्वाभाव था। पौलुस “स्वभाव” के बारे में बात कर रहा ही वह यीशु का है, जो सृष्टिकर्ता परमेश्वर है और जो अपने पिता की इच्छा के अनुसार अपने लोगों को बचाने के लिए इस संसार में आया। प्रभु इस जगत में आए और उन्होंने ने यूहन्ना के द्वारा अपने बपतिस्मा से जगत के सारे पापों को अपने ऊपर उठा लिया। और जब वह क्रूस पर मरे, तब जगत के साथ उसके साथ चले गए। वह तीसरे दिन पुनरुत्थित हुए और हमारे उद्धारकर्ता बने।
यीशु मसीह, सृष्टिकर्ता, इस जगत में हमें बचाने के लिए आये। उसने अपने बपतिस्मा और क्रूस पर अपने लहू के द्वारा अपने प्रेम को दिखाया। सारी सृष्टि को उसके सामने घुटनों पर गिरना चाहिए और सृष्टिकर्ता होने के बावजूद उसने खुद को इतना नम्र किया और हमें उसके प्रेम के द्वारा माफ़ी दी इसके लिए हमें उसका धन्यवाद करना चाहिए। इसलिए सारी सृष्टि को यह अंगीकार करना चाहिए की वह उनका सच्चा उद्धारकर्ता है। उसने हमें यह स्वीकार करवाया की वह केवल सारी सृष्टि का प्रभु नहीं है लेकिन हमारी सारी धार्मिकता का भी प्रभु है।
हम, जो परमेश्वर पे विश्वास करते है और जिनके अन्दर पवित्र आत्मा का अंतर्निवास है, उन्हें विश्वास करना चाहिए की ‘परमेश्वर मेरा सच्चा स्वामी है’ और हमारे दिल में यीशु मसीह का प्रेम होना चाहिए। हमें विश्वास होना चाहिए की हमारा स्वामी हम खुद नहीं है लेकिन यीशु मसीह है, जिसने हमें बनाया और हमें हमारे सारे पापों से बचाया। और हमें यह भी विश्वास होना चाहिए की वह स्वामी है जिसने हमें आशीषित नया जीवन जीने में सक्षम बनाया और हमारे लिए सारी चीजे तैयार की।
कई ऐसे लोग है जो नया जन्म पाने के बाद अपने स्वामी को बदलना नहीं चाहते। कई ऐसे लोग है जिनके अन्दर पवित्र आत्मा का अंतर्निवास है लेकिन वह खुद को अपना स्वामी मानते है। पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन परमेश्वर को अनुसरण करने का जीवन है। इस तरह का जीवन एक ही दिन में नहीं पा सकते लेकिन ये केवल तभी सम्भव है जब हम विश्वास करते है की यीशु हमारे जीवन का स्वामी है और उसने हमें और ब्रह्मांड के सारी चीजो की सृष्टि की है। हमें हमारे प्रभु, स्वामी और परमेश्वर जिसने हमें हमारे सारे पापों से बचाया है और हमें स्वर्ग के राज्य में अनन्त जीवन दिया है उसकी सेवा करने के लिए विश्वास करना जरुरी है।
हमें हमारे मन में फलो को लाना है। कई लोग खुद को अपना स्वामी मानकर अपना जीवन जीते है। वह खुद के ऊपर अपने अधिकार की रक्षा करते है। लेकिन अब समय आ गया है की हम हमारे स्वामी को बदले। अब हम पेमेश्वर को पहिचानने वाले लोग बन गए है, और इसलिए हमारा मुख स्वामी प्रभु है।
हम सभी के दिलों में पाप है और हम अपने अपराधो के लिए नरक में डाले जाने चाहिए। लेकिन हमने पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास की वहज से परमेश्वर को पाया। वह हमसे इतना प्यार करता है की वह खुद इस जगत में आया, यूहन्ना के द्वारा बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे सारे पापों को उठा लिया, और हमारा सच्चा उद्धारकर्ता बनने के लिए वह क्रूस पर मर गया। और परमेश्वर पर हमारे विश्वास की वजह से, हम अपने सारे पापों से छूटकारा पा चुके है। दुसरे शब्दों में, हमने पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाया है।
