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विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 7-2] पौलुस के विश्वास का तात्पर्य: पाप के लिए मरने के बाद मसीह के साथ जुड़ जाए (रोमियों ७:१-४)

( रोमियों ७:१-४ )
“हे भाइयो, क्या तुम नहीं जानते – मैं व्यवस्था के जाननेवालों से कहता हूँ – कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है? क्योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उस से बन्धी है, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई। इसलिये यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरुष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी, परन्तु यदि पति मर जाए, तो वह उस व्यवस्था से छूट गई, यहाँ तक कि यदि किसी दूसरे पुरुष की हो जाए तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी। वैसे ही हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ, जो मरे हुओं में से जी उठा : ताकि हम परमेश्‍वर के लिये फल लाएँ।” 
 

क्या आपने कभी सूत का उलझा हुआ बंडल देखा है? यदि आप यीशु के बपतिस्मा की सच्चाई को जाने बिना इस अध्याय को समझने का प्रयास करते हैं जिसमें प्रेरित पौलुस ने विश्वास किया था, तो आपका विश्वास केवल पहले की तुलना में अधिक भ्रम की स्थिति में होगा।
पौलुस इस अध्याय में कहता है कि क्योंकि हर कोई परमेश्वर की व्यवस्था के सामने पूरी तरह से पापी है इसलिए कोई व्यक्ति यीशु मसीह के पास तभी जा सकता है और नया जन्म पा सकता है जब उसकी आत्मिक मृत्यु हो जाए।
 


वह सत्य जिसे पौलुस ने समझा


रोमियो ७:७ कहता है, “तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है? कदापि नहीं! वरन बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता : व्यवस्था यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता।” पौलुस आगे कहता है, "व्यवस्था यदि न कहती, कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता।" इसके अलावा, वह आगे कहता है, "परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया।" पौलुस ने महसूस किया कि वह परमेश्वर की सभी ६१३ आज्ञाओं का उल्लंघन कर रहा था। दूसरे शब्दों में, वह पाप के एक ढेर से अधिक कुछ नहीं था जो पाप करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था, क्योंकि वह पहले मनुष्य आदम का वंशज था, जिसने अधर्म किया था, और उसकी माँ के द्वारा पाप में उसका गर्भधारण किया था।
हर कोई जो इस दुनिया में पैदा हुआ है, उसके जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक पाप करता है। इस प्रकार वे परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने में असमर्थ हैं। पाप के ये ढेर कैसे सभी ६१३ आज्ञाओं और परमेश्वर की व्यवस्था का पालन कर सकते हैं? केवल जब हम पहचानते हैं कि हम परमेश्वर की व्यवस्था से पहले पापी हैं, तो हम यीशु मसीह, परमेश्वर की धार्मिकता के पास जा सकते हैं, और यह समझ सकते हैं कि हम अंत में मसीह यीशु के द्वारा पाप से छुटकारा पा सकते हैं। यीशु मसीह परमेश्वर की धार्मिकता बने। उसने हमें यूहन्ना द्वारा अपने बपतिस्मा और क्रूस पर अपने लहू के माध्यम से परमेश्वर की इस धार्मिकता को दिया। इसलिए हम सभी को परमेश्वर की धार्मिकता को जानना और उसमें विश्वास करना चाहिए। हमें यीशु पर विश्वास क्यों करना चाहिए इसका कारण यह है कि परमेश्वर की यह धार्मिकता उसमें पाई जाती है।
क्या आप परमेश्वर की धार्मिकता को जानते हैं और उस पर विश्वास करते हैं? परमेश्वर की धार्मिकता वह रहस्य है जो पानी और आत्मा के सुसमाचार में छिपा है। यह सब रहस्य उस बपतिस्मा में निहित है जो यीशु ने यरदन नदी में यूहन्ना से प्राप्त किया था। क्या आप यह रहस्य जानना चाहते हैं? यदि आप इस सत्य में विश्वास करना चाहते हैं, तो आप अपने विश्वास के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त करेंगे।
इससे पहले कि हम परमेश्वर की व्यवस्था और आज्ञाओं के बारे में जानते, ऐसा लगता था कि हम पापी नहीं थे, भले ही हमने प्रतिदिन पाप किया हो। लेकिन जब हमने कलीसिया में जाना शुरू किया, तो हमें पता चला कि हम वास्तव में बहुत पापी थे, और हम अपने द्वारा प्रकट किए गए पापों के कारण आत्मिक मृत्यु तक पहुंचेंगे। इस प्रकार, यीशु मसीह के पास आत्माओं की अगुवाई करने के लिए, प्रेरित पौलुस ने अपने पिछले दिनों को याद किया जब उसने परमेश्वर की व्यवस्था और आज्ञाओं को गलत समझकर झूठा विश्वास किया था।
यहां एक उदाहरण दिया गया है जो आपको परमेश्वर की व्यवस्था की भूमिका को समझने में मदद करेगा। मैं अभी बाइबल को थामे हुए हूँ। अगर मैं इस बाइबल के पत्तों के बीच यह कहते हुए बहुत महत्वपूर्ण कुछ छिपाता हूँ, "इस पुस्तक में क्या छिपा है, यह जानने के लिए कभी भी अंदर देखने की कोशिश मत करो," और फिर इसे यहाँ कुछ समय के लिए आपके साथ टेबल पर छोड़ दूँ, तो आप क्या प्रतिक्रिया देंगे? जिस क्षण आप मेरे शब्दों को सुनोगे, आपको यह जानने की इच्छा होगी कि उस बाइबिल में क्या छिपा है, और इस जिज्ञासा के परिणामस्वरूप, आप मेरे निर्देश का उल्लंघन करोगे। जिस क्षण आप स्वयं के बारे में सोचेंगे कि उस बाइबल में क्या छिपा है, आपके पास पता लगाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा। लेकिन अगर मैंने आपको कभी भी बाइबल में देखने का आदेश नहीं दिया होता, तो आपको कभी भी प्रलोभन का अनुभव नहीं होता। इसी तरह, जब परमेश्वर हमें आज्ञा देता है, तो जो पाप हम में गुप्त थे, वे परिस्थितियों के अनुसार स्वयं प्रकट होंगे।
परमेश्वर ने मनुष्यजाति को जो व्यवस्था दी है, उसमें लोगों के हृदयों में पाप को प्रकट करने की भूमिका है। उसने हमें यह इसलिए नहीं दिया कि हम उसका पालन करे और अनुसरण कर; बल्कि, व्यवस्था हमें हमारे पापों को प्रकट करने और इस प्रकार हमें पापी बनाने के लिए दी गई थी। यदि हम यीशु मसीह के पास नहीं जाते हैं और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास नहीं करते हैं, जो यीशु द्वारा यूहन्ना से प्राप्त बपतिस्मा और उसके द्वारा क्रूस पर बहाए गए लहू में पाई जाती है, तो हम सभी नष्ट हो जाएंगे। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि व्यवस्था की भूमिका हमें मसीह के पास लाना और उसके द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने में हमारी सहायता करना है।
यही कारण है कि प्रेरित पौलुस ने गवाही दी, "परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया" (रोमियों ७:८)। परमेश्वर की व्यवस्था के माध्यम से, प्रेरित पौलुस ने हमें दिखाया कि पाप के मूल आधार क्या हैं। उसने स्वीकार किया कि उसके मूल सिद्धांतों में वह एक पापी था, लेकिन यीशु मसीह द्वारा दी गई परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा उसे अनन्त जीवन प्राप्त हुआ।
 

