(मती ७:२१-२३)
‘जो मुझ से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!ʼ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?ʼ तब मैं उनसे खुलकर कह दूंगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।’
हो सकता है उनमें से मैं एक हूँ -
क्या वे सब जो, हे प्रभु, हे प्रभु कहते हैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे?
नहीं, केवल वे जो पिता की इच्छा पर चलते हैं
यीशु मसीह कहता है, ‘जो मुझ से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!ʼ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।’ इन शब्दों से बहुत से मसीहियों के मनों में अचानक डर पैदा हो जाएगा। इस कारण वे परमेश्वर की इच्छा पर चलने हेतु कठोर परिश्रम करेंगे।
अधिकांश मसीही सोचते हैं कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए केवल उन्हें यीशु पर विश्वास करना जरूरी है, परन्तु मत्ती ७:२१ हमें कहता है कि प्रत्येक जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु़’ कहता है, वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा।
अनेक लोग जो इस पद को पढ़ेंगे, वे आश्चर्य में पड़ जाएंगे। ‘हो सकता है, मैं ही उनमें से एक हो सकता हूँ।ʼ वे अपने आप को यह समझाने की कोशिश करते हैं की, यीशु ने यह अविश्वासियों से कहा है। परंतु यह विचार उनके मनो में रहेगा, और लगातार उन्हें चिंता में डाले रहेगा।
इसलिए, वे इस पद के बाद के हिस्से को मजबूती से पकड़ते हैं, ‘परन्तु जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है, वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेगा।ʼ जो इन शब्दों को मजबूती से पकड़े हैं, वे ‘मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।ʼ और वे सोचते हैं कि वे विश्वासयोग्यता से दान देने से, सुबह शाम प्रार्थना करने से, प्रचार करने से, भलाई के कार्यों से, और पाप नहीं करने से वे ऐसा करने का प्रयत्न भी करते हैं। ऐसा करते देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ।
बहुत से लोग गलतियां करते हैं क्योंकि वे इस पद को नहीं समझते हैं। इसलिए मैं इस पद की स्पष्ट व्याख्या करना चाहूँगा, ताकि हम सब परमेश्वर की इच्छा को जान सकें और इसके द्वारा जीवित रहें।
पहले हमें यह जानना चाहिए की परमेश्वर की इच्छा अपने पुत्र के लिए यह है की वह सब लोगों के पापों को उठा ले और इस प्रकार से हमें पाप मुक्त करे।
इफिसियों १:५ में, यह लिखा है, ‘और अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों।
दूसरे शब्दों में, उसका अभिप्राय हमारे लिए यह है कि हम सच्चे सुसमाचार को जानें कि यीशु मसीह ने हमारे सब पापों को धो दिया है; इस तरह हमारा नया जन्म होता है। वह हमसे चाहता है कि पानी और आत्मा से नया जन्म लेने के द्वारा हमारे सारे पापों को उसके पुत्र यीशु को सौंप दिया जाता है। यह परमेश्वर की इच्छा है।
जो मुझे ‘हे प्रभुʼ, ‘हे प्रभुʼ कहते हैं!
जब हम यीशु पर विश्वास करते हैं, तो हमें क्या जानना चाहिए?
स्वर्गीय पिता की इच्छा
‘जो मुझे से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!‘ कहता है, उसमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगाʼ (मत्ती ७:२१)।
हम पिता की इच्छा को दो तरह से समझ सकते हैं। प्रथम, हम जानते हैं कि यह उसकी इच्छा है कि हम अपने पापों से क्षमा प्राप्त करें और पानी और आत्मा से नया जन्म पाएं। दूसरा, उस विश्वास के आधार पर हम कर्म करें।
पृथ्वी पर सब मनुष्यों के पापों को मिटाना यह उसकी इच्छा है। शैतान पाप के द्वारा हमारे पूर्वज आदम को पाप में गिराने का कारण बना। परन्तु हमारे परमेश्वर पिता की इच्छा सब मनुष्यों के पापों को पूर्णरीति से मिटा देना है। हमें समझना चाहिए कि हमारे लिए पिता की इच्छा यह नहीं है कि हम विश्वासयोग्यता से दसवांश और भोर की प्रार्थना बलि चढ़ाएं, लेकिन वह हमें सारे पापों से बचाना चाहते है। हम सब को पाप के सागर में डूबने से बचाना उसकी इच्छा है।
बाइबल कहती है कि वे सब जो मुझे, ‘हे प्रभुʼ, ‘हे प्रभुʼ कहते हैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। इसका अर्थ हैं कि हम यीशु में न केवल विश्वास करें, वरन् हमारे अपने स्वर्गिक पिता हमसे क्या चाहते हैं, उसे जानें। पाप से और नरक के दण्ड से हम सब को बचाना उसकी इच्छा है। आदम और हव्वा से प्राप्त विरासत को जानने का मतलब है की हम पाप में जी रहे है।
परमेश्वर की इच्छा
परमेश्वर की इच्छा क्या है?