बाइबल कहती है, “यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं” (रोमियों ८:९)। जब हम उसका छूटकारा प्राप्त करते है, जो पवित्र आत्मा का अंतर्निवास है, तब हम परमेश्वर की संतान बनते है। पवित्र आत्मा हमारे लिए परमेश्वर है और हमें पवित्र आत्मा की अगुवाई में परमेश्वर की धार्मिकता में चलना है। ऐसा जीवन जीने के लिए, हमें खुद का स्वामित्व छोड़ना होगा। यीशु से मिलाने और उससे छूटकारा पाने के बाद, हमें केवल उसे हमारा एकलौता स्वामी बनाना चाहिए।
 

हमारे हृदय में यीशु के लिए सिंहासन होना चाहिए
 
यदि हम खुद को अपना स्वामी मानते है तो हम प्रभु का अनुसरण नहीं कर सकते। जब परमेश्वर हमें उसकी सेवा करने का आदेश देते है, तब हम अगर खुद को अपना स्वामी नहीं मानते तो बिना देर किए “हाँ” कहते है। नहीं तो, ऍम कह सकते है, “मुझे आपके लिए यह क्यों करना चाहिए?” जो इंसान खुद को अपना स्वामी मानता है वह परमेश्वर की कही बात को करने से इनकार करता है, और सोचता है, “जो वह मुझसे करवाना चाहते है उसके बारे में उसे मुझे बिनती करनी चाहिए”। ऐसे लोगों के लिए परमेश्वर का आदेश केवल कुछ मामूली शब्दों के जैसे है।
हालाँकि, पवित्र आत्मा से भरने के लिए, हमें उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिए। हम गाय की तरह नहीं बन सकते जिसे कतल करने के लिए घसीट कर लेजाया जाता है, लेकिन हमें अपनी इच्छासे परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए। हमें अपने परमेश्वर, हमारे उद्धारकर्ता का अनुसरण करना चाहिए, जो हमें धार्मिकता के मार्ग पर चलाता है। परमेश्वर हमारा प्रभु है जिसने हमें उद्धार की आशीष दी है। यदि हम उसकी अपने स्वामी की तरह सेवा करे और उसकी आज्ञा का पालन करे, तो हम पवित्र आत्मा से भर सकते है। यदि आप और आपके परिवार के सदस्य खुद को यीशु के हाथ में सोंप दे और उसे सबसे पहला और ऊँचा स्थान दे, तो आपके जीवनों में अनुग्रह और आशीष होगी।
आपने शायद एक पिक्चर देखा होगा जिसमे एक व्यक्ति भारी तूफ़ान में भी अपनी नाव चला रहा है और यीशु उसके पीछे खड़े है। जब हम अपने जीवन के संघर्षो से गुजरते हुए प्रभु का कार्य करते है, तब वह प्रभु यीशु होता है जो हमारी अगुवाई करता है और हमारा हाथ थामता है। यह सर्वसामर्थी परमेश्वर है जो हमारे जीवनों पर नज़र रखता है। उसने हमें बचाया है। वह हमें शैतान से बचाता है, हमारी अगुवाई करता है और हमारे जीवन पर प्रभुता करता है।
क्योंकि वह हमारा स्वामी है, इसलिए वह हमारा निरिक्षण करता है और हमें आशीष देता है। लेकिन यदि हम उसे अपना स्वामी नहीं मानते, तो वह अपनी भूमिका नहीं निभाता। जैसे की वह व्यक्तित्व का परमेश्वर है, वह हमें उसकी इच्छा को पूरी करने के लिए दबाव नहीं करता। भले ही वह सर्वसामर्थी परमेश्वर है, लेकिन वह तब तक कुछ नहीं करता जब तक हम अपनी इच्छा से उसे हमारे स्वामी के लिए स्वीकार करे और उससे मदद मांगे। 
 

सारी चिंता उस पर डालदो
 
सारा बोझ उस पर डाल दो जिससे वह अपनी प्रभुता हमारे ऊपर परिपूर्ण करे। उसकी सेवा करे और कबूल करे की वह हमारा स्वामी है। हालाँकि हम सम्पूर्णता से बहोत दूर है, इसलिए हमें अपना बोझ उस पर डाल देना चाहिए और सारी जिम्मेदारी उसे दे देनी चाहिए। एक बार जब हम अपने परिवार, हमारा दैनिक जीवन और सबकुछ उस के ऊपर डाल देते है, तब हम परमेश्वर की ओर से बुध्धि को पाते है और हम उसकी इच्छा के अनुसार जीनेवाले बन जाते है, परमेश्वर ने हमें जो विशवास और सामर्थ्य हमें दिया है उससे हम सारी समस्या को सुलझा सकते है।
