( रोमियों ६:१२-१९ )
“इसलिये पाप तुम्हारे नश्वर शरीर में राज्य न करे, कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहो; और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आपको मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो। तब तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हो। तो क्या हुआ? क्या हम इसलिये पाप करें कि हम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं! क्या तुम नहीं जानते कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो उसी के दास हो : चाहे पाप के, जिसका अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञाकारिता के, जिसका अन्त धार्मिकता है? परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि तुम जो पाप के दास थे अब मन से उस उपदेश के माननेवाले हो गए, जिसके साँचे में ढाले गए थे, और पाप से छुड़ाए जाकर धार्मिकता के दास हो गए। मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूँ। जैसे तुम ने अपने अंगों को कुकर्म के लिये अशुद्धता और कुकर्म के दास करके सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धार्मिकता के दास करके सौंप दो।”
हम अधिक अनुग्रह के लिए पाप करना जारी नहीं रख सकते
प्रेरित पौलुस हमें बताता है कि रोमियों अध्याय ६ में पापों से उद्धार पाने के बाद धर्मी को कैसे जीना चाहिए। वह यीशु के बपतिस्मा के साथ `विश्वास` को फिर से स्पष्ट करता है। हमारे पापों को एक ही बार हमेशा के लिए बपतिस्मा, क्रूस और यीशु के पुनरुत्थान में विश्वास के द्वारा माफ़ कर दिया गया था।
हम यीशु के बपतिस्मा के बिना परमेश्वर की धार्मिकता और उद्धार से परिपूर्ण नहीं हो सकते। यदि यीशु ने बपतिस्मा लेते समय हमारे सभी पापों को दूर नहीं किया होता, तो हम पापों की माफ़ी प्राप्त करने के बाद यह नहीं कह सकते कि हम धर्मी हैं।
हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि हम धर्मी हैं क्योंकि हमारे सभी पाप यीशु पर पारित किए गए थे और क्योंकि उसे क्रूस पर चढ़ाया गया था और हमारे सभी पापों के लिए न्याय किया गया था। रोमियों अध्याय ६ विश्वास के द्वारा उद्धार और धर्मियों के व्यावहारिक जीवन दोनों की शिक्षा देता है। वह कहता है, “तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहे की अनुग्रह बहुत हो?" (रोमियों ६:१)। वह पिछले भागों में कहता है, "परन्तु जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी बहुत अधिक हुआ, कि जैसे पाप ने मृत्यु फैलाते हुए राज्य किया, वैसा ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनुग्रह भी अनन्त जीवन के लिए धर्मी ठहराते हुए राज्य करे" (रोमियों ५:२०-२१)। संसार के पाप परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता से बढ़कर नहीं हो सकते, चाहे वे कितने ही गंभीर क्यों न हों। सच्चे वचन में विश्वास के द्वारा परमेश्वर के प्रेम और धार्मिकता के द्वारा हमारे पापों को माफ़ किया गया।
बाइबल कहती है कि हम पाप में बने नहीं रह सकते कि अनुग्रह बहुत हो भले ही फिर हम जो देह में जीते है उन्होंने पापों की माफ़ी क्यों न पाई हो। “कदापि नहीं! हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उसमें कैसे जीवन बिताएँ? क्या तुम नहीं जानते कि हम सब जिन्होंने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया, उसकी मृत्यु का बपतिस्मा लिया। अत: उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें” (रोमियों ६:२-४)।
मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए
हमारी पुरानी देह यीशु के साथ क्रूस पर चढ़ गई। इसका मतलब है कि हम पाप के लिए मर चुके हैं। हमारे सभी पाप यीशु पर पारित हो गए और वह हमारे स्थान पर मर गया। इसलिए, यीशु की मृत्यु पाप के प्रति हमारी मृत्यु है। "इसलिये हम मृत्यु के बपतिस्मे के द्वारा उसके साथ गाड़े गए।" हमारी पुरानी देह को मृत्यु के बपतिस्मा के द्वारा उसके साथ गाड़ी गई थी।