पाप से मुक्त करने के द्वारा हमें अपनी संतान बनाना
मत्ती ३:१५ कहता है, ‘अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।ʼ इसी प्रकार परमेश्वर की योजना पूरी हुई कि पाप से हम सब को बचाने के लिए यीशु इस संसार में आए। जब यीशु ने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा बपतिस्मा लिया, तभी परमेश्वर की इच्छा पूरी हो गई।
वह हमें बचाना और अपनी संतान बनाना चाहते हैं। इसलिए, उसके पुत्र ने हमारे सब पापों को अपने ऊपर उठा लिया ताकि वह सब लोगों को अपनी संतान बनाए, यह उसकी इच्छा थी और जो लोग शैतान के चंगुल में फंस गए थे, उनके सब पापों को उठाने के लिए अपने पुत्र को भेजा। सब मनुष्यों के लिए उसने अपने पुत्र को दे दिया, यह उसकी इच्छा थी जिससे वे उसके संतान बन सकें।
जब यीशु ने बपतिस्मा लिया और क्रूस पर मारा गया, तब परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण किया। उसकी यह भी इच्छा है की हम विश्वास करें कि जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, तब हमारे सारे पापों को उस पर डाल दिया दिया और क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा उसने हमारे सारे अपराधों के लिये दण्ड सहा।
‘क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दियाʼ (यूहन्ना ३:१६)। परमेश्वर ने अपने लोगों को पापों से बचाया। ऐसा करने के लिए यीशु ने अपनी सार्वजनिक सेवकाई के आरंभ में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा बपतिस्मा लिया।
‘यीशु ने उत्तर दिया, ‘अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है।ʼ (मत्ती ३:१५)। यह परमेश्वर की इच्छा थी कि यीशु इस संसार में आए, अपने बपतिस्मा के द्वारा संसार के सारे पापों को अपने ऊपर लेकर, क्रूस पर मरे, और फिर जी उठे।
हमें यह स्पष्ट जानना चाहिए। बहुत से लोग मत्ती ७:२१ पढ़ते और सोचते हैं, कि उसकी इच्छा है कि हम अपनी भौतिक सम्पत्तियों को भेंट कर कलीसिया बनाएं और जीवन के अंतिम क्षण तक उसकी सेवा करें।
मसीही साथियों हम जो यीशु पर विश्वास करनेवाले है उनको पहले परमेश्वर की इच्छा को जानना हैं और फिर इसे करना है।
परमेश्वर की इच्छा जाने बिना अपने आपको कलीसिया के लिए समर्पित करना आपके लिए गलत है।
लोग अपने आप से पूछें कि क्या रुढ़िवादी कलीसिया के अन्दर विश्वास में जीने के सिवाय और क्या कार्य हो सकते हैं। परंतु मैंने स्वयं प्रेसबिटेरियन कलीसिया में केल्विनवाद की शिक्षा प्राप्त कि और गोद लिए माता के नियंत्रण में जो एक अनुभवी पास्टर के समान धार्मिक थी, मेरा पालन पोषण किया गया। मैं तथा कथित ‘आर्थोडाक्स कलीसियाʼ में यह सिखा था।
पौलुस प्रेरित कहता हैं कि मुझे गर्व था कि मैं बिन्यामीन के गोत्र से हूँ और मैंने गमलीएल के चरणों में अध्ययन किया, वह उस समय एक महान रब्बी था। नया जन्म पाने से पहले पौलुस, यीशु में विश्वास करनेवाले लोगों को बंदी बनाता था। परन्तु उसने दमिश्क के मार्ग पर यीशु में विश्वास को प्राप्त किया और पानी और आत्मा से नया जन्म लेने की आशीष के द्वारा धर्मी हो गया।
यह करने से पहले हमें परमेश्वर की इच्छा को जानना चाहिए
यीशु में विश्वास करने से पहले हमें क्या जानना आवश्यक है?