पौलुस का विलाप और विश्वास

इसलिए पौलुस कहता है की, “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो” (रोमियों ७:२४-२५)।
पौलुस ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि उसने भी, जिसके पास परमेश्वर की धार्मिकता थी, अब भी पाप किया, और इस तरह, परमेश्वर की धार्मिकता की न केवल उसके लिए बल्कि शेष मनुष्यजाति के लिए और भी अधिक आवश्यकता थी।
हमें यीशु द्वारा प्राप्त किए गए बपतिस्मा में छिपे रहस्यों को सही ढंग से जानकर और उस पर विश्वास करके परमेश्वर की धार्मिकता को प्राप्त करना चाहिए। आपको और मुझे मसीह के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू में पाई गई परमेश्वर की धार्मिकता को जानना और उसमें विश्वास करना चाहिए। तभी हमारी आत्माएं और देह, जिनके पास पाप के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, हमारे पापों से मुक्त हो सकते हैं। हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि मसीह के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू ने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया।
जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता को नहीं जानते हैं, वे अंत में केवल पापी ही रह सकते हैं, चाहे वे उसकी व्यवस्था का पालन करने के लिए कितना भी कठिन प्रयास क्यों न करें। हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर की व्यवस्था हमें पालन करने के लिए नहीं दी गई थी। लेकिन विधि सम्मत लोगों को यह एहसास नहीं है कि छुटकारे का रहस्य "बपतिस्मा" में निहित है जो यीशु ने क्रूस पर अपने रक्त के साथ प्राप्त किया था। इसके परिणामस्वरूप, वे यह सोचकर परमेश्वर की व्यवस्था को गलत समझते हैं कि यह उन्हें पालन करने के लिए दी गई थी, और वे भ्रम में रहते हैं। परन्तु हमें व्यवस्था के द्वारा अपने पापों को पहचानना चाहिए और परमेश्वर की धार्मिकता में अपने विश्वास के द्वारा जीना चाहिए। हमें अपनी धार्मिकता का अनुसरण करने के लिए परमेश्वर की इस धार्मिकता के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए। बल्कि, हमें परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करना चाहिए जो मसीह के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू के द्वारा पूरी होती है। दूसरे शब्दों में, हमें अपने प्रभु को धन्यवाद देना सीखना चाहिए, जिन्होंने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया है।
यही कारण है कि पौलुस ने अपने शरीर को देखकर शुरू में पुकारा, "मैं कितना अभागा मनुष्य हूँ!" लेकिन फिर भी यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद किया। पौलुस का यह अंगीकार करने का कारण यह था कि जितना अधिक उसने पाप किया था, उतना ही अधिक यीशु का बपतिस्मा और क्रूस पर उसका लहू परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा करता था। हम भी आनन्द और विजय के जयजयकार कर सकते हैं, क्योंकि यीशु मसीह में हमारे विश्वास के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, ठीक वैसे ही जैसे हम शरीर की व्यवस्था और परमेश्वर की धार्मिकता की व्यवस्था के बीच कठिन जीवन जीते हैं। पौलुस का विश्वास वह था जो यीशु मसीह के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू में विश्वास करता था। इस प्रकार पौलुस परमेश्वर की धार्मिकता में अपने विश्वास के कारण बसा, और परमेश्वर की इस धार्मिकता में विश्वास करके, वह वो बन गया जिसने परमेश्वर स्तुति की।
रोमियों अध्याय 7 में, पौलुस पुराने समय में अपनी दयनीय स्थिति के बारे में बात करता है, परमेश्वर की धार्मिकता में उसके बाद के विजयी विश्वास के विपरीत। पौलुस के विश्वास की विजय परमेश्वर की इस धार्मिकता में उसके विश्वास के कारण थी।
“हे भाइयो, क्या तुम नहीं जानते – मैं व्यवस्था के जाननेवालोँ से कहता हूँ – कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तब तक उस व्यवस्था की प्रभुता रहती है?” (रोमियों ७:१)।
अध्याय ७ का सार वचन २४ और २५ में पाया जाता है। पौलुस लिखता है, मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो। इसलिए मैं आप बुध्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।”
रोमियों अध्याय ६ में, पौलुस ने उस विश्वास के बारे में बात की जो हमें मसीह के साथ एकता में गाड़े जाने और पुनरुत्थान की ओर ले जाता है। उसके बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के साथ स्वयं को एक करके, हम इस विश्वास को प्राप्त कर सकते हैं।
पौलुस को समझ आया कि वह एक अभागा मनुष्य था, जिसका शारीर इतना अपर्याप्त था कि उसने न केवल यीशु से मिलने से पहले ही परमेश्वर की व्यवस्था को तोड़ा, बल्कि यीशु के साथ अपनी मुलाकात के बाद भी उसे तोड़ता रहा। उसने इस प्रकार विलाप किया, "मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?" फिर उसने यह निष्कर्ष निकाला कि परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा वह मृत्यु की देह से बच पाया, और कहा की, "हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो।" मसीह के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने और उसके साथ एक होने के द्वारा पौलुस शरीर और मन के पापों से मुक्त हुआ था।
पौलुस का आखिरी अंगीकार था, “इसलिए मैं आप बुध्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ” (रोमियों ७:२५)। और अध्याय ८ की शुरुआत में वह अंगीकार करता है की, “अत: अब जो मसीह यीशु में है, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। [क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते है।] क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया” (रोमियों ८:१-२)। 
मूल रूप से परमेश्वर द्वारा दी गई दो व्यवस्स्था थी: पाप और मृत्यु की व्यवस्था और जीवन की आत्मा की व्यवस्था। जीवन के आत्मा की व्यवस्था ने पौलुस को पाप और मृत्यु की व्यवस्था से बचाया। इसका अर्थ था कि यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु में विश्वास करके, जिसने उसके सभी पापों को दूर कर दिया, उसने खुद को यीशु के साथ जोड़ लिया और अपने सभी पापों से बच गया। हम सभी में वह विश्वास होना चाहिए जो हमें प्रभु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के साथ जोड़ता है। 
रोमियों अध्याय 7 में पौलुस ने अंगीकार किया कि वह पहले व्यवस्था के अधीन दण्डित होने के लिए निर्धारित था, परन्तु यीशु मसीह के द्वारा, उसने इस दण्ड से छुटकारा पाया। इस प्रकार, वह पवित्र आत्मा के द्वारा परमेश्वर की सेवा कर सकता था, जो उसमें वास करता था। 
 