प्रभु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया और पापियों के स्थान पर खुद क्रूस पर मरा। वह स्वभाव से पापरहित था। हालाँकि, उसने पापियों के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया और उनके स्थान पर न्याय सहा। क्या आप इस पर विश्वास करते हैं? उसे खुद न्याय सहन करने की आवश्यकता नहीं थी, परन्तु हम जो पापी थे, उस में न्याय किए गए, क्योंकि हमने यीशु मसीह में बपतिस्मा लिया है।
प्रेरित पौलुस ने यीशु के बपतिस्मा पर बहुत जोर दिया। हम यीशु के बपतिस्मा के बारे में भी प्रचार करते हैं। विश्वासयोग्य दृष्टिकोण से उसके बपतिस्मा के बारे में प्रचार करना गलत नहीं है। यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा पापियों के पापों को उठा लिया और उनके लिए मर गया ठीक वैसे जैसे पुराने नियम में पापी बलीपशु के सिर पर अपना हाथ रखने के द्वारा अपने पाप उसके ऊपर पारित करते थे और उसकी बलि चढाते थे।
यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने परमेश्वर के मेम्ने, यीशु को बपतिस्मा दिया। जब उसने पापबलि के रूप में बपतिस्मा लिया तो उसने जगत के सभी पापों को अपने ऊपर ले लिया। इसलिए, उसकी मृत्यु हमारी मृत्यु थी और सभी विश्वासियों की मृत्यु थी। यीशु मसीह में बपतिस्मा लेने वाले सभी लोगों को यीशु मसीह के साथ दफनाया गया था। जिन लोगों ने यीशु में बपतिस्मा नहीं लिया है, उन्हें न तो बचाया जा सकता है, न ही विश्वास कर सकते है, न ही खुद का नकार कर सकते है और न ही जगत पर जय पा सकते है।
केवल वह व्यक्ति जो यीशु मसीह के बपतिस्मा में विश्वास करता है, जानता है कि वह प्रभु में क्रूस पर मरा था। यह व्यक्ति खुद को नकारते हुए, जगत पर राज करता है और उस पर विजय प्राप्त करता है। वह परमेश्वर के वचन पर भरोसा कर सकता है और उस पर विश्वास कर सकता है। केवल वे, जो विश्वास करते हैं कि यीशु का बपतिस्मा जगत के सभी पापों को उठाने के लिए उनके लिए अनिवार्य तरीका है तभी वे पापों की माफ़ी, यानी उनका पूर्ण उद्धार प्राप्त करते हैं।
पापों की माफ़ी के द्वारा उद्धार का सार यीशु का बपतिस्मा और लहू है। यदि यीशु ने अपने बपतिस्मा के द्वारा पापियों के पापों को दूर नहीं किया होता, तो उनकी मृत्यु का हमारे उद्धार से कोई लेना-देना नहीं होता। उद्धार का आधार यीशु का बपतिस्मा है। जब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने उसे बपतिस्मा दिया तब जगत के सभी पाप यीशु पर पारित हो गए।
हम परमेश्वर के साथ जिलाए गए और नए जीवन की सी चाल चले
प्रेरित पौलुस कहता है, "अंत: उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए" (रोमियों ६:४)। वे सभी जिन्होंने यीशु मसीह में बपतिस्मा लिया था, उन्हें विश्वास के द्वारा छुटकारा मिला है, वे उसके भीतर गाड़े गए थे और उसके भीतर नया जीवन पाया। यह विश्वास बहुत बड़ा विश्वास है। उसके बपतिस्मा में विश्वास वह विश्वास है जो ठोस आधार पर स्थापित होता है।
“अत: उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें। क्योंकि यदि हम उसकी मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएँगे। हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया ताकि पाप का शरीर व्यर्थ हो जाए, और हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें” (रोमियों ६:४-६)। हम यीशु के बपतिस्मा में विश्वास के द्वारा परमेश्वर के साथ जुड़ सकते है।