पहले हमें उसकी इच्छा को जानना चाहिए
हमारा पवित्रीकरण परमेश्वर की इच्छा है ‘क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है कि तुम पवित्र बनो: अर्थात् व्यभिचार से बचे रहोʼ (१ थिस्सलुनीकियों ४:३)। हम जानते हैं कि यह परमेश्वर की इच्छा है कि हम पूरी रीति से ‘पानी और आत्मा’ के द्वारा पवित्र होकर विश्वास में जीवन बिताएं।
यदि यहाँ पर ऐसा कोई व्यक्ति है जो यीशु पर विश्वास करता है, और उसके हृदय में पाप है, तो वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं जी रहा है। यदि वह सोचता है कि हमें पवित्रीकरण के द्वारा यीशु में उद्धार मिलता है, तो हमें जानना है कि यह परमेश्वर की इच्छा पूरा करने से होता है।
जब मैं आपसे पूछता हूँ की, ‘क्या यीशु पर विश्वास करने के बावजूद भी आपके हृदय में पाप है?ʼ और आपका जवाब हाँ है, तब स्पष्ट है कि आप अभी भी परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानते। यह परमेश्वर की इच्छा है कि पवित्र बनें और ‘पानी और आत्मा’ में विश्वास करने के द्वारा अपने सारे पापों से बच जायें।
एक व्यक्ति था उसके दो आज्ञाकारी बेटे थे। एक दिन उसने अपने बड़े बेटे को बुलाया। वह बहुत आज्ञाकारी था, और कहता है, ‘पुत्र गांव के उस ओर के मैदान में जाओ ............‘
बात पूरी होने से पहले, बेटे ने कहा, ‘हाँ‘, पिताजीʼ और चला गया। उसे क्या करना है यह जाने बिना ही, वह तुरंत जाने लगा।
उसके बाद पिता ने दूसरे पुत्र को बुलाया, ‘पुत्र, यह बहुत खुशी की बात है और अच्छा है कि तुम बहुत आज्ञाकारी हो परन्तु तुम जानते हो तुम्हें क्या करना है?ʼ
परन्तु पुत्र ने कहा, ‘यह ठीक है, पिताजी। मैं आपकी आज्ञा पालन करुंगा। मुझ से अच्छा आपका आज्ञाकारी कौन है?ʼ
परन्तु, वह खाली हाथ लौट आया। पिता उससे क्या करवाना चाहते थे यह जाने बिना उसके पास करने के लिए कुछ नहीं था। उसने केवल बिना सोचे समझे आज्ञापालन किया।
यदि हम यीशु मसीह को नहीं जानते तो हम भी उसी के जैसे हो सकते हैं। बहुत से लोग जो अपने आप को समर्पित करते हैं, थियोलॉजिकल सिद्धांतों का पालन करते हैं, ईमानदारी से दान देते हैं, रात्रि जगारण, प्रार्थना करते, उपवास करते . . . ये सब परमेश्वर की इच्छा जाने बिना करते हैं।
जब वे अपने हृदय में पाप लिए मर जाते हैं, वे स्वर्ग के द्वार से लौट जाते हैं। वे परमेश्वर की इच्छा को उत्सुकता के साथ करना चाहते हैं, परन्तु नहीं जानते परमेश्वर क्या चाहता है।
विधि विहीनता के आचरण का क्या अर्थ है?