हमारी समस्या तब हमारे स्वामी की समस्या बन जाति है, जिसका मतलब है की यदि हम सामर्थी परमेश्वर यीशु का अनुसरण करते है, तो वह हमारी जिम्मेदारी उठाते है। हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीने में सक्षम बनते है और हमारे अन्दर शान्ति का आनन्द उठा सकते है। विश्वासयोग्य मसीही होने के नाते, हमें परमेश्वर के आग घुटने टेक देने चाहिए, अंगीकार करना चाहिए और हमारे स्वामी की तरह उसकी सेवा करनी चाहिए।
आइए देखते है की फिलिप्पियों ३:३ में पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीने के लिए हमारे अन्दर कैसा विश्वास होना चाहिए। “क्योंकि खतनावाले तो हम ही है जो परमेश्वर के आत्मा की अगुवाई से उपासना करते है, और मसीह यीशु पर घमंड करते है, और शरीर पर भरोषा नहीं रखते”। यहाँ ‘खतनावाले’ का मतलब है की वह व्यक्ति जो परमेश्वर के आत्मा की अगुवाई से उपासना करते है, और मसीह यीशु पर घमंड करते है, और शरीर पर भरोषा नहीं करते।
खतनावाले की तरह जीवन जीने का मतलब है हमारे हृदय के सारे पापों को उखाड़ फेंकना और उसे यीशु पर डाल देना, जिसने यूहन्ना के द्वारा बपतिस्मा लिया था। जो आत्मा के चलाए चलते है उसके जीवन में आत्मा का अधिकार होता है। वे परमेश्वर की सेवा करते है और मसीह यीशु में आनन्द करते हुए कहते है, “यीशु ने मुझे यह श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए अगुवाई की है। उसने मुझे धर्मी बनाया और मुझे आशीष दी। उसने मुझे वह सारा अनुग्रह दिया जो मुझे उसकी सेवा करने के लिए चाहिए था”। हमें ऐसा जीवन जीना चाहिए। यह पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन है। पौलुस कहता है, “इसलिए तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो” (१ कुरिन्थियों १०:३१)।
फिलिप्पियों ३:१३-१४ में लिखा है, “हे भाइयो, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूँ; परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ, ताकि वह इनाम पाऊँ जिसके लिये परमेश्‍वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है”। परमेश्वर हमें कहता है की जो भूतकाल में बीत गया है उसे भूल जाओ और जो आगे की ओर रखा है उसकी तरफ बढ़ो। हमें अपने उद्देश्य की तरफ बढ़ना चाहिए। हमारे धर्मी कार्य या बुरे कार्य जो भी हो हमें उन चीजो को भूलना है जो पीछे है और आगे जो चीज राखी है उसे पाने के लिए आगे बढ़ना है और उद्देश्य की ओर चलना है। यह उद्देश्य यीशु पर विश्वास करते हुए यीशु को थामकर उसकी इच्छा की सेवा करना है।
हम सम्पूर्णता से बहुत दूर है, इसलिए जब हम देह की वासना में पड़ते है तब हम गिर जाते है। हालाँकि, परमेश्वर की ओर देखते हुए और विश्वास हिने की वजह से, हम हमारी सारी कमजोरी और अपराधो को दूर कर सकते है। जब यीशु मसीह ने यूहन्ना से बपतिस्मा लिया और क्रूस पर अपनी जान दी, तब हमारे सारे पाप उसके ऊपर चले गए थे। जब वह पुनरुत्थान के द्वारा हमारा उद्धारकर्ता बना, तब हमें नया जीवन दिया गया उस पर हमारे विश्वास के लिए धन्यवाद। इसलिए, हमें उस सारी चीजो को दूर करना है जो हमारे पीछे है, और जो आगे है उसकी ओर बढ़ना है और उद्देश्य की ओर आगे बढ़ना है।
 
 

पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रखने के लिए

 