अब जो यीशु मसीह में विश्वास करते हैं वे जीवन के नएपन में चल सकते हैं। हमारे पुराने शारीर जो नया जन्म पाने से पहले मौजूद थे, वे मर गए, और हम नए हो गए, और अब नया कार्य करने, नए तरीकों से जीने और नए विश्वासों के अनुसार जीने में सक्षम हैं। नया जन्म पाने वाला व्यक्ति पुरानी जीवनशैली और सोचने के तरीके में नहीं रहता है। हमारे सोचने के पुराने तरीकों को नकारने का कारण यह है कि हमारी पुरानी देह यीशु मसीह के साथ क्रूस पर मर गई है।
२ कुरिन्थियों ५:१७ कहता है, "पुरानी बातें बीत गई है; देखो, सब बातें नई हो गई है।” प्रभु ने हमारे पापों को दूर करने के लिए यरदन नदी में बपतिस्मा लिया, क्रूस पर चढ़ाया गया और मृतकों में से जी उठा। इस प्रकार, उसने सभी पापियों को उनके पापों से बचाया ताकि उन्हें जीवन के नएपन में चलने के लिए प्रेरित किया जा सके। हमारी पुरानी `चीजें` जैसे दुख, कठोरता, कड़वाहट और घायल ह्रदय बीत चुके है। अब हमारा नया जीवन शुरू हो गया है। उद्धार पाना हमारे नए जीवन का प्रारंभिक बिंदु है।
जब इस्राएल के लोग मिस्र से निकलकर कनान में प्रवेश किया तब परमेश्वर ने उन्हें फसह के पर्व का पालन करने के लिए कहा था। मिस्र से निर्गमन पाप से उद्धार को दर्शाती है। परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों से कहा, “फिर यहोवा ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा, “यह महीना तुम लोगों के लिये आरम्भ का ठहरे; अर्थात् वर्ष का पहला महीना यही ठहरे। इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो; इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपने अपने पितरों के घरानों के अनुसार, घराने पीछे एक एक मेम्ना ले रखो; और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिये मनुष्य कम हों, तो वह अपने सबसे निकट रहनेवाले पड़ोसी के साथ प्राणियों की गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना। तुम्हारा मेम्ना निर्दोष और एक वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ों में से लेना चाहे बकरियों में से। और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन गोधूलि के समय इस्राएल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें। तब वे उसके लहू में से कुछ लेकर जिन घरों में मेम्ने को खाएँगे उनके द्वार के दोनों अलंगों और चौखट के सिरे पर लगाएँ। और वे उसके मांस को उसी रात आग में भूँजकर अख़मीरी रोटी और कड़वे सागपात के साथ खाएँ। उसको सिर, पैर, और अंतड़ियों समेत आग में भूँजकर खाना, कच्चा या जल में कुछ भी पकाकर न खाना। और उसमें से कुछ भी सबेरे तक न रहने देना, और यदि कुछ सबेरे तक रह भी जाए, तो उसे आग में जला देना। और उसके खाने की यह विधि है : कमर बाँधे, पाँव में जूती पहिने, और हाथ में लाठी लिए हुए उसे फुर्ती से खाना; वह तो यहोवा का पर्व होगा” (निर्गमन १२:१-११)। हमें याद रखना चाहिए की परमेश्वर ने फसह के पर्व में उन्हें अखमीरी रोटी के साथ मांस और कड़वे सागपात खाने की आज्ञा दी थी।
पापों से उद्धार पाने के बाद कई कड़वी चीजे आएगी। कड़वा सागपात खुद का नकार करने को दर्शाता है। निश्चय ही कठिनाइया आएगी, फिर भी हमें याद रखना है की हम मसीह के साथ गाड़े गए थे। “क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिये एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है तो परमेश्वर के लिये जीवित है। ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो” (रोमियों ६:१०-११)।
यह यीशु के साथ एक होने का हृदय है। हम यीशु के बपतिस्मा, क्रूस और पुनरुत्थान में विश्वास करके एक हो जाते हैं, जिसे उन्होंने परिपूर्ण किया। उनकी सेवकाई में उनका जन्म, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा प्राप्त करना, क्रूस पर चढ़ना, पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण और मृतकों का न्याय करने के लिए उनका फिर से आना शामिल है। उन सब बातों पर विश्वास करना ही सच्चा विश्वास है, अर्थात् उद्धार, न्याय और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास।