पानी और आत्मा के सुसमाचार को जाने बिना एक पापी के जैसे यीशु में विश्वास करना ।
‘उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे खुलकर कह दूंगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ’ (मत्ती ७:२२-२३)।
परमेश्वर चाहता है की हम इन बातों को करें और वह हमसे विश्वास की मांग भी करता है। वह चाहता है कि हम विश्वास करें कि यीशु ने हमारे सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया है। फिर भी उसके पानी और आत्मा की सच्चाई को जाने बिना बहुत सी भविष्यवाणी करना, दुष्टात्मा निकालना, और उसके नाम में चमत्कार करना।
चमत्कारों को करने का अर्थ है, बहुत सी कलीसियायें बनाना, कलीसिया को दान देने के लिए प्रत्येक सम्पति को बेचना, सब चीजों के बीच में स्वयं के जीवन को प्रभु के लिए समर्पित करना।
उसके नाम में भविष्यवाणी करने का अर्थ है, एक अगुवा बनना। ऐसे लोग फरीसियों के समान हैं जो व्यवस्था के अनुसार जीने का गर्व करते हैं जबकि वे यीशु को अत्यंत नाराज करते हैं। यह बात उन रुढ़िवादी मसीहियों पर भी लागू होती है।
दुष्टात्माओं को बाहर निकालने का मतलब है सामर्थ का अभ्यास करना। वे सब अपने विश्वास में अधिक उत्साह से भरे होते हैं, परन्तु अंत में परमेश्वर की इच्छा उन्हें कहती है कि वह उन्हें नहीं जानता। परमेश्वर उनसे पूछेगा कि वे कैसे परमेश्वर को जानते हैं, जबकि परमेश्वर उन्हें जानता ही नहीं है।
प्रभु कहता है, तब मैं उनसे खुलकर कह दूंगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।’ उस दिन, लोगों की भीड़ की भीड़ चिल्ला उठेगी, ‘प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ। मैं विश्वास करता हूँ कि आप मेरे मुक्तिदाता हो।ʼ वे कहेंगे कि वे उसे प्रेम करते हैं, परन्तु उनके मनों में पाप है। प्रभु उनसे कहेगा, हे कुकर्मियों और उनसे कहेगा मुझसे दूर हो।
उस दिन, वे जो नया जन्म लिए बिना मर गए हैं, यीशु के सम्मुख चिल्लाएंगे। ‘मैंने भविष्यवाणी की, कलीसियाएं बनाई और तेरे नाम से ५० मिशनरियों को भेजा।ʼ
परन्तु, यीशु उत्तर देगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।’
‘आपका मतलब क्या है? क्या आप नहीं जानते कि मैंने आपके नाम में भविष्यवाणी की? बहुत वर्षों से मैंने कलीसिया में सेवा की, मैंने दूसरों को आप में विश्वास करने के लिए बताया। आप कैसे मुझे नहीं जानते हैं?
वह उत्तर देगा, ‘मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना। मुझे जानने का दावा करनेवाले तुम कौन हो? फिर भी तुम्हारे हृदय में अब भी पाप है, मुझसे दूर हो!ʼ
परमेश्वर के सम्मुख एक व्यक्ति के हृदय में पाप के साथ विश्वास करना या उसके उद्धार की व्यवस्था के अनुसार विश्वास न करना, यह परमेश्वर के सम्मुख कुकर्म है। उसकी इच्छा को नहीं जानना, यह कुकर्म है। पानी और आत्मा से नया जन्म लेने की आशीष को समझे बिना या उसकी इच्छा जाने बगैर इसे करने का प्रयास करना, यह कुकर्म है। उसकी इच्छा का पालन किए बगैर बगैर उसका अनुसरण करना, यह भी कुकर्म है। कुकर्म एक पाप है।
बाइबल में परमेश्वर की इच्छा
कौन परमेश्वर की संतान है?
धर्मी जिसमें पाप नहीं है
यह हमारे लिए उसकी इच्छा है कि पानी और आत्मा से नया जन्म लेने के सुसमाचार में विश्वास करे। सच्चा सुसमाचार हमारे नये जन्म को प्रोत्साहित करता है। यह भी उसकी इच्छा है कि हम उसकी संतान की भांति सुसमाचार के लिए जीएं। हमें परमेश्वर की इच्छा को जानना चाहिए, परन्तु बहुत से लोग पानी और आत्मा से नया जन्म लेने के सुसमाचार को नहीं जानते।
जब मैं लोगों से पूछता हूँ, क्यों वे यीशु पर विश्वास करते हैं? अधिकांश कहते हैं कि वे अपने पापों से बचने लिए यीशु में विश्वास करते हैं।
मैं तब पूछता हूँ, ‘क्या तुम्हारे हृदय में पाप हैं?
