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विषय १० : प्रकाशितवाक्य (प्रकाशितवाक्य पर टिप्पणी)

[अध्याय 17-2] हमारा ध्यान परमेश्वर की इच्छा पर केंद्रित करे ( प्रकाशितवाक्य १७:१-१८ )

हमारा ध्यान परमेश्वर की इच्छा पर केंद्रित करे
( प्रकाशितवाक्य १७:१-१८ )

प्रकाशितवाक्य १७:१-५ में लिखा है, “जिन सात स्वर्गदूतों के पास वे सात कटोरे थे, उनमें से एक ने आकर मुझ से यह कहा, “इधर आ, मैं तुझे उस बड़ी वेश्या का दण्ड दिखाऊँ, जो बहुत–से पानी पर बैठी है, जिसके साथ पृथ्वी के राजाओं ने व्यभिचार किया; और पृथ्वी के रहनेवाले उसके व्यभिचार की मदिरा से मतवाले हो गए थे।” तब वह मुझे आत्मा में जंगल को ले गया, और मैं ने लाल रंग के पशु पर, जो निन्दा के नामों से भरा हुआ था और जिसके सात सिर और दस सींग थे, एक स्त्री को बैठे हुए देखा। यह स्त्री बैंजनी और लाल रंग के कपड़े पहिने थी, और सोने और बहुमूल्य मणियों और मोतियों से सजी हुई थी, और उसके हाथ में एक सोने का कटोरा था जो घृणित वस्तुओं से और उसके व्यभिचार की अशुद्ध वस्तुओं से भरा हुआ था। उसके माथे पर यह नाम लिखा था, 
“भेद – बड़ा बेबीलोन पृथ्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता।”
 

उपरोक्त भाग में वेश्या इस दुनिया के धर्मों को संदर्भित करती है, और यह हमें बताता है कि वे लोग दुनिया की चीजों और प्रभु द्वारा दी गई भौतिक प्रचुरता के साथ असाधारण विलासिता में लिप्त हैं। वे सब प्रकार के ऐशो-आराम के सामान, सोने के हार और हीरे के झुमके से सुशोभित होते है, और सभी प्रकार के सुगन्धित द्रव्य को लगाते है। यह भाग हमें बताता है कि उसके हाथ में एक सोने का कटोरा था, और यह उसके व्यभिचार की घृणा और गंदगी से भरा था। परमेश्वर ने यूहन्ना को यही दिखाया।
यह भाग हमें जो बताता है वह यह है कि शैतान लोगों की आत्माओं में षडयंत्र रचता है और उन्हें दुनिया की चीजों के नशे में धुत्त होकर उनके सामने आत्मसमर्पण करवाने का प्रयास करता है। संसार के सब राजाओं को भी शैतान ने संसार की वस्तुओं के नशे में धुत कर दिया है। इस प्रकार, इस धरती पर हर कोई व्यक्ति दुनिया के व्यभिचार की मदिरा के नशे में धुत है।
शैतान अपने लक्ष्यों को तब प्राप्त करता है जब लोग इस संसार के प्रवाह, उसके आनंद और उसके भौतिक लालच के नशे में धुत्त हो जाते हैं। सच्चाई यह है कि उसका लक्ष्य लोगों को परमेश्वर की ओर देखने से रोकना है। ऐसा करने के लिए, शैतान उनकी आत्माओं को दुनिया की भौतिक चीज़ों से मदहोश कर देता है। हमें इस सच्चाई को समझना चाहिए।
इस दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो भौतिक चीजो के जाल में न फंसे। हर कोई व्यक्ति भौतिकवाद में गिर जाता है। इस दुनिया की फैशनेबल प्रवृत्तियों को शैतान द्वारा चलाया और संचालित किया जाता है। हर कोई सोचता है कि उसका अपना एक अलग अंदाज है। लेकिन इसके पीछे एक कार्य करने वाला है, और यह कार्य करने वाला कोई और नहीं बल्कि शैतान है। इसलिए हमें भौतिकवाद में डूबे हुए नहीं रहना चाहिए, बल्कि परमेश्वर के वचन का आचमन करके और परमेश्वर के कार्यों को करते हुए जीना चाहिए। 
प्रकाशितवाक्य का वह वचन जिसे परमेश्वर प्रेरित यूहन्ना के द्वारा हमें प्रकट करता है, सत्य है। तो फिर, परमेश्वर इस वचन के द्वारा हमें क्या बताने की कोशिश कर रहा है? हमारा प्रभु हमसे कह रहा है कि हमें अपने आप को इस दुनिया से संतृप्त नहीं करना चाहिए, बल्कि इसके खिलाफ खड़े होना चाहिए। दुसरे शब्दों में, वह हम संतों को हमारे दिल से परमेश्वर के बारे में सोचने और विश्वास करने के लिए कह रहा है। 
१ यूहन्ना २:१५ कहता है, “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है।” जब हमारे हृदय संसार की भौतिक वस्तुओं से प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर हमारे हृदयों में निवास नहीं कर सकता। लेकिन जब हमारे दिल दुनिया की चीजों को फेंक देते हैं, तब परमेश्वर हमारे दिलों में बस जाते हैं। हमें संसार की भौतिक वस्तुओं में संतृप्त होकर अपना जीवन नहीं जीना चाहिए। जब हम अपने प्रभु के वचन और केवल उनके उद्देश्यों पर चिंतन करते हैं, तभी हम परमेश्वर के मार्गदर्शन में चल सकते हैं।
हम किसी भी समय अपना विचार बदल सकते हैं। जब संसार की वस्तुएं हमारे हृदय में प्रवेश करने का प्रयास करें तो हमें उन्हें सदैव ठुकरा देना चाहिए। तब हम संसार की सभी गंदी चीजों को अपने हृदय से दूर कर सकते हैं, और हमारे हृदय शीघ्र ही प्रभु के हृदय में विलीन हो जाते हैं। हमारा प्रभु हमसे क्या चाहता है? और वह हमें क्या करने के लिए कहता है? यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे ईश्वरीय विचार हमारे हृदयों में उत्पन्न हों, हमें सांसारिक वस्तुओं को अपने हृदय से मिटा देना चाहिए।
परमेश्वर ने हमें बहुत सारी आशीषें दी हैं, और अब हम समझ सकते हैं कि हमें अपने शेष दिनों के लिए पूरे संसार के लोगों को पानी और आत्मा के सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए। इसलिए हम अपने रक्षकों को निराश नहीं करते हैं, और अपना ध्यान परमेश्वर की इच्छा पर केंद्रित करते है। आत्मिक कार्यों के बारे में सोचकर, हम अपने दिलों में पाई जाने वाली संसार की चीजों को बाहर निकाल सकते हैं।
हम संतों को संसार की वस्तुओं को निकाल देना चाहिए। जब तक प्रभु फिर से नहीं आते, हमें अपने मसीही जीवन को विश्वास के साथ जीना चाहिए। जब तक कि हम प्रभु के सामने खड़े न हों तब तक हमें अपने शेष जीवन के लिए वही करना चाहिए जो प्रभु ने हमें सौंपा है। और हमें प्रभु से प्रेम रखना चाहिए, और विश्वास से जीना चाहिए, और जो कुछ काम वह हमें करने की आज्ञा देता है, उसे करते रहना चाहिए।
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