रोमियों ६:१० कहता है, “क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिए एक ही बार मर गया।” यीशु ने हमारे पापों को दे बार के अंतराल में नहीं धोया। यीशु ने जगत के पाप एक ही बार में मिटा दिए। रोमियों ६:१०-११ कहता है, “परन्तु जो जीवित है तो परमेश्वर के लिए जीवित है। ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिए मरा, परन्तु परमेश्वर के लिए मसीह यीशु में जीवित समझो।” हम पाप के लिए मर गए है परन्तु परमेश्वर के लिए जीवित है। अब, हम परमेश्वर के लिए जीवित है। हमारे पास नया जीवन है और हम नई सृष्टि बने है।
“इसलिये पाप तुम्हारे नश्वर शरीर में राज्य न करे, कि तुम उसकी लालसाओं के अधीन रहो; और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आपको मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो। तब तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं वरन् अनुग्रह के अधीन हो” (रोमियों ६:१२-१४)।
"क्योंकि पाप का तुम पर अधिकार न होगा, क्योंकि तुम व्यवस्था के अधीन नहीं परन्तु अनुग्रह के अधीन हो।" छुटकारे के बाद हमारे पास कोई पाप नहीं है, चाहे हमारे जीवन में कितनी भी कमजोरियाँ क्यों न हों। निश्चय ही हममें कमज़ोरियाँ हैं क्योंकि हम अभी भी देह में जीते हैं। हालाँकि, पाप का हम पर प्रभुत्व नहीं होगा। हमारे लिए कोई दण्ड नहीं है क्योंकि हमने यीशु के बपतिस्मा में विश्वास और उसके लहू के द्वारा न्याय पर विश्वास के द्वारा पापों की माफ़ी प्राप्त की है फिर चाहे हम कितने भी कमजोर हों। हमारे अधर्म भी पाप हैं।
यह सच है कि पाप का हम पर अधिकार नहीं हो सकता। परमेश्वर ने धर्मी को पाप के अधीन न होने के लिए बनाया है। परमेश्वर ने यीशु के बपतिस्मा के द्वारा हमारे पापों को हमेशा के लिए धो दिया ताकि पाप का हम पर प्रभुत्व न हो फिर चाहे हम कितने ही कमजोर क्यों न हों। उसने क्रूस पर पाप की मजदूरी का भुगतान किया। विश्वासी पापरहित हैं क्योंकि प्रभु ने पाप की मजदूरी चुकाई है।
धर्मी देखते हैं कि उनमें बहुत सी दुर्बलताएं और अधर्म प्रगट हो गए हैं, परन्तु पाप उन पर प्रभुता नहीं कर सकता और जब वे विश्वास के द्वारा प्रभु पर भरोसा करते हैं तो उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती। इसलिए हम हमेशा जीवन के नएपन में चल सकते हैं।
अपने अंगों को परमेश्वर की धार्मिकता के रूप में प्रदर्शित करे
प्रभु ने धर्मी जन को हरदिन नया जीवन जीने के लिए आशीषित किया है। हालाँकि, क्या वे पाप में बने रह सकते है? निश्चिय ही नहीं। रोमियों ६:१३ कहता है, “और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आपको मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धार्मिकता के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो।”
“परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो कि तुम जो पाप के दास थे।” हम स्वभाव ही से पाप के दास थे और पाप करने में अच्छे थे, परन्तु बाइबल कहती है, “अब मन से उस उपदेश के माननेवाले हो गए, जिसके साँचे में ढाले गए थे, और पाप से छुड़ाए जाकर धार्मिकता के दास हो गए” (रोमियों ६:१७-१८)।
हम जो धर्मी बने, पाप से स्वतंत्र होकर परमेश्वर की उस धार्मिकता के दास हो गए, जो अनुग्रह से धर्मी हो सकते हैं। हम पूरी तरह से पाप से स्वतंत्र हो गए हैं और धर्मी होने में सक्षम बने है। हम धर्मी बन गए जो परमेश्वर धार्मिकता के लिए कार्य कर सकते हैं।