वे कहते हैं, ‘अवश्य है।ʼ
‘तब, क्या तुम बचाए गए या नही?ʼ
‘अवश्य मैं बचाया गया हूँ।ʼ
‘क्या एक पापी जिसके हृदय में पाप है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है?ʼ
‘नहीं, वह नहीं कर सकता।ʼ
‘तब, फिर क्या आप स्वर्ग के राज्य में जा रहे हैं या नरक की अग्नि में जा रहे हैं?ʼ
वे कहते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में जा रहे हैं;
परन्तु क्या वे जा सकते हैं? वे अवश्य नरक में जाएंगे।
कुछ लोग सोचते हैं कि वे यीशु में विश्वास करते हैं। वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं भले ही उनके हृदय में पाप क्यों ना हो, यह परमेश्वर की इच्छा है। परन्तु परमेश्वर स्वर्ग के राज्य में पापियों को ग्रहण नहीं करेगा।
परमेश्वर की इच्छा क्या है? यह बाइबल में कहा गया है कि हम उसके पुत्र में विश्वास करें, यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू के द्वारा छुटकारा पाने की आशीष में विश्वास करें, यही हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा है।
वे जो पानी और आत्मा से नया जन्म लेने की आशीष में विश्वास करते हैं उसकी संतान बन जाते हैं। उसकी संतान होना यह हमारी उपलब्धि है। उसकी संतान धर्मी होते हैं।
जब परमेश्वर हमें धर्मी कहकर पुकारता है, क्या वह एक पापी मसीही को धर्मी जैसा सम्मान देता है? परमेश्वर कभी झूठ नहीं कह सकता। इसलिए उसके सम्मुख, या तो आप एक पापी हैं या एक धर्मी व्यक्ति। वहाँ निष्पाप होने के बारे में आप कभी सोच नहीं सकते। वह केवल उन्हें बुलाता है जो पानी और आत्मा के सुसमाचार से पवित्र किए जाने में विश्वास करते हैं।
हम कैसे परमेश्वर की संतान बन सकते हैं?
पानी और लहू के सुसमाचार को स्वीकार करने के द्वार
क्योंकि परमेश्वर ने संसार के सारे पापों को अपने पुत्र के ऊपर डाल दिए, और फिर स्वयं उसके पुत्र को क्रूस पर दण्ड दिया गया। परमेश्वर ने कभी झूठ नहीं कहा है। वह कहता है, ‘पाप की मजदूरी है मृत्युʼ (रोमियों ६:२३)। जब परमेश्वर का पुत्र मरा, तीन घण्टे के लिए पृथ्वी पर अन्धकार छा गया।
‘तीसरे पहर के निकट यीशु ने बड़े शब्द से पुकारकर कहा, ‘‘एली, एली, लमा शबक्तनी?ʼ’ अर्थात् ‘हे मेरे परमेश्वर, हे मरे परमेश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?ʼ (मत्ती २७:४६)।
सब लोगों को उनके पापों से बचाने के लिए यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा संसार के सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया। उसने यह जानते हुए की उसे क्रूस पर चढ़ाया जाएगा और अपने पिता परमेश्वर से त्यागा जाएगा फिर भी मनुष्यजाति के पापों को अपने ऊपर ले लिया। इसलिए परमेश्वर ने संसार के सारे पापों के लिए अपने पुत्र को दण्ड दिया। उसने यरदन नदी में सारे पापों को धो दियाʼ फिर भी परमेश्वर ने तीन घण्टे के लिए अपने पुत्र से मुंह फेर लिया था।
‘परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैंʼ (यूहन्ना १:१२)
क्या आप परमेश्वर की संतान हैं? हम नया जन्म लेते हैं क्योंकि हमने पानी और आत्मा से नया जन्म लेने के सुसमाचार को स्वीकार किया है। वे जो पानी और आत्मा से नया जन्म लेते हैं, वे धर्मी हैं। अब हम सब धर्मी हो गए हैं।