वो सत्य जिसका पौलुस को अहेसास हुआ


पौलुस ने अंगीकार किया, “क्या व्यवस्था पाप है? कदापि नहीं! वरन बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता” (रोमियों ७:७)। जब तक व्यवस्था ने न बताया तब तक उसने लालच को नहीं जाना था, “तू लालच न करना।” पौलुस ने व्यवस्था और पाप के बिच के रिश्ते को समझाया, और कहा, “परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया।” इसका मतलब है की मनुष्य के ह्रदय मूल रूप से पाप से भरे हुए है। जब मनुष्य अपनी माँ के गर्भ में होता है, तभी वे पाप को धारण करते है, और बारह प्रकार के पापो के साथ जन लेते है।
ये बारह प्रकार के पाप हैं व्यभिचार, परस्त्रीगमन, हत्या, चोरी, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान और मूर्खता। मरते दम तक हर कोई ये पाप करता है। जब वह इन बारह पापों के साथ इस दुनिया में जन्म लेता है तो दुनिया में कोई भी परमेश्वर की व्यवस्था और आज्ञाओं का पालन कैसे कर सकता है? जिस क्षण हम व्यवस्था के वचनों और आज्ञाओं को सुनते हैं जो हमें बताती हैं कि हमें क्या “करना चाहिए” या क्या “नहीं करना चाहिए”, पाप हमारे भीतर कार्य करना शुरू कर देता है। 
जब हम व्यवस्था और परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं जानते थे, तो हमारे भीतर के पाप चुपचाप सो रहे थे। परन्तु उन आज्ञाओं को सुनने के बाद, जो हमें बताती हैं कि क्या करना है और क्या नहीं करना है, ये पाप निकल आए और हमें और भी अधिक पापी बना दिया। 
जिस किसी ने भी नया जन्म नहीं पाया है या पानी और आत्मा के सत्य पर विश्वास नहीं करता या नहीं समझता उसके अन्दर पाप है। यह पाप, आज्ञाओं के वचनों से सक्रिय होकर, और भी अधिक पापों को उत्पन्न करता है। व्यवस्था, जो लोगों को बताती है कि क्या करना है या क्या नहीं करना है, एक प्रशिक्षक की तरह है जो पाप को वश में करने की कोशिश करता है। हालाँकि, पाप परमेश्वर की आज्ञाओं के विरुद्ध जाता है और उनकी अवज्ञा करता है। जब एक पापी आज्ञाओं को सुनता है, तो उसके हृदय में पाप सक्रिय हो जाते हैं, जिससे वह और भी अधिक पाप करने के लिए प्रेरित होता है। 
हम दस आज्ञाओं के माध्यम से समझ सकते हैं कि हमारे अंदर पाप है। इस प्रकार व्यवस्था की भूमिका हमारे हृदयों के भीतर के पापों को प्रकट करना है, हमें यह एहसास दिलाना है कि परमेश्वर की आज्ञाएँ पवित्र हैं, और हमें हमारे पापों के प्रति जागृत करना है। मूल रूप से, हम परमेश्वर की सारी सृष्टि की लालच के साथ पैदा हुए है, जिसमें वो संपत्ति या साझेदार शामिल हैं जो हमारे नहीं हैं। तो, आज्ञा जो कहती है, "तू लालच न करना," हमें बताता है कि हम पापी पैदा हुए थे और हमारे जन्म के दिन से हम नरक में जाने के लिए नियत थे। यह हमें उद्धारकर्ता के लिए अनिवार्यता भी दिखाता है, जिसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया। 
यही कारण है कि पौलुस ने स्वीकार किया कि पाप ने अवसर को आज्ञा के द्वारा उसमें सभी प्रकार की बुरी अभिलाषाएं उत्पन्न करने का अवसर लिया। पौलुस ने समझा कि वह एक महान पापी था जिसने परमेश्वर की अच्छी आज्ञाओं को तोड़ा, क्योंकि वह मूल रूप से पापी पैदा हुआ था और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने से पहले पाप के साथ था। 
जब हम अध्याय ७ में देखते हैं, तो हम पाते हैं कि प्रेरित पौलुस बहुत आत्मिक था, उसे बाइबल का व्यापक ज्ञान था, और उसके पास महान आत्मिक समझ और अनुभव थे। वह व्यवस्था के माध्यम से स्पष्ट रूप से जानता था कि उसके भीतर पाप था, जिसने आज्ञाओं के साथ सभी प्रकार की बुरी इच्छाएँ उत्पन्न कीं। उसे पता चला कि उसके भीतर पापों को प्रकट करने में परमेश्वर की व्यवस्था की भूमिका थी। जैसे ही इन पापों को पुनर्जीवित किया गया, उसने यह भी स्वीकार किया कि जीवन लाने वाली आज्ञा ने उसे मृत्यु दी। 
आपका विश्वास कैसा है? क्या यह पौलुस की तरह है? चाहे आप यीशु पर विश्वास करें या नहीं, क्या आपके हृदय में पाप नहीं है? यदि ऐसा है, तो इसका मतलब है कि आप अभी भी परमेश्वर की धार्मिकता को नहीं जानते हैं, आपने पवित्र आत्मा को प्राप्त नहीं किया है, और एक पापी हैं जो आपके अपने पापों के लिए न्याय करने के लिए नरक में जाने के लिए नियत है। क्या आप इन तथ्यों पर विश्वास करते हैं? यदि आप ऐसा करते हैं, तो पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करें, जिसमें परमेश्वर की धार्मिकता प्रगट होती है। आप अपने सब पापों से बचोगे, परमेश्वर की धार्मिकता को पाओगे, और पवित्र आत्मा तुम पर उतरेगा। हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करना चाहिए। 
 


पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा पौलुस को बहकाया


प्रेरित पौलुस ने कहा, “और वही आज्ञा जो जीवन के लिए थी, मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी। क्योंकि पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया, और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला” (रोमियों ७:१०-११)। दूसरे शब्दों में, पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा पौलुस को धोखा दिया। पौलुस ने उस आज्ञा में विश्वास किया जो वास्तव में अच्छी और न्यायपूर्ण थी, और फिर भी उसके हृदय में बारह प्रकार के पाप जीवित और पनप रहे थे। इसका अर्थ था कि उसे पाप के द्वारा धोखा दिया गया था क्योंकि वह परमेश्वर की आज्ञाओं के उद्देश्य को नहीं समझ सकता था। 
सबसे पहले, पौलुस ने सोचा कि परमेश्वर ने उसे पालन करने के लिए व्यवस्था दी है। लेकिन बाद में, उसने महसूस किया कि व्यवस्था का पालन करने के लिए नहीं बल्कि लोगों के दिलों में परमेश्वर की पवित्रता के साथ पापों को प्रकट करने के लिए, और अविश्वासियों को परमेश्वर द्वारा न्याय दिलाने के लिए दिया गया था। इस प्रकार पौलुस ने सोचा कि उसे पाप के द्वारा धोखा दिया गया है क्योंकि वह परमेश्वर की आज्ञाओं और व्यवस्था को ठीक से नहीं समझता था। आज भी ज्यादातर लोग इसी तरह ठगे जाते हैं। 
हमें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर ने हमें पालन करने के लिए आज्ञाए और व्यवस्था नहीं दी है, बल्कि हमारे लिए अपने पापों का एहसास करने और पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करके परमेश्वर की धार्मिकता तक पहुंचने के लिए दी। लेकिन चूँकि हम अपने पापों के साथ व्यवस्था के अनुसार जीने की कोशिश करते हैं, हम अंत में अपने पापी स्वभाव को प्रकट कर देते हैं। 
इसलिए, एक पापी व्यवस्था के माध्यम से समझता है कि भले ही व्यवस्था पवित्र है, उसके पास पवित्र जीवन जीने की कोई शक्ति या क्षमता नहीं है। उस समय, वह एक पापी बन जाता है जिसके पास व्यवस्था द्वारा नरक में भेजे जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। परन्तु पापी जो पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास नहीं करते, यह सोचते रहते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें व्यवस्था दी है कि वे उनका पालन करें। वे व्यवस्था का पालन करने का प्रयास करते रहते हैं, परन्तु वे स्वयं को धोखा देंगे और अंत में विनाश में गिरेंगे।
जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता से अनजान रहकर नया जन्म प्राप्त नहीं करते, वे पाप करते हैं और फिर पश्चाताप की प्रार्थना करके माफ़ी पाने का प्रयास करते हैं। हालाँकि, अंत में, उन्हें पता चलता है कि उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था के उद्देश्य को गलत समझा और खुद को धोखा दिया है। पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा उन्हें धोखा दिया है। परमेश्वर की व्यवस्था पवित्र है, लेकिन उनके भीतर के पाप उन्हें मृत्यु की ओर ले जाते हैं। 
पौलुस ने कहा, “इसलिये व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है। तो क्या वह जो अच्छी थी, मेरे लिये मृत्यु ठहरी? कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिये मृत्यु का उत्पन्न करनेवाला हुआ कि उसका पाप होना प्रगट हो, और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे” (रोमियों ७:१२-१३)। जो लोग इस सत्य को समझते हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता की आवश्यकता को समझते हैं, और इसलिए, विश्वास करते हैं कि पानी और आत्मा का सुसमाचार ही वास्तविक सत्य है। एक व्यक्ति जो पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करता है, वह भी परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करता है। आइए हम अपने सभी पापों से मुक्त हों और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके परमेश्वर की पवित्रता तक पहुँचें। मैं चाहता हूं कि आप सभी को इस सुसमाचार से आशीष मिले।
 

पौलुस की देह और मन कैसे थे?