हमें जो आगे की ओर रखा है उन चीजो की ओर बढ़ना चाहिए और महान उद्देश्यों की ओर बढ़ना चाहिए। मैं आशा करता हूँ की यदि आपको वह बोझ के रूप में लगाती है तो आप जितना जल्दी हो सके उतना भूतकाल की चीजो को भूल जाएंगे। ऐसी कई चीजे है जो हमारी कमजोरी की वजह से पूरी नहीं हुई है, लेकिन अब उनका कोई महत्त्व नहीं है क्योंकि भविष्य की चीजे महत्व की है। जैसे भविष्य महत्त्व का है, हमें अपना अधिकार विश्वास के द्वारा यीशु मसीह के हाथ में सोंप देना चाहिए और उसकी अगुवाई में चलना चाहिए। हमें उसे फ़ैसला करने देना चाहिए की हम भविष्य में किस प्रकार जीना है और वाही करना चाहिए जो उसे प्रसन्न करता हो।
 

हमें चेलों कि तरह जीवन जीना चाहिए
 
यदि हम पापों की माफ़ी के अपने विश्वास में मजबूत बनेंगे तभी हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जी पाएंगे। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। आइए २ तीमुथियुस २:१-१० देखे। “इसलिये हे मेरे पुत्र, तू उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है, बलवन्त हो जा, और जो बातें तू ने बहुत से गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्‍वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हों। मसीह यीशु के अच्छे योद्धा के समान मेरे साथ दु:ख उठा। जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फँसाता। फिर अखाड़े में लड़नेवाला यदि विधि के अनुसार न लड़े तो मुकुट नहीं पाता। जो किसान परिश्रम करता है, फल का अंश पहले उसे मिलना चाहिए। जो मैं कहता हूँ उस पर ध्यान दे, और प्रभु तुझे सब बातों की समझ देगा। यीशु मसीह को स्मरण रख, जो दाऊद के वंश से हुआ और मरे हुओं में से जी उठा, और यह मेरे सुसमाचार के अनुसार है। जिसके लिये मैं कुकर्मी के समान दु:ख उठाता हूँ, यहाँ तक कि कैद भी हूँ; परन्तु परमेश्‍वर का वचन कैद नहीं।इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूँ, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में है अनन्त महिमा के साथ पाएँ”।
जैसे पौलुस ने तीमुथियुस को कहा है, “तू उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है, बलवन्त हो जा, और जो बातें तू ने बहुत से गवाहों के सामने मुझ से सुनी हैं, उन्हें विश्‍वासी मनुष्यों को सौंप दे; जो दूसरों को भी सिखाने के योग्य हों”।
“तू उस अनुग्रह से जो मसीह यीशु में है, बलवन्त हो जा”। यहाँ अनुग्रह में बलवन्त होने का मतलब है की हमें उस पर विश्वास करने के द्वारा और उसको थामकर पानी और आत्मा के सुसमाचार में हमारे विश्वास को मजबूत बनाना है। यीशु इस जगत में अपने बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे सारे पापों का स्वीकार किया, क्रूस पर मरा, पुनरुत्थित हुआ और हमारा उद्धारकर्ता बना। इसका मतलब है की हमें परमेश्वर के अनुग्रह में मजबूत बनना है और उसके प्रति धन्यवादित होना है। परमेश्वर ने हमें बचाया है और इसलिए हमें उद्धार को परमेश्वर की भेंट की तरह स्वीकार करना चाहिए। यह पापों की माफ़ी का उद्धार है। हरदिन भोर की प्रार्थना या कलीसिया की इमारत के लिए पैसे दान देने से इसका कोई लेना देना नहीं है। यह सारी बाते उद्धार पाने के लिए भलाई के जगह हमारा नुकशान कराती है।
पापों की माफ़ी के द्वारा हमारे उद्धार का मतलब है की यीशु मसीह ने, हमारे कर्मो की परवाह किए बिना हमारे सारे पापों को उठाने के लिए बपतिस्मा लिया, फिर सारे अपराधों को दूर करने के लिए क्रोस पर मरे। हमें हमारे सारे पापों से बचाने के लिए वह पुनरुत्थित हुए। आम विश्वासी की तरह पादरी भी सत्य के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा माफ़ी पा सकते है। जो कोई भी इसी रीति से यीशु मसीह पर पूरे दिल से विश्वास करता है वह पापों की माफ़ी पाता है। इसलिए हमें अनुग्रह पर निश्चितता हो जाति है और हमारा विश्वास बढ़ जाता है।