‘यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोध कौन हो सकता है?ʼ (रोमियों ८:३१)। जब परमेश्वर के सम्मुख एक धर्मी मनुष्य अपने आप को धर्मी कहता है और वे लोग, जो छूटकारा पाने पर ध्यान नहीं देते, उनका न्याय होगा। इसलिए पौलुस प्रेरित कहता हैं, ‘परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर ही है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है’ (रोमियो ८:३३)। यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर ने हमारे सारे पापों को मिटा दिया है और हमें पवित्र होने, धर्मी और उसकी संतान होने के लिए बुलाता है। वह हमें परमेश्वर की गौरवपूर्ण संतान होने का अधिकार प्रदान करता है।
वे जो पानी और आत्मा से नया जन्म लेते हैं, वे उसकी संतान हैं। वे उसके साथ अनंतकाल तक रहेंगे। वे इस संसार में प्राणी मात्र नहीं, वरन् परमेश्वर की संतान हैं, वे स्वर्ग जाएंगे।
अब वे परमेश्वर की धर्मी संतान हैं, ऐसा कोई नहीं है जो उनके ऊपर दोष लगा सके, उनका न्याय करें, या परमेश्वर से अलग कर सके।
यीशु में विश्वास करने के लिए हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार को जानना चाहिए। हमें बाइबल को जानना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम परमेश्वर की इच्छा को जानें और विश्वास करें ताकि उसकी इच्छा के अनुसार जीवन व्यतीत करें।
यह परमेश्वर की इच्छा है कि पापी का पानी और आत्मा से नया जन्म हो
क्यों परमेश्वर ने अपने पुत्र को पापी मनुष्य की समानता में भेजा?
उसके ऊपर सारे पापों को डालने के लिए
यह परमेश्वर की इच्छा है कि हम छुटकारा पाएं और पानी और आत्मा से नया जन्म पाएं। ‘परमेश्वर की इच्छा यह है कि तुम पवित्र बनोʼ (१ थिस्सलुनीकियों ४:३)।
अपने पुत्र को भेजना परमेश्वर की इच्छा थी। इसलिए सारे पापों को उस पर डाल दिया गया ताकि हमें बचा लिया जाए। यह आत्मा का नियम है कि हम पानी और आत्मा से नया जन्म प्राप्त करें। यह हमें सारे पापों से छूटकारा है।
हम छुड़ाए गए हैं। अब क्या आप सब परमेश्वर की इच्छा को पहचान सकते हैं? हम सब को बचा लेना, यह उसकी इच्छा है। वह नहीं चाहता कि संसार के साथ हम समझौता करें। लेकिन इसके बजाए वह चाहता कि हम उसके वचनों में विश्वास करें और केवल उसी की आराधना करें।
ईश्वर की यह भी इच्छा है कि जिनका नया जन्म हो गया है, वे सुसमाचार की गवाही दें और कलीसिया में रह कर अन्य आत्माओं को परमेश्वर के पास लाने के कार्य के लिए स्वयं का समर्पण करें।
हम पाप करते हैं, इसलिए नहीं कि हम पाप करना चाहते हैं, लेकिन हम कमजोर हैं इसलिए। परन्तु यीशु ने उन पापों को अपने ऊपर ले लिया है। परमेश्वर ने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा संसार के सारे पापों को यीशु के ऊपर डाल दिया। परमेश्वर ने अपने पुत्र को इसी अभिप्राय के लिए भेजा और यूहन्ना के द्वारा उसे बपतिस्मा दिया गया। हम इसमें विश्वास करने के द्वारा बचाए गये। यही परमेश्वर की इच्छा है।
हमारे लिए परमेश्वर की यह इच्छा है कि हम यीशु में विश्वास करें, जिसे उसने भेजा है।
क्यों यीशु पापी मनुष्य की समनता में आया?