पौलुस आत्मा से भरा हुआ था और उसे परमेश्वर के वचन की गहरी समझ थी। हालाँकि, उसने अपने शरीर के बारे में निम्नलिखित शब्दों में कहा: “हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शारीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूँ। जो मैं करता हूँ उस को नहीं जानता; क्योंकि जो मैं चाहता हूँ वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है वही करता हूँ। यदि जो मैं नहीं चाहता वही करता हूँ, तो मैं मान लेता हूँ कि व्यवस्था भली है। तो ऐसी दशा में उसका करनेवाला मैं नहीं, वरन् पाप है जो मुझ में बसा हुआ है” (रोमियों ७:१४-१७)। उसने कहा कि उसने पाप किया है क्योंकि वह स्वभाव से शारीरिक था। चूँकि वह शारीरिक था, उसने स्वयं को देह की अभिलाषाओं की खोज करते हुए देखा, भले ही वह भला करना चाहता था। 
पौलुस ने इस प्रकार महसूस किया, “क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूँ। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है” (रोमियों ७:२२-२३)। इस कारण उसने अपने शरीर पर विलाप किया, और चिल्लाया, "मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ!" (रोमियों ७:२४) नया जन्म लेने के बाद भी पौलुस परेशान था क्योंकि उसके भीतर बुराई मौजूद थी, हालाँकि वह अच्छा करना चाहता था। जब पौलुस ने कहा कि उसके भीतर बुराई है, तो वह अपने शरीर की बात कर रहा था। उसने अपने अंगों में एक और व्यवस्था देखी, जो आत्मा की व्यवस्था से लड़ती हुई, उसे शरीर से हारने और पाप करने के लिए प्रेरित करती थी। वह केवल यह स्वीकार कर सकता था कि उसके पास न्याय के अधीन होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उसने देखा कि उसका शरीर पाप के लिए अपने ऊपर नियंत्रण कर रहा है। क्योंकि पौलुस के पास भी देह थी, उसने अपने शरीर से उत्पन्न होने वाले पापों के लिए विलाप किया।
इसलिए पौलुस ने घोषणा की, "मैं कितना अभागा मनुष्य हूं!" लेकिन उसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा करने के लिए यीशु मसीह को भी धन्यवाद दिया। ऐसा इसलिए था क्योंकि उनका मानना था कि यीशु पृथ्वी पर आया था, बपतिस्मा लिया था, और सभी मनुष्यजाति को पापों की माफ़ी देने के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया था। वह दिल से परमेश्वर का धन्यवाद कर सकता था, क्योंकि उसके पास वह विश्वास था जिसने उसे यीशु मसीह के बपतिस्मा और लहू से जोड़ा।
पौलुस जानता था कि जब यूहन्ना ने यीशु को बपतिस्मा दिया, तो उसके सभी पाप, साथ ही साथ दुनिया के पाप, एक बार और हमेशा के लिए यीशु पर पारित हो गए। वह यह भी जानता था कि जब यीशु क्रूस पर मरा, तो हम सब भी पाप के लिए मरे। इसलिए, हमें पानी और आत्मा के सत्य के साथ एक संयुक्त विश्वास रखना चाहिए। क्या आपका हृदय यीशु मसीह के बपतिस्मा और लहू से एक हो गया है? दूसरे शब्दों में, क्या आपने पानी और आत्मा के सुसमाचार के साथ अपने हृदय को एक किया है, जिसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया है? हमें अपने विश्वास को उस बपतिस्मा के साथ जो हमारे प्रभु ने यूहन्ना से प्राप्त किया था और वह लहू जो उसने क्रूस पर बहाया था उसके साथ एक करना चाहिए। हमारे लिए एकजुट विश्वास होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि पानी और आत्मा के सुसमाचार के साथ एक होना प्रभु की धार्मिकता के साथ एक होना है। 
रोमियों ६:३ कहता है, "हम सब जिन्होंने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया, उसकी मृत्यु का बपतिस्मा लिया।" यीशु के बपतिस्मा में विश्वास करके, हम भी उसके साथ बपतिस्मा ले चुके हैं, जिसका अर्थ है कि हम अपने प्रभु की मृत्यु में एक हो गए हैं। अर्थात्, विश्वास के द्वारा एकता में बपतिस्मा लेने के द्वारा, हम आत्मिक रूप से उसकी मृत्यु में बपतिस्मा ले चुके है। प्रभु के साथ एक होना उनके बपतिस्मा के साथ एक होना और उनकी मृत्यु के साथ एकता में मरना है।
इसलिए, हमें विश्वास करना चाहिए और यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के साथ एकजुट होना चाहिए जिसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया है। यदि आप अभी तक पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास नहीं करते हैं, जो परमेश्वर की धार्मिकता को धारण करता है, तो आप यीशु के बपतिस्मा और उसकी मृत्यु के साथ एकजुट नहीं हैं। और यह इस सुसमाचार में है कि परमेश्वर की धार्मिकता प्रकट हुई है। 
यदि हमारे हृदय यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनकी मृत्यु के साथ नहीं जुड़ते हैं, तो हमारा विश्वास केवल सैद्धांतिक और बेकार है। यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनके लहू के साथ स्वयं को एक करें और उन पर विश्वास करें। हमें ऐसा ही विश्वास करना चाहिए। एक सैद्धांतिक विश्वास बेकार है। उदाहरण के लिए, एक अच्छा घर क्या अच्छा है यदि वह आपका नहीं है? परमेश्वर की धार्मिकता को अपना बनाने के लिए, हमें यह जानना चाहिए कि यीशु के बपतिस्मा का उद्देश्य हमारे पापों को धोना था, और यह कि क्रूस पर उनकी मृत्यु हमारे शरीर की मृत्यु के लिए थी। हमारे प्रभु द्वारा पूरी की गई परमेश्वर की धार्मिकता में हमारे विश्वास के माध्यम से, हमें एक बार हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहिए और जीवन के नएपन में चलना चाहिए। 
आपके विश्वास के माध्यम से इस प्रकार यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनके लहू के साथ एकजुट होकर, परमेश्वर की धार्मिकता वास्तव में आपकी अपनी हो जाएगी। हमें यीशु के बपतिस्मा और मृत्यु के साथ एक होना चाहिए, क्योंकि यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हमारे विश्वास का कोई अर्थ नहीं होगा। 
"मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ? मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (रोमियों ७:२४) यह न केवल पौलुस का विलाप है, बल्कि यह आपका और मेरा विलाप भी है, साथ ही उन सभी का भी जो अब तक मसीह से अलग हैं। वह जो हमें इस संकट से बचाएगा, वह यीशु है, और इसका समाधान केवल उस प्रभु में विश्वास करने से हो सकता है, जिसने हमारे लिए बपतिस्मा लिया, क्रूस पर चढ़ा, और पुनरुत्थित हुआ। 
पौलुस ने कहा, "हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो!" इससे पता चलता है कि पौलुस ने खुद को प्रभु के साथ एकजुट किया। हमें विश्वास करना चाहिए कि यदि हम एकजुट हों और विश्वास करें कि प्रभु ने अपने बपतिस्मा और लहू के माध्यम से हमें हमारे पापों से बचाया है, तो हमें माफ़ किया जाएगा और अनन्त जीवन प्राप्त होगा। जब आप एक संयुक्त हृदय से यीशु के बपतिस्मा में विश्वास करते हैं तो आपके सभी पाप यीशु मसीह पर पारित हो जाएंगे। क्रूस पर उनकी मृत्यु के साथ एकता में विश्वास प्राप्त करने के बाद आप मर जाएंगे और उनके साथ पुनर्जीवित होंगे। 
यीशु ने तीस साल की उम्र में पृथ्वी पर अपनी सेवकाई शुरू की। अपने मिशन पर उसने जो सबसे पहला काम किया, वह था यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे पापों को धोना। उसने बपतिस्मा क्यों लिया? मनुष्यजाति के सभी पापों को उठाने के लिए। इसलिए, जब हमने यीशु के द्वारा किए गए परमेश्वर की धार्मिकता के साथ अपने हृदयों को एक किया, तो हमारे सभी पाप वास्तव में यीशु के बपतिस्मा के द्वारा उस पर पारित हो गए। हमारे सभी पाप यीशु के उपरव पारित हो गए और हमेशा के लिए धुल गए।
हमारे प्रभु वास्तव में इस जगत में आए और हमारे सभी पापों को उठाने के लिए बपतिस्मा लिया और उनकी मजदूरी का भुगतान करने के लिए मर गए। बपतिस्मा लेने से ठीक पहले यीशु ने यूहन्ना से कहा, "हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है" (मत्ती ३:१५)। "सब धार्मिकता" यीशु के बपतिस्मा को प्राप्त करने को संदर्भित करता है जिसने मनुष्यजाति के सभी पापों को धो दिया जो नरक के लिए नियत थे, और उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान को भी संदर्भित करते है। परमेश्वर की धार्मिकता क्या है? पुराने नियम में परमेश्वर के वादों के अनुसार, यीशु का बपतिस्मा और क्रूस पर मृत्यु, जिसने सभी पापियों को बचाया, उसकी धार्मिकता है। मनुष्य के रूप में यीशु के पृथ्वी पर आने और बपतिस्मा प्राप्त करने का कारण मनुष्यजाति के सभी पापों को अपने ऊपर लेना और उन्हें धोना था। 
यूहन्ना ने यीशु को बपतिस्मा क्यों दिया? यह मनुष्यजाति के सभी पापों को उठाकर परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा करना था। हम, जिन्होंने मसीह यीशु में बपतिस्मा लिया था, उन्होंने भी उनकी मृत्यु में बपतिस्मा लिया और अब जीवन के नएपन में चलते हैं, क्योंकि वह मरे हुओं में से जी उठे थे। परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने का अर्थ है यीशु के बपतिस्मा, क्रूस पर उसकी मृत्यु और उसके पुनरुत्थान में अपने हृदयों से विश्वास करना और एक होना। हमारे लिए यह विश्वास करना बहुत महत्वपूर्ण है कि यीशु ने बपतिस्मा लेते समय हमारे सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया। जब वे क्रूस पर मरे तो हमें उनके साथ दफनाया गया क्योंकि उनके बपतिस्मा के द्वारा हम उनके साथ एक हो गए थे। हमारे सभी पापों से मुक्त होने के बाद भी, परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके अपने दिलों को प्रभु के साथ जोड़ना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हम परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं क्योंकि हम सभी मसीह के साथ मरे थे जब वह क्रूस पर मरा था, क्योंकि उसने पहले ही हमारे सभी पापों को अपने बपतिस्मा के द्वारा ले लिया था। 
हमारे छुटकारे के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त करने के बाद भी विश्वास के द्वारा यीशु के साथ एक होना आवश्यक है। छुटकारे का उपहार प्राप्त करने के बाद, हमारा विश्वास केवल एक साधारण प्रथा में बिगड़ सकता है। परन्तु यदि हम अपने हृदयों को प्रभु की धार्मिकता से मिला लें, तो हमारा हृदय परमेश्वर के साथ जीवित रहेगा। यदि हम परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक हो जाते हैं, तो हम उसके साथ रहेंगे, लेकिन यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम उसके लिए अप्रासंगिक हो जाते हैं। यदि हम प्रभु परमेश्वर के साथ एकजुट नहीं होते हैं और केवल उनके लिए दर्शक बने रहते हैं, जैसे कि हम अपने पड़ोसी के बगीचे की प्रशंसा करते है, तो हम परमेश्वर से अलग होकर अप्रासंगिक हो जाएंगे। इसलिए, हमें परमेश्वर के वचन और विश्वास में परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक होना चाहिए। 
 

यदि हमारे पास यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के साथ जुडा हुआ विश्वास है तो हम वो मसीही है जो प्रभु के साथ जुड़े हुए है

परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने का अर्थ है प्रभु के साथ एक होना और उसकी धार्मिकता को स्वीकार करने के लिए विश्वास रखना। हमारे जीवन के हर पहलू को परमेश्वर की धार्मिकता के साथ जोड़ा जाना चाहिए। हमें ऐसे ही जीना चाहिए। यदि हम उसकी धार्मिकता के साथ एक नहीं होते हैं, तो हम अपने शरीर के दास बन जाएंगे और मर जाएंगे, लेकिन जिस क्षण हम खुद को परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एकजुट कर लेंगे, हमारे सभी पापों को माफ़ कर दिया जाएगा। जब हम अपने हृदयों को प्रभु की धार्मिकता के साथ जोड़ते हैं, तभी हम परमेश्वर के सेवक बनते हैं। तब परमेश्वर के सभी कार्य हमारे लिए प्रासंगिक हो जाएंगे, और इस तरह, उसके सभी कार्य और सामर्थ हमारे हो जाएंगे। हालाँकि, यदि हम उसके साथ एकजुट नहीं होते हैं, तो हम उसकी धार्मिकता के लिए अप्रासंगिक रहेंगे। 
हम शरीर में दुर्बल और कमजोर हैं, जैसे पौलुस था, इसलिए हमें अपने हृदयों को परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक करना चाहिए। हमें एकजुट होना चाहिए और विश्वास करना चाहिए कि यीशु को यूहन्ना द्वारा बपतिस्मा दिया गया था और हमें हमारे सभी पापों से बचाने के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया था। यह उस तरह का विश्वास है जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है और हमारे शरीर और आत्माओं को आशीष देता है। यदि हम विश्वास में एकजुट होकर अपने दिलों के साथ प्रभु के प्रयासों में विश्वास करते हैं, तो स्वर्ग के सभी वादा किए गए आशीष भी हमारे होंगे। इसलिए हमें उसके साथ एक होना चाहिए। 
दूसरी ओर, यदि हम अपने हृदयों को परमेश्वर की धार्मिकता के साथ नहीं जोड़ते हैं, तो हम उसकी सेवा नहीं करेंगे। वे मसीही जो अपने दिलों को परमेश्वर की धार्मिकता के साथ नहीं जोड़ते हैं, वे सांसारिक मूल्यों को किसी भी चीज़ से अधिक प्यार करते हैं। वे दुनिया में अविश्वासियों से अलग नहीं हैं। उन्हें परमेश्वर की धार्मिकता के मूल्य का एहसास तभी होता है जब उनकी संपत्ति, जिसे वे अपने जीवन से ज्यादा प्यार करते हैं, उनसे छीन ली जाती हैं। लोगों के जीवन पर नियंत्रण करने के लिए भौतिक चीजो में उतनी सामर्थ्य नहीं है। केवल प्रभु की धार्मिकता ही हमें पापों की माफ़ी, अनन्त जीवन और आशीष दे सकती है। भौतिक चीजे हमारे जीवन के लायक नहीं है। हमें यह समझना चाहिए कि यदि हम प्रभु की धार्मिकता के साथ एक हो जाते हैं, तो हम और हमारे पड़ोसी जीवित रहेंगे। 
हमारे हृदयों को प्रभु की धार्मिकता में एक होना चाहिए। हमें विश्वास से जीना चाहिए और अपने हृदयों को मसीह के साथ एक करना चाहिए। विश्वास जो मसीह की धार्मिकता के साथ जुड़ा हुआ है वह सुंदर है। अध्याय ७ में पौलुस अंत में जो कहता है वह यह है कि हमें प्रभु के साथ एकता में आत्मिक जीवन जीना चाहिए। 
क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जिसका ह्रदय परमेश्वर की धार्मिकता के साथ जुदा नहीं है फिर भी वह परमेश्वर का सेवक बन गया है? ऐसा कोई नहीं है! क्या आपने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जो परमेश्वर की धार्मिकता में शामिल हुए बिना पापों की माफ़ी के लिए आवश्यक शर्त के रूप में पानी और आत्मा के सुसमाचार को स्वीकार करता है? ऐसा कोई नहीं है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम बाइबल के बारे में कितना जानते हैं, हमारा विश्वास तब तक बेकार रहेगा जब तक कि हम परमेश्वर की धार्मिकता में शामिल नहीं हो जाते और यह विश्वास नहीं करते कि यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनके लहू में विश्वास करके, हम अपने सभी पापों से मुक्त हो सकते हैं। 
भले ही हमने एक बार पापों की माफ़ी प्राप्त कर ली हो और कलीसिया में भाग लिया हो, यदि हम परमेश्वर धार्मिकता के साथ एकजुट नहीं हैं, तो हम पापी हैं जिनका प्रभु की योजना में कोई हिस्सा नहीं है। यद्यपि हम कहते हैं कि हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं, हम प्रभु से अलग हो जाते यदि हम उसकी धार्मिकता में शामिल नहीं होते। यदि हमें मसीह के द्वारा सांत्वना, सहायता और नेतृत्व प्राप्त करना है तो हमें परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक होना चाहिए। 
क्या आपने पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करने के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता और अपने सभी पापों की माफ़ी प्राप्त की है? क्या आप पौलुस की नाईं परमेश्वर की व्यवस्था की मन लगाकर सेवा करते हो, जबकि आपका शरीर प्रतिदिन पाप की व्यवस्था के अधीन है? हमें हर समय परमेश्वर की धार्मिकता में शामिल होना चाहिए। क्या होगा यदि हम अपने आप को परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एकजुट नहीं करते हैं? हम नष्ट हो जाएंगे। परन्तु जो परमेश्वर की धार्मिकता के साथ जुड़े हुए हैं, वे ऐसे जीवन व्यतीत करेंगे जो परमेश्वर की कलीसिया के साथ जुड़े हुए हैं। 
परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने का अर्थ है कलीसिया और परमेश्वर के सेवकों से जुड़ना। जब हम प्रतिदिन परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक हो जाते हैं केवल तभी हम विश्वास के द्वारा जीना जारी रख सकते हैं। जिन लोगों को परमेश्वर धार्मिकता में विश्वास करने के द्वारा उनके पापों के लिए माफ़ किया जाता है, उन्हें प्रतिदिन परमेश्वर की कलीसिया के साथ एक होना चाहिए। चूँकि शरीर हमेशा पाप की व्यवस्था की सेवा करना चाहता है, हमें हमेशा परमेश्वर की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए और विश्वास से जीना चाहिए। यदि हम परमेश्वर की धार्मिकता पर मनन करते रहें और ध्यान केन्द्रित करें तो हम प्रभु के साथ एक हो सकते हैं। 
हम, जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते है, उन्हें प्रतिदिन कलीसिया और परमेश्वर के सेवकों के साथ एक होना चाहिए। ऐसा करने के लिए, हमें हमेशा परमेश्वर की धार्मिकता को याद रखना होगा। हमें प्रतिदिन परमेश्वर की कलीसिया के बारे में सोचना होगा और एक होना है। हमें इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि हमारे सभी पापों को उठाने के लिए प्रभु ने बपतिस्मा लिया था। जब हम इस विश्वास और परमेश्वर की धार्मिकता में शामिल हो जाते हैं, तो हमें परमेश्वर से शांति मिलेगी, और आप उसके द्वारा नवीनीकृत, धन्य और सशक्त होंगे। 
अपने आप को परमेश्वर की धार्मिकता से जोड़ो। तब आपको नई सामर्थ मिलेगी। अब परमेश्वर की धार्मिकता में यीशु के बपतिस्मा के साथ एक हो जाओ। आपके सारे पाप दूर हो जाएंगे। क्रूस पर मसीह की मृत्यु के साथ अपने हृदय को एक करें। आप भी उसके साथ मरेंगे। उसके पुनरुत्थान के साथ एक हो जाओ। आप भी फिर से जिएंगे। संक्षेप में, जब आप अपने हृदय में मसीह के साथ एक हो जाते हैं, तो आप मर जाएंगे और मसीह के साथ पुनरुत्थित हो जाएंगे, और इस प्रकार आप अपने सभी पापों से मुक्त हो जाएंगे। 
क्या होगा है यदि हम मसीह के साथ एक नहीं होते हैं? हम भ्रमित हो सकते हैं और पूछ सकते हैं, "यीशु ने बपतिस्मा क्यों लिया? पुराने नियम और नए नियम के बीच एकमात्र अंतर यह है कि पुराना नियम `हाथ रखने` के बारे में बात करता है और नया नियम बपतिस्मा के बारे में बात करता है। तो? इसमें कौनसी बड़ी बात है?" एक ज्ञान-उन्मुख या सैद्धांतिक विश्वास वास्तविक विश्वास नहीं है, और यह अंततः विश्वासियों को परमेश्वर से दूर भटकने के लिए प्रेरित करता है। 
जो लोग इस तरह से विश्वास करते हैं वे उस छात्र की तरह हैं जो अपने शिक्षकों से केवल ज्ञान स्वीकार करता है। यदि छात्र वास्तव में अपने शिक्षकों का सम्मान करता है, तो वह उनके महान चरित्रों, नेतृत्व या महान व्यक्तित्वों से भी सीखेगा। हमें परमेश्वर के वचन को केवल एक और ज्ञान के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने हृदय से परमेश्वर के व्यक्तित्व, प्रेम, दया और न्याय के बारे में सीखना चाहिए। हमें उसके वचन को केवल ज्ञान के रूप में सीखने की कोशिश करने के विचार से छुटकारा पाना चाहिए, लेकिन उसकी धार्मिकता के साथ एक होना चाहिए। परमेश्वर की धार्मिकता में शामिल होने से विश्वासियों को सच्चा जीवन प्राप्त होता है। प्रभु के साथ एक हो जाओ! एक संयुक्त विश्वास ही सच्चा विश्वास है। एक सैद्धान्तिक और ज्ञानोन्मुख विश्वास संयुक्त विश्वास नहीं है, बल्कि एक उथला विश्वास है। 