यदि हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन चाहते है, तो हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार के विश्वास में मजबूत बनना होगा। हमारे जीवन में कई ऐसे क्षेत्र है जहाँ हम निष्फल हो गए है, और हम कमज़ोर हो गए है। इसी लिए हमें उद्धार के अनुग्रह में मजबूत बनना चाहिए। जब भी हमें निष्फलता दिखाई देती है, तब हमें खुदसे यह कहने के द्वारा हमारे विश्वास का मनन करना चाहिए, “परमेश्वर ने मुझे पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा बचाया है। यीशु ने पानी और आत्मा द्वारा मेरे सारे पाप माफ़ किए है”। हम इस सुसमाचार पर विश्वास करके धर्मी बन सकते है और पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाके खुद को मजबूत कर सकते है। हम अपने सारे पापों से बचालिए गए है और पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने से मजबूत बने है। हम अपने विश्वास के द्वारा आशीषित लोग बने है।
पौलुस कहता है, “इसलिए तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो” (१ कुरिन्थियों १०:३१)। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसका मतलब है की हमें अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित करना चाहिए। “तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ”। हमें परमेश्वर का कार्य करने के लिए खाना चाहिए, पीना चाहिए और मजबूत बनना चाहिए। हमें प्रचार करने के लिए हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी चीजे खानी चाहिए।
“जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फँसाता” (२ तीमुथियुस २:४)। प्रचार करने के लिए आपको पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहिए। जब हम प्रचार करने के लिए जीवन जीते है तब हम विश्वासयोग्य जीवन जी सकते है।जो भी इस तरह का विश्वासयोग्य जीवन जीते है वे सब पवित्र आत्मा से भरपूर है। हम सब को पवित्र आत्मा की भरपूरी के जीवन की इच्छा रखनी चाहिए। यहाँ तक की आपकी कड़ी महेनत के द्वारा पाई हुई भेंट, सुसमाचार के लिए इस्तेमाल की जा सकती है।
यदि आप पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रखना चाहते है, तो आपको खुदको प्रभु के हाथ में सोंपना चाहिए, उसकी सेवा में बने रही, अपने पैसो को सुसमाचार के लिए इस्तेमाल करो और अपने सारे आनन्द और दू:ख को परमेश्वर के साथ बाँटिए। यदि हम इस तरह का जीवन जीना चाहते है, तो हमें सुसमाचार की सेवा करने की मजबूत इच्छा पर विश्वास के द्वारा जीवन जीना चाहिए।
कई लोग अब तक खुद के लिए जीवन जीते आए है। उन्होंने खुद के स्वामी बनने के द्वारा दीवारों को खड़ा कर दिया है और उनकी सम्पति को खुद के लिए इकठ्ठा किया है। हालाँकि, अब हमें परमेश्वर के लिए जीना चाहिए। हमें परमेश्वर को अपने एकलौते स्वामी के रूप में स्वीकार करना चाहिए। प्रभु ने कहा, “जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फँसाता”। अच्छे योध्धा का जीवन जीने का मतलब है की नियमों का पालन करना। यदि हम प्रभु के लिए उसके विश्वासयोग्य योध्धा की तरह जीवन जिए तो प्रभु हमारे लिए समस्याओं का समाधान करते है, हमारी रक्षा करता है और हमें अगुवाई करता है। वह हमें पहले उसके राज्य और धर्म की खोज करने के लिए कहता है (मत्ती ६:३३) ।