लेकिन छुटकारे के बाद हमें अपने शरीर के साथ क्या करना चाहिए? उद्धार पाने के बाद हमें देह के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? बाइबल कहती है, "अब अपने अंगों को पवित्रता के लिए धार्मिकता के दास करके सोंप दो" (रोमियों ६:१९)। हम पापों से बाख गए है फिर भी देह क्या करती है? देह आमतौर पर पाप में पड़ जाती है फिर चाहे भले ही हमारे ह्रदय में कोई पाप न हो। इसलिए, जब हम अपनी देह को धार्मिकता के दास के रूप में प्रस्तुत करते हैं, तो हम पाप में गिरने से बच सकते हैं। इसका यह भी अर्थ है कि हमें केवल अपनी देह को भले कार्यों के लिए प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि हमें धर्मी बनाया गया है।
हमें भक्ति की साधना करने की आवश्यकता है
उद्धार पाने के बाद भी यद्यपि हमारी देह कमजोर है तो क्या हम पापरहित हैं? यह निश्चित है कि जो लोग यीशु के बपतिस्मा, क्रूस, पुनरुत्थान, दुसरे आगमन और यीशु के अंतिम न्याय में विश्वास करते हैं, उनके लिए कोई पाप नहीं है। वे पापरहित हैं। हमें केवल अपने शरीर को भले कामों के लिए प्रस्तुत करना है और हमारे ह्रदय भी भले काम करना चाहते है। लेकिन देह परमेश्वर धार्मिकता के लिए कार्य करने में अच्छा नहीं है। इसलिए १ तीमुथियुस ४:७ कहता है, "भक्ति की साधना कर।" हमें भक्ति की साधना करनी चाहिए।
यह कम समय में नहीं किया जाता है। जब हम अन्य लोगों को सुसमाचार की पुस्तिकाएं देते हैं, तो परिचित लोगों से मिलने पर हमें शर्म आ सकती है। हम उनसे बच सकते हैं और घर वापस आ सकते हैं क्योंकि हमें शर्म आती है। हालाँकि, इसे कई बार करने की कोशिश करें, यह सोचकर, `मेरा पुराना शरीर पहले ही मर चुका है,` और फिर यह कहते हुए साहस करें, "यदि आपके पास उद्धार नहीं है तो आप नरक में जाएंगे, इसलिए इस पुस्तिका को प्राप्त करें और छुटकारा प्राप्त करने के लिए लिए पढ़ें!" जब आप ऐसा कार्य करते हैं, तो आप अपने शरीर को धार्मिकता के लिए प्रस्तुत कर सकते हैं।
रोमियों अध्याय ६ हमें बताता है कि हम अपने अंगों को पवित्रता के लिए धार्मिकता के दास के रूप में प्रस्तुत करें। हमें अपने अंगों को धार्मिकता के दास के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। हमें कई बार इसकी साधना करनी चाहिए। यह कम समय में नहीं किया जा सकता है। हमें बार-बार प्रयास करना चाहिए। यदि हम कलीसिया में जाने की कोशिश करते हैं तो हमें पता चल जाएगा कि कलीसिया में जाना कितना दिलचस्प है। हमें यह नहीं सोचना चाहिए की, “मुझे विश्वास है, लेकिन मैं हर बात घर पर विश्वास करना चाहूंगा। मुझे स्पष्ट रूप से पता है कि मेरा पादरी क्या उपदेश देगा।” देह और हृदय दोनों कलीसिया में होने चाहिए। हृदय में विश्वास तभी बढ़ता है जब हम अपने अंगों को धार्मिकता के दास के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
हमें अपने अंगों को धार्मिकता के कार्य के लिए देना चाहिए। क्या आप देख रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ? हमें एक साथ इकट्ठा होने और अगुवों से मिलने से खुद को दूर नहीं रखना चाहिए। जब आप बाज़ार जाते हैं, तो बेहतर होगा कि आप कलीसिया में आ जाएँ और यह कहते हुए दरवाज़ा खोलें, “मैं बाज़ार के रास्ते से जा रहा हूँ। क्या हो रहा है?" अक्सर कलीसिया में आना अपने अंगों को धार्मिकता के दास के रूप में प्रस्तुत करना है।
तब अगुवा कहेगा, “बहन, मुझे देखने दीजिए, क्या आप इसे साफ़ कर सकते है?”
“ठीक है”
“और, कृपया आज शाम को वापस आइयेगा।”
“किस लिए?”
“आज शाम हमारी यूथ संगती है।”
“ठीक है, में आज रात आऊँगी।”
हम संसार में व्यस्त है, लेकिन जब जगत के लोग किसी मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए कहते है तब हमें सबसे पहले अपनी देह को कहा प्रस्तुत करना चाहिए?
हम संसार में व्यस्त हैं, परन्तु जब संसार के लोग हमें उनकी सभाओं में उपस्थित होने के लिए कहते हैं, तो हमें सबसे पहले अपना शरीर कहाँ प्रस्तुत करना है?