"परमेश्वर की दया," जैसा कि एक भजन में गाया जाता है, "एक दिव्य सागर, एक असीम और अथाह बाढ़ है।" जब हमारे हृदय परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक हो जाते हैं, तो परमेश्वर की दया के समान असीम और अथाह शांति होगी जिसने हमें उसकी धार्मिकता प्रदान की है। लेकिन एक सैद्धांतिक और ज्ञान-उन्मुख विश्वास जो परमेश्वर से नहीं जुड़ा है, वह उथले पानी की तरह है। यदि समुद्र उथला है, तो उसमें आसानी से झाग आ जाता है, लेकिन नीली लहरों का शानदार प्रवाह, जहाँ समुद्र का पानी बहुत गहरा होता है, अवर्णनीय है। लेकिन उथले पानी में, जब लहरें किनारे से टकराती हैं, तो वे थक जाती हैं, टूट जाती हैं, झाग बन जाता है और गड़बड़ हो जाती है। जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एकजुट नहीं हैं उनके विश्वास उथले पानी में इन लहरों के समान हैं। 
जो लोग परमेश्वर के वचन से जुड़े हुए हैं, उनके ह्रदय गहरे हैं, प्रभु के चारों ओर केंद्रित हैं, सभी परिस्थितियों में दृढ़ और स्थिर हैं। उनका हृदय परमप्रधान की इच्छा की ओर गति करता है। लेकिन जिनके ह्रदय परमेश्वर धार्मिकता से जुड़े नहीं हैं, वे थोड़ी सी भी परेशानी पर आसानी से हिल जाते हैं। 
हमारे पास ऐसा विश्वास होना चाहिए जो प्रभु के साथ जुड़ा हो। हमें परमेश्वर के वचन से जुड़ना चाहिए। हमें छोटी-छोटी बातों पर विचलित नहीं होना चाहिए। जो प्रभु के साथ एक हो गए हैं, उन्होंने मसीह के साथ बपतिस्मा लिया, मसीह के साथ मर गए, और मृत्यु से मसीह के साथ फिर से जी उठे। चूँकि अब हम संसार के नहीं हैं, इसलिए हमें परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक होना चाहिए ताकि उसे प्रसन्न किया जा सके, जिसने हमें धार्मिकता के सेवकों के रूप में स्वीकार किया है। 
यदि हम परमेश्वर की धार्मिकता के साथ एक हो जाते हैं, तो हम हमेशा शांति, खुश और सामर्थ से भरे रहेंगे क्योंकि प्रभु की सामर्थ हमारी हो जाएगी। उनकी सामर्थ और आशीष हमारे लिए है, हम महान आशीष के साथ रहेंगे। यदि हम यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उनकी मृत्यु में विश्वास के द्वारा शामिल हो जाते हैं, तो उनकी सारी सामर्थ हमारी अपनी हो जाएगी। 
अपने हृदय को प्रभु से मिलाओ। यदि आप प्रभु के साथ एक हो जाओगे, तो आप परमेश्वर की कलीसिया के साथ भी एक हो जाओगे। और जो परमेश्वर के साथ एक हो गए हैं, वे एक दूसरे के उनकी संगति में, उसके कार्यों में और एक साथ, उसके वचन में अपने विश्वास में बढ़ते हुए एक हो जाएंगे।
यदि हम अपने हृदयों को मसीह के साथ नहीं जोड़ते हैं, तो, हम सब कुछ खो देंगे। भले ही हमारा विश्वास राई के दाने जितना छोटा हो, प्रभु ने हमारे पापों को हमेशा के लिए माफ़ कर दिया है। हमें अपनी कमजोरियों के बावजूद हर दिन इस सच्चाई से जुड़ना चाहिए। केवल एक संयुक्त विश्वास ही आपको जीवित रहने देगा और यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर को धन्यवाद देगा। 
जब हम प्रभु की धार्मिकता के साथ एक हो जाते हैं, तो हमें नई सामर्थ मिलती है और हमारे हृदय स्थिर हो जाते हैं। जब हम परमेश्वर के वचन के साथ एक हो जाते हैं तो हमारे हृदय धर्मी हो जाते हैं। अपने मन का अनुसरण करके प्रभु की सेवा करने का संकल्प प्राप्त करना असंभव है। जब हम यीशु के बपतिस्मा, उसके क्रूस और पुनरुत्थान के साथ एक हो जाते हैं, तो हमारा विश्वास बढ़ेगा और पवित्रशास्त्र पर दृढ़ता से स्थिर होगा। 
हमें अपने हृदयों को प्रभु के साथ जोड़ना चाहिए। केवल वह विश्वास जो उसके साथ जुड़ा हुआ है, वही सच्चा विश्वास है; जो उसके साथ नहीं है, वह झूठा विश्वास है।
हम परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें यीशु का बपतिस्मा और क्रूस पर उसका लहू देकर अपने विश्वास को प्रभु के साथ जोड़ने की अनुमति दी। इस दिन से लेकर अंतिम दिन तक, जब हम फिर से प्रभु से मिलेंगे, हमें उसके साथ अपने हृदयों को एक करना चाहिए। आइए हम उसके साथ एक हो जाएं। 
हमें अपने हृदयों को परमेश्वर के साथ जोड़ने की आवश्यकता है क्योंकि हम उसके सामने कमजोर हैं। पौलुस भी परमेश्वर के साथ एक हो गया और उसके पापों से मुक्त हो गया। वह परमेश्वर का अनमोल सेवक बन गया, जिसने यीशु मसीह के द्वारा दी गए पानी और आत्मा के सुसमाचार को जानकर उसपर विश्वास किया जो परमेश्वर की धार्मिकता था और पूरी दुनिया में सुसमाचार का प्रचार किया। क्योंकि हम कमजोर है, इसलिए अपने मन से परमेश्वर की व्यवस्था की सेवा कर रहे हैं, लेकिन हमारे शरीर के साथ पाप की व्यवस्था की सेवा करते है, हम केवल प्रभु के साथ एकजुट होकर रह सकते हैं। 
क्या आपने अब उस विश्वास के बारे में सीखा है जो यीशु की धार्मिकता के साथ जुड़ता है? क्या आपका विश्वास यीशु के बपतिस्मा से जुड़ा है? अब आपके लिए एक संयुक्त विश्वास का समय है जो यीशु के बपतिस्मा और लहू में विश्वास करता है। जिनका विश्वास परमेश्वर की धार्मिकता से जुड़ा नहीं है, वे अपने विश्वास में, अपने उद्धार में और अपने जीवन में असफल हो गए हैं। 
इसलिए, प्रभु की धार्मिकता आपके छुटकारे के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। प्रभु के साथ एक होना वह आशीष है जो हम सभी को पापों की माफ़ी प्राप्त करने और परमेश्वर की संतान बनने की ओर ले जाता है। अपने आप को एकजुट करके और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त करें। तब परमेश्वर की धार्मिकता आपकी हो जाएगी, और परमेश्वर की आशीष हमेशा आपके साथ रहेगा। 
 