परमेश्वर के वचन में कुछ भी झूठ नहीं है। यदि हम उसका अनुसरण करे, तो हम उसके वचन की सच्चाई को जान पाएंगे। लेकिन याद रखे की पहले आपके हृदय में पवित्र आत्मा का अंतर्निवास होना जरुरी है। पवित्र आत्मा के अंतर्निवास पाए बिना व्यक्ति अपना सिंहासन परमेश्वर के हाथ में नहीं सोंप सकता। हालाँकि, जिसने पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाया है वह अपने हृदय के सिंहासन को परमेश्वर के हाथों में सोंपता है और इसतरह वह पवित्र आत्मा की भरपूरी का अनुभव करता है और अपने हृदय में आनन्द और शान्ति पाता है।
यदि आप पानी और आत्मा के खुबसूरत सुसमाचार को समझते है और विश्वास करते है तभी आप पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पा सकते है। यदि आप पवित्र आत्मा की भरपूरी और आशीषित जीवन जीना चाहते है, तो आपको परमेश्वर की राजा की तरह सेवा करनी चाहिए और उसके राज्य की भलाई के लिए जीवन जीना चाहिए। तब आप पवित्र आत्मा से भर जाएंगे और आपका हृदय भरपूर होगा और आप परमेश्वर के राज्य में उसकी संतान बनने की आशीष को पाकर अपने समृध्ध जीवन को बनाए रखेंगे।
मैंने एक संदेश दिया था की जिन लोगों ने प्रभु पर विश्वास करके पापों से उद्धार और पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पा लिया है उन्हें पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीना चाहिए। मैंने पवित्र आत्मा की भरपूरी के जीवन के बारें में बताया और यह समझाया की इस तरह का जीवन वे बनाए रख सकते है। मैंने यह भी समझाया की विश्वास से आपको अपना सिंहासन प्रभु के हाथ में सोंपना चाहिए और विश्वास से उसकी सेवा करनी चाहिए और पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रखना चाहिए।
फिर एक बार और, व्यक्ति के लिए पवित्र आत्मा का अंतर्निवास पाना, नया जन्म पाना अन्त नहीं है। हमें निश्चित तौर पर जानना और विश्वास करना चाहिए कि यदि हम इस तरह का जीवन जीते है केवल तभी हमारी आत्मा और शरीर आशीष पते है।
इस तरह का जीवन अचानक नहीं हो जाता। यह केवल तभी सम्भव है जब हम प्रभु को अपना स्वामी मानते है और हमारे हृदय में उसे प्रथम और ऊँचा स्थान देते है। परमेश्वर ने हमें बचाया और पहले से हमें पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन दिया है, सुसमाचार की सेवा का जीवन। उसने हमें उसका कार्य करने के लिए कम और पद भी दिए है, जिससे हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन बनाए रख सके।
आपको अपना जीवन उसे समर्पित करना चाहिए और उसके लिए जीवन जीना चाहिए। खुबसूरत सुसमाचार का प्रचार करके उसकी सेवा कीजिए। तब आपका जीवन पवित्र आत्मा से भरपूर होगा, आपमें से आनन्द और अनुग्रह बह निकालेंगे। उसके आगमन के दिन, आप आशीषित होंगे, गर्व से उसके सामने खड़े हो सकेंगे और उससे प्रतिफल पाएंगे। आपको और मुझे पवित्र आत्मा की भरपूरी के जीवन की प्रशंसा करनी चाहिए। हमें विश्वास से ऐसा जीवन जीने की इच्छा रखनी चाहिए। इस तरह से हम पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जी सकते है।
क्या आपने पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीने के लिए अपने हृदय के सिंहासन का त्याग किया है? मैं आशा करता हूँ की आप अपने हृदय का सारा हिस्सा उसके हाथों में सोंप देंगे। आपके अन्दर पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन जीने की इच्छा होनी चाहिए। इसके बाद वह आपको आशीष देगा जिससे आप पवित्र आत्मा की भरपूरी का जीवन देगा।