हमें खुद को कलीसिया के सामने पेश करना चाहिए। हमें कलीसिया जाना है, फिर भले ही हमें अपनी कंपनी के सहयोगियों के साथ भोजन करने के लिए कहा जाता है। हमें अपनी देह को एक रेस्तरां में नहीं होने देना चाहिए फिर भले ही हमारे ह्रदय कलीसिया में हो। अगर हम अपनी देह को जगत से दूर कर दें और इसे कलीसिया में रहने दें, तो हमारी देह और ह्रदय दोनों को आराम मिलेगा।
आप क्या सोच रहे है? यदि आपकी देह कुछ अन्य शारीरिक स्थानों पर बार-बार आती है, तो आप अपनी इच्छा के विरुद्ध परमेश्वर के शत्रु बन जाएंगे फिर भले ही आपका हृदय कलीसिया के साथ एक होना चाहता हो।
हमें आत्मा के साथ देह की साधना करनी चाहिए
हमें अपनी देह को धार्मिकता के दास के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देह परिपूर्ण है। हमें अपने अंगो को बार-बार धर्मी कार्यों के लिए प्रस्तुत करना चाहिए, हालाँकि हमारा शरीर जैसा चाहे वैसा करने के लिए प्रवृत्त होता है। हम आमतौर पर एक परिचित तरीके से जाते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपनी देह को किस चीज के दास के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
प्रेरित पौलुस कहता है, "अपने अंगों को पवित्रता के लिए धार्मिकता के दास करके सौंप दो। अपने अंगों को परमेश्वर की धार्मिकता के उपकरण के रूप में प्रस्तुत करो।” यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी देह को कैसे वश में करते हैं। यदि आप देह को पीने के लिए वश में करते हैं, तो देह खुद ही पीने के लिए चली जाती है। परिणामस्वरूप, जब आप कलीसिया में होते हैं तो देह बार में भाग जाती है। यदि आप बार में बैठते हो तो दिल को दर्द होता है। लेकिन यदि आप कलीसिया में बैठते हैं, तो दिल को आराम मिलता है, हालाँकि देह में दर्द होता है।
देह का भी व्यक्तित्व होता है। देह इस बात पर निर्भर करती है कि इसे हृदय से कैसे वश में किया जाता है। जब हम बार-बार पीते हैं तो देह कहती है, "मुझे शराब पसंद है"। लेकिन जब हम शराब नहीं पीते हैं तो देह कहती है, "मुझे इससे नफरत है।" क्यों? क्योंकि देह वश में नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम देह को कैसे वश में करते हैं, यद्यपि हृदय पवित्र होता है। पवित्र आत्मा हमारे दिलों का ख्याल रखता है। कलीसिया से बाहर होने के बाद भी पवित्र आत्मा हमें थामे रहता है। हालाँकि, हमें देह को पवित्रता के लिए धार्मिकता के दास के रूप में सौंपना चाहिए। इसलिए किसी भी तरह बार बार कलीसिया में आए।
जो बचाए गए हैं उन्हें भक्ति की साधना करनी चाहिए। बाइबल हमें परमेश्वर के वचन का पालन करने और उसके नेतृत्व में चलने के लिए कहती है। हमें परमेश्वर के वचन के नेतृत्व में चलना चाहिए, इसका कारण यह है कि हम हमेशा वही करना पसंद करते हैं जो हमारा शरीर चाहता है, यह सोचकर कि हमारा शरीर हमारा है। चूँकि हम अपनी मर्जी से खरीदारी करते है, नाचते है और शराब पीने जाते हैं इसलिए हमारे लिए कलीसिया बैठकर आराधना में ध्यान केंद्रित करना इतना कठिन है। इसलिए, एक अगुवे को हमारा नेतृत्व करना चाहिए। "आपको यहाँ बैठना चाहिए और परमेश्वर के वचन सुनने चाहिए।" "ठीक है।"
भले ही हम उपदेश सुनकर ऊब जाए लेकिन हमें धैर्य रखना चाहिए, सोचना चाहिए की, `मुझे यहाँ धैर्य के साथ बैठना है। मैं इतना ऊब क्यों रहा हूँ, जब की मैं एक बार में ३ घंटे बैठ सकता हूँ? मैं यहाँ एक घंटा भी क्यों नहीं बैठ सकता हूँ? उपदेश को सुने हुए अभी एक घंटा ही हुआ है ! मैंने एक बार में ५ घंटे शराब पी है और यहां तक कि बिना अंतराल लिए २० घंटे तक पोकर खेला है।"