मनुष्यजाति के सारे पापों को अपने ऊपर लेने के लिए
बाइबल कहती है कि जिसको परमेश्वर ने भेजा है उस पर विश्वास करना परमेश्वर की इच्छा को पूरा करना है। ‘उन्होंने उससे कहा, ‘परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें ?’ यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, ‘परमेश्वर का कार्य यह है कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।’ तब उन्होंने उससे कहा, ‘फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तेरा विश्वास करें? तू कौन सा काम दिखाता है? हमारे बापदादों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दीʼ (यूहन्ना ६:२८-३१)।
लोगों ने यीशु से कहा कि परमेश्वर ने मूसा को एक चिन्ह दिया जब वह कनान के मार्ग पर था, इस्राएलियों को उसने स्वर्ग से मन्ना दिया, और इस प्रकार उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया (यूहन्ना ६:३२-३९)। लोगों ने यीशु से पूछा, ‘परमेश्वर के कार्य करने के लिए हम क्या करें?’
यीशु ने उत्तर दिया, परमेश्वर का कार्य यह है कि जिसे उसने भेजा है उस पर विश्वास करो। यदि हम परमेश्वर के कार्य करते हैं, तो हमें यीशु मसीह के कार्यों में विश्वास करना है। न केवल विश्वास करें और सुसमाचार प्रचार करें वरन् आनंद से भरा जीवन जीएं, यही परमेश्वर की इच्छा है।
यीशु ने हमें आदेश दिया है, ‘इसलिये तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओʼ (मत्ती २८:१९-२०)।
यीशु हमसे स्पष्ट कहता हैं कि पिता, पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। सब कुछ उसने अपने पिता के लिए किया और पवित्र आत्मा उसके बपतिस्मा में सम्मिलित है। जब हम इसे समझते हैं, तब परमेश्वर पर हम विश्वास करते हैं और यीशु ने इस संसार में जो कुछ किया उसे देखते हैं और पवित्रात्मा द्वारा इसकी गवाही देते हैं।
पानी और आत्मा के सुसमाचार की गवाही देने के लिए, यीशु को परमेश्वर के द्वारा भेजा गया था। इसलिए जब हम केवल परमेश्वर के वचन में और उसके सेवक पर विश्वास करते है तब हम बच सकते हैं।
परमेश्वर का कार्य करना
हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है?
सारे संसार में सुसमाचार को फैलाने के द्वारा परमेश्वर की इच्छा पूरी करना
यदि हम परमेश्वर का कार्य करते हैं, तो पहले हमें यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के सुमाचार में विश्वास करना चाहिए। परमेश्वर का कार्य यह है कि जिसे उसने भेजा है, उस पर विश्वास करो। यीशु पर विश्वास करने के लिए, पहले हमें विश्वास करना चाहिए कि उसने पानी और लहू से हमें बचा लिया है।
जब हम यीशु पर विश्वास करते और सुसमाचार सुनाते हैं, तो परमेश्वर की इच्छा हमारे अन्दर पूर्ण हो जाती है। इस प्रकार हम परमेश्वर के कार्य करते हैं। वह हमसे कहता है कि वे जो पानी और आत्मा से नया जन्म लेने की आशीष में विश्वास करते हैं, वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।
आइए, हम निम्नलिखित आवश्यक सच्चाईयों के द्वारा स्वर्ग के राज्य में सब अपना स्थान प्राप्त करें। यीशु के बपतिस्मा के द्वारा हमारे सारे पापों को उसके ऊपर डाला गया है इस बात को जानकर और विश्वास कर हमें परमेश्वर की इच्छा को जानना चाहिए। उसके राज्य के विस्तार के लिए जीयें और अन्त में, मृत्यु के दिन तक सुसमाचार प्रचार करें।
साथी मसीहियों! जो पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर का कार्य करते हैं। परमेश्वर का कार्य यह है की, जिसे उसने भेजा है, उस पर विश्वास करना। यह विश्वास करना की परमेश्वर ने जिसे भेजा है उसके ऊपर सारे पापों को डाला गया है वह परमेश्वर का कार्य करना है और वह यीशु मसीह हमारा उद्धारकर्ता है।
पाप से मनुष्य को छूटकारा देने के लिए जब यीशु ने यरदन नदी में बपतिस्मा लिया और क्रूस पर हम सब के लिए मरा यह कार्य अति निपुणता से पूरा हुआ। परमेश्वर के कार्य का दूसरा भाग यह है कि जिसे उसने भेजा है उस पर विश्वास करो, उद्धारकर्ता में विश्वास करो जिसने संसार के सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया, और अब हम जो नया जन्म पाए हुए हैं, सारे संसार में सुसमाचार प्रचार करें।
अब हम जिन्होंने नया जन्म पाया है उन्हें संसार के अंत तक सुसमाचार के अनुसार जीवन जीना और उसका प्रचार करना है।
परमेश्वर की इच्छा को जाने बिना जो यीशु में विश्वास करते हैं, वे लोग कहाँ जाते हैं?