यीशु मसीह के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दे!
 
प्रेरित पौलुस ने कहा कि उसने हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद किया। उसने यीशु मसीह के माध्यम से विश्वास के द्वारा प्राप्त परमेश्वर की धार्मिकता के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया। पौलुस के परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने के बाद भी, वह अपने मन से परमेश्वर की व्यवस्था और अपने शरीर से पाप की व्यवस्था की सेवा नहीं कर सकता था। परन्तु चूँकि वह परमेश्वर की धार्मिकता पर पूरे मन से विश्वास करता था, इसलिए उसके मन में कोई पाप नहीं था। 
पौलुस ने अंगीकार किया कि वह पहले से ही यीशु मसीह में व्यवस्था के द्वारा दोषी ठहराया गया था, और परमेश्वर की धार्मिकता के कारण विश्वास के द्वारा पाप से बचाया गया था। उसने यह भी कहा कि जो लोग परमेश्वर के क्रोध और उसकी व्यवस्था की सजा का सामना कर रहे थे, वे अभी भी अपने हृदयों में परमेश्वर की धार्मिकता पर विश्वास करके उद्धार का फल प्राप्त करने में सक्षम होंगे। नया जन्म प्राप्त करने वालों के ह्रदय में, पवित्र आत्मा की इच्छाएँ और साथ ही देह की इच्छाएँ होती हैं। लेकिन जो व्यक्ति नया जन्म प्राप्त नहीं करता है उसके पास केवल देह की वासनाएं होती हैं। इसलिए पापी केवल पाप की कामना करते हैं। और इससे अधिक, वे अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के माध्यम से दूसरों की आंखों के सामने अपने पापों को सुशोभित करने का प्रयास करते हैं। 
डीकन और प्राचीन जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे आमतौर पर कहते हैं, "मैं सदाचार से जीना चाहता हूँ, लेकिन मुझे नहीं पता कि यह इतना कठिन क्यों है।" हमें इस पर विचार करना चाहिए कि वे क्यों इस तरह से जीवन जीते हैं। इसका कारण यह है कि वे पापी हैं जिन्होंने परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके उद्धार प्राप्त नहीं किया है। उनके हृदय में पाप है, क्योंकि उनमें परमेश्वर की धार्मिकता नहीं पाई जाती। परन्तु नया जन्म पाए लोगों के हृदयों में परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्र आत्मा दोनों हैं, परन्तु पाप नहीं।
जन पौलुस के ह्रदय में पाप था, तब उसने विलाप किया, “क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा? हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद हो” (रोमियों ७:१९, २४-२५)। इसका मतलब है की उसने यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा जिसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया उसके द्वारा अपने सारे पापों से उद्धार प्राप्त किया। 
अध्याय ७ में पौलुस जो कहना चाह रहा था, वह यह है कि पहले, जब उसका नया जन्म नहीं हुआ था तब वह धार्मिक था, वह नहीं जानता था कि व्यवस्था की भूमिका क्या है। लेकिन उसने कहा कि जिसने उसे पाप के कारण उस अभागी स्थिति से छुड़ाया, वह यीशु मसीह था, जिसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया था। जो कोई यह विश्वास करेगा कि यीशु मसीह ने हमें पाप से छुड़ाने के लिए परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया वह बच जाएगा। 
जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं, वे मन से परमेश्वर की व्यवस्था की सेवा करते हैं, लेकिन शरीर के साथ पाप की व्यवस्था की सेवा करते हैं। उनका शरीर अभी भी पाप की ओर झुकता है क्योंकि यह अभी तक बदला नहीं गया है, हालाँकि उनका नया जन्म हुआ है। शरीर पाप करना चाहता है, परन्तु मन, जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करता है, परमेश्वर की धार्मिकता का अनुसरण करना चाहता है। दूसरी ओर, जिन लोगों को पापों की माफ़ी नहीं मिली है, उनके मन और शरीर दोनों ही केवल पाप करने के लिए प्रेरित होंगे, क्योंकि उनके हृदय के मूल में पाप पाया जाता है। परन्तु जो परमेश्वर की धार्मिकता को जानते हैं और उस पर विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर धार्मिकता का पालन करते हैं। 
हम यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, क्योंकि मसीह ने परमेश्वर की सब धार्मिकता को पूरा किया है। हमें परमेश्वर धार्मिकता देने और उसमें विश्वास करने के लिए नेतृत्व करने के लिए प्रभु का धन्यवाद हो।