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विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 8-11] अनन्त प्रेम (रोमियों ८:३१-३४)

( रोमियों ८:३१-३४ )
“अत: हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्‍वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है? जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा? परमेश्‍वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्‍वर ही है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह ही है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्‍वर के दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है।”
 

यदि परमेश्वर ने सृष्टि से पहले ही हमें यीशु मसीह में अपनी धार्मिकता से ढकने का निश्चय कर लिया होता, तो कोई भी इसे विचलित नहीं कर पाता। जो लोग परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके, न कि न्यायिकरण के सिद्धांत के माध्यम से, वास्तव में पाप रहित हो गए हैं, वे परमेश्वर की सच्ची सन्तान हैं। 
जैसे, सभी धार्मिक लोग सही नहीं हैं। कुछ लोगों को आजकल केवल यीशु में विश्वास करने के लिए सताया जाता है। परन्तु उनमें से बहुत से जो परमेश्वर की सच्ची धार्मिकता को जानते हैं, सताए गए हैं। हालाँकि, जो लोग उसकी धार्मिकता में विश्वास करके परमेश्वर की संतान बने है, उन्हें कभी भी परमेश्वर से अलग नहीं किया जा सकता है। जब परमेश्वर ने हमें अपनी धार्मिकता का सुसमाचार दिया, तो उनके विरुद्ध कौन हो सकता है?
 


परमेश्वर ने हमें सब कुछ उपहार के रूप में दिया है
 

“जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा?” (रोमियों ८:३२)
उनके लिए जिन्होंने परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करके परमेश्वर की धार्मिकता प्राप्त की है, परमेश्वर ने सब कुछ एक उपहार के रूप में दिया- स्वर्ग का राज्य, परमेश्वर की संतान बनने का विशेषाधिकार, उनके वचन को समझने का अनुग्रह, धार्मिकता के कार्यकर्ता के रूप में जीने में सक्षम बनाने का आशीष, और अनन्त जीवन की आशीष। 
हमें अपनी सन्तान बनाने के लिए परमेश्वर ने हमें अपना पुत्र दिया। वह हमें और क्या नहीं देगा? परमेश्वर ने उन लोगों को स्वर्ग और पृथ्वी की साड़ी आशीषे दी है जो उसकी धार्मिकता के माध्यम से सच्चा विश्वास प्राप्त करते हैं। विश्वासी और परमेश्वर के सेवक उसकी धार्मिकता के कारण सदा उसकी स्तुति करते हैं।
 


परमेश्वर के चुने हुओं पर कौन दोष लगाएगा?


“परमेश्‍वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्‍वर ही है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह ही है जो मर गया वरन् मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्‍वर के दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है” (रोमियों ८:३३-३४)। 
जिन लोगों को परमेश्वर ने अपनी धार्मिकता से यीशु मसीह में चुन लिया है, उन पर कोई दोष नहीं लगा सकता, क्योंकि यीशु ने परमेश्वर की धार्मिकता से उन्हें पाप से मुक्त किया है। जो लोग यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं उनके मन में कोई पाप नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने किसी और को नहीं लेकिन उनकी धार्मिकता पर विश्वास करने वालों को पापरहित बनाया है। 
परमेश्वर का पुत्र, यीशु मसीह, मनुष्य के शरीर में पृथ्वी पर आया, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा बपतिस्मा लिया, जगत के सभी पापों का बोझ अपने ऊपर ले लिया, क्रूस पर मर गया और तिन दिनों के अन्दर मृतकों में से पुनरुत्थित हुआ, और विश्वास करने वालों के लिए प्रभु बन गया। 
इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि जो परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करके धर्मी बने, वे पापी और अधर्मी हैं। अब भी, परमेश्वर उन्हें स्वीकार करता है जो उसकी धार्मिकता में विश्वास करते हैं। इसके प्रमाण के रूप में, पवित्र आत्मा उनके हृदयों में वास करता है। इसलिए कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की धार्मिकता या उनकी धार्मिकता पर विश्वास करने से उनके पापों को क्षमा कर दिया गया है, उनकी निंदा नहीं कर सकता। 
परमेश्वर की धार्मिकता यीशु मसीह के बपतिस्मा, क्रूस पर उनके लहू के बहाने, और उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान के माध्यम से प्रकट हुई। यीशु मसीह, परमेश्वर की सब धार्मिकता को पूरा करने के बाद, हमारे उद्धारकर्ता और मध्यस्थ के रूप में परमेश्वर के दाहिने हाथ पर बैठे हैं।
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