वे नरक में जाते हैं
‘उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे खुलकर कह दूंगा, ‘मैंने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ’ (मत्ती ७:२२-२३)
यह पद्यांश स्पष्ट कहता है कि परमेश्वर के सम्मुख कौन पापी है और कौन कुकर्म करनेवाले है।
यहाँ बहुत से लोग हैं जिनका नया जन्म नहीं हुआ है जो, हे प्रभु, हे प्रभु कहते हैं। वे पीड़ा में हैं क्योंकि उनके हृदय में अभी भी पाप है। इसलिए वे परमेश्वर को पुकारते हैं; आधे अधूरे मन से, अनुचित रीति से आराधना एवं प्रार्थना करते हुवे चीखते चिल्लाते हैं।
वे यह विश्वास करते हैं कि यदि वे प्रार्थना में रोते हैं, तो उनके अंतःकरण धुल जाएंगे, परन्तु यह असंभव है, क्योंकि उनके हृदय में अभी भी पाप है। वे पहाड़ों में प्रार्थना करते हैं, वे गहरी वेदना में पुकारते हैं, जैसे कि परमेश्वर बहुत दूर है। जब तक हमें पूर्ण भरोसा नहीं होता है, तब तक हम विनम्र होकर ‘हे प्रभु, हे प्रभुʼ पुकारते हैं।
कुछ कलीसियाओं के अंदर लोग जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे अत्यधिक उन्माद के साथ प्रार्थना करते हैं कि कलीसिया की पुलपिट टूट जाती है।
परन्तु, हम बाइबल में देख सकते हैं कि प्रत्येक मनुष्य जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु कहता है’, वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा। केवल वही जो पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करते हैं वही प्रवेश कर पाएंगे। यह विश्वास उन्हें परमेश्वर के कार्य करने में अगुवाई करता है।
बाइबल हमें बताती है कि अपने हृदय में पाप के साथ उसके नाम को पुकारना कुकर्म है। क्या आप कभी भी पहाड़ पर होनेवाली प्रार्थना सभा में गए हैं? कुछ बुजुर्ग महिला सेविकाएं रोती और विलाप करती हैं, उसके नाम को पुकारती रहती हैं क्योंकि वास्तव में वे कभी भी यीशु से नहीं मिली हैं, न ही कभी उन्होंने अपने हृदय में उसकी आत्मा को स्वीकार किया है, न कभी पानी और आत्मा से नया जन्म लिया है। ऐसे लोग उसके नाम को अति आवश्यक रुप में पुकारते हैं क्योंकि वे हमेशा डर में जीते हैं कि वे नरक में जाएंगे।
मान लें कुछ लोग जो अपने आप को एक मिशनरी या पादरी के रूप में सेवा करने के लिए अपना जीवन कलीसिया को समर्पित कर देते हैं, अन्त में उन्हें परमेश्वर के द्वारा बेकार जान कर छोड़ दिया जाएगा। माता-पिता या जीवन साथी द्वारा किसी को छोड़ दिया जाना, उसके हृदय को तोड़ने के लिए काफी है। परन्तु परमेश्वर राजाओं का राजा, आत्माओं का न्यायी, परमेश्वर द्वारा पूरी रीति से त्याग दिया जाये, तो हम कहाँ जाएंगे?
मुझे आशा है आप में से किसी के साथ कभी भी ऐसा न हो। कृपया इसे सुनें और पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास कीजिए। हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा यह है कि पानी और आत्मा के सुसमाचार में नया जन्म पाएं और उसी में जीवन व्यतीत करें।
हम मसीहियों को सचमुच पानी और आत्मा के सुसमाचार, यीशु के बपतिस्मा में विश्वास करना होगा और बाइबल की सच्चाइयों से सामर्थ प्राप्त करनी होगी। केवल तभी हम परमेश्वर के न्याय से बच सकते हैं।