यह सब देह को वश में करने पर निर्भर करता है। आमतौर पर कलीसिया में बैठने वाली देह बार में जाने से नफरत करता है। हालाँकि, एक व्यक्ति जो शराब पीने में माहिर है, उसके लिए कलीसिया में बैठना नर्क के समान है। मैं चाहता हूँ कि आप कई दिनों तक सहन करे और फिर आप सहन करना सीख सकते है। जब तक आप अपनी देह को वश में नहीं कर लेते तब तक यह बहुत कठिन है। जब हम हमारे समय में दुसरे काम करना चाहते है तब हमें अपना समय कलीसिया में बिताना चाहिए।
हम अपना समय कलीसिया में बिताते हैं, अगुवों से, भाइयों से, और बहनों से बात करते है। मैं कलीसिया में बहुत सहज हूँ और वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है जो मुझे लुभाता हो। हालाँकि, जब मैं गली में चलता हूँ, तो बहुत सी चीज़ें मुझे बहकाती हैं! ऐसे बहुत से प्रलोभन है जैसे की कपड़ों की दुकानों के शोकेस में टंगे हुए कपड़े। जब मैं आसपास देखकर मुझे जो देखना है उसे देखता हूँ तब मुझे घर पहुँच ने में २ घंटे लगते है, और अंत में मैं भटक भी सकता हूँ।
यदि वहाँ कुछ अजीब है तो मैं उस अजीब चीज को देखता हूँ। बाद में, मुझे एहसास होता है, `मैं घर कब पहुंचूंगा? मैं चाहता हूँ कि कोई मुझे घर ले जाए।’ इसलिए अपने घर के रास्ते में एक जगह से दूसरी जगह मत भटको। हमें आराधना सेवा के बाद सीधे घर जाना चाहिए, कलीसिया की बस में सवारी करनी चाहिए और सीधे अपने गंतव्य पर जाना चाहिए। यदि आप सोचते हैं, `मुझे कलीसिया तक जाने के लिए मदद मत करो। मैं अकेला कलीसिया जाऊंगा। मेरे दो मजबूत पैर हैं, इसलिए मेरे लिए कलीसिया की बस से कलीसिया जाने का कोई कारण नहीं है, `आप परीक्षा में पड़कर भटक सकते हैं। आपको आभारी होना चाहिए कि आप कलीसिया जाने के लिए कलीसिया की बस में सवारी कर सकते हैं और जैसे ही आराधना सेवा समाप्त हो जाती है तब बेकार चीजो की चिंता किए बिना घर वापस आ सकते हैं। बेहतर होगा कि आप बाइबल पढ़ें, प्रार्थना करें और घर पहुँचते ही सो जाएँ।
आपके लिए बेहतर होगा कि आप ऐसे ही रहें। एक व्यक्ति सोच सकता है, `मेरे पास दृढ विश्वास है। मेरे पास कोई पाप नहीं है। मैं खुद के लिए कुछ कर दिखाउंगा। बार में जाऊं तो भी पिऊँगा नहीं। जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह उससे भी बहुत अधिक हुआ। मैं अनुग्रह से भर गया हूँ।` अगर वह ऐसा सोचता है और बार में जाता है, तो उसका दोस्त कहेगा, "अरे, पी लो।"
“नहीं, क्या आपने मुझे कभी शराब पीते हुए देखा है? मैंने शराब पीना छोड़ दिया है।”
“कुछ भी हो आज पिलो।”
“नहीं।”
“क्यों न आज तुम एक ग्लास वाइन पीओ?”
उसका दोस्त एक गिलास में वाइन डालता है और उसे देता है। लेकिन वह सोचता है, `भले ही तुम मुझे शराब पिने के लिए मजबूर करो, लेकिन मैं सोडा ही पिऊँगा। फिर उसे याद आता है कि उसने बहुत पहले शराब पि थी और सोचता है, `यह कितनी स्वादिष्ट होगी। तुम मुझे एक बार फिर शराब क्यों नहीं देते? मैं केवल एक ड्रिंक पिऊँगा।` वह जल्दी से सोडा खत्म कर लेगा।
फिर, उसके दोस्त को पता चलता है कि वह पीना चाहता है और वह खाली गिलास में शराब डाल देता है।
"यह हल्का है। तुम इसे कॉकटेल के रूप में पी सकते हैं।"
"नहीं, मुझे नहीं पीना चाहिए। क्या तुम नहीं जानते कि मैं यीशु पर विश्वास करता हूँ?” हालाँकि, वह अंत में एक गिलास शराब पीता है और उसका दोस्त जानता है कि वह अच्छी तरह से पीता है।
"केवल आज पी लो।"
"ठीक है। मैं आज पीऊंगा, लेकिन आपको यीशु पर विश्वास करना चाहिए, ठीक है? पीने के बावजूद भी मुझमें कोई पाप नहीं है। लेकिन क्या आपके अन्दर पाप है? आपको अपने पापों से बचाना चाहिए।"
महत्त्वपूर्ण बात यह है की हम कहा देह का समर्पण करते है
मनुष्य ऐसा ही है। वे कुछ खास नहीं हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम देह को कहाँ सौंपते है। अपने अंगों को पवित्रता के लिए धार्मिकता के दास के रूप में सौंप दे। अपनी देह को पवित्रता के लिए सौंप दे क्योंकि देह पवित्र नहीं है। मैंने यहां एक उदाहरण के रूप में शराब पिने के बारे में कहा था। लेकिन अन्य चीजें ऐसी ही हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम देह को कैसे वश में करते हैं।
हम एक सांस में विश्वास के द्वारा बचाए गए हैं, और यह अनन्त है। लेकिन हमारे दिल और देह की भक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि हम देह को कहाँ सौंपते हैं। हमें लगता है कि जब हम अपनी देह को गंदगी के सामने सौंपते हैं तो हमारा ह्रदय भी गंदा हो जाता है भले ही फिर ह्रदय साफ़ क्यों न हो। फिर, हम अपने विश्वासों को त्याग देते है, कलीसिया के खिलाफ जाते है, परमेश्वर का नाम व्यर्थ लेते हैं और परमेश्वर की उपस्थिति से दूर चले जाते हैं, शैतान द्वारा धोखा खाते है। हम अंत में नष्ट हो जाते है।
इसलिए, अपने आप को देखें, ऐसा न हो कि आप नष्ट हो जाएं। आपको सतर्क रहना चाहिए। पापों से उद्धार पाने के बाद हम अपने दैनिक पापों से कैसे निपट सकते हैं? "जहाँ पाप बहुत हुआ, वहाँ अनुग्रह भी उससे बहुत अधिक हुआ।" प्रभु ने हमारे दैनिक पापों को भी पूरी तरह से मिटा दिया ताकि हम फिर कभी पापी न बन सकें, हालाँकि हम कई बार पाप कर सकते हैं।
हालाँकि, यदि देह बार-बार बुराई की ओर घुमती है, तो हमें समस्या हो सकती है। हमें अपनी देह कहाँ सौंपनी चाहिए? देह को दर्शायें गए मार्ग पर जाना चाहिए। मैंने अब तक आपको यह समझाने के लिए बात की है।
जैसे ह्रदय पवित्र होता है वैसे ही देह भी पवित्र हो जाती है, और जब हम इसे धार्मिकता के दास के रूप में सौंपते हैं तो यह परमेश्वर के सामने धार्मिकता का दास बन जाता है। यदि हम नहीं जानते कि उद्धार के बाद कैसे जीना है तो हमें अपने जीवन को कलीसिया पर केन्द्रित करना चाहिए। बाइबल कहती है कि कलीसिया एक सराय की तरह है। हम पानी पीते हैं, आत्मिक भोजन खाते हैं और संगति में बने रहते हैं ठीक वैसे जैसे हम एक सराय में पीते और एक दूसरे से बात करते हैं।
कलीसिया एक सराय के समान है। हम कलीसिया में एक दुसरे के साथ संगति में बने रहते हैं और एक दूसरे के साथ बात करते हैं, इसलिए हमें किसी भी तरह कलीसिया में जाना है। एक व्यक्ति जो आमतौर पर कलीसिया जाता है वह एक आत्मिक व्यक्ति बन जाता है। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है, वह आत्मा में नहीं चल सकता है, चाहे उसका विश्वास कितना भी बड़ा क्यों न हो। जो व्यक्ति आमतौर पर कलीसिया आता है वह आत्मिक रूप से खुद ही समृद्ध हो जाता है, चाहे वह कितना भी कमजोर क्यों न हो। यह छुटकारे के बाद आत्मिक संगति के कारण है।
हमारे लिए ठिकाना पाने के लिए कलीसिया के अलावा कोई जगह नहीं है। मैं चाहता हूँ कि आप जितनी बार हो सके उतनी बार परमेश्वर की कलीसिया में आएं और परमेश्वर के लोगों के साथ संगति में रहें। कलीसिया में आएं, हर आराधना सेवा में शामिल हों, परमेश्वर के वचन को सुनें और जो कुछ भी आप करने की योजना बना रहे हैं, उसमें कलीसिया के अगुवों से सलाह लें।
हमें अपने जीवन को परमेश्वर के वचन पर केन्द्रित करना चाहिए और खुद को एक साथ इकट्ठा करना चाहिए। तब, हम बिना असफलता के विश्वास के जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हम प्रभु द्वारा बहुमूल्य रूप से उपयोग किए जा सकते हैं और आशीषित हो सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि आप अपनी देह और हृदय को धार्मिकता के पात्र के रूप में परमेश्वर के सामने सौंप दे।