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শিক্ষা

विषय ९ : रोमियों (रोमियों की पत्री किताब पर टिप्पणी)

[अध्याय 8-10] गलत सिध्धांत (रोमियों ८:२९-३०)

( रोमियों ८:२९-३० )
“क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों, ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।” 
 

ये भाग हमें बताते हैं कि परमेश्वर ने यीशु मसीह में लोगों को बचाने के लिए पहले से नियत किया है। ऐसा करने के लिए, परमेश्वर ने उन्हें मसीह में बुलाया, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है। पवित्रशास्त्र की सभी मूल बातें यीशु मसीह के भीतर योजनाबद्ध और कार्य की गई हैं। यह वही है जो रोमियों की पुस्तक हमें बताती है, फिर भी कई धर्मशास्त्रियों और झूठे सेवको ने इस स्पष्ट और सरल सत्य को एक मात्र सिद्धांत में बदल दिया है, जिसमें उनके अपने विचार और स्वार्थ शामिल हैं, और इसे आग्रहपूर्वक फैलाया है। अब हम इस बात की जांच करने के लिए अपना ध्यान लगाएंगे कि कितने लोग इस सच्चाई को गलत समझते हैं।
कुछ धर्मशास्त्री इस भाग से पाँच प्रमुख सिद्धांत निकालते हैं: 1) पूर्वज्ञान, 2) पूर्वनियति, 3) प्रभावी बुलाहट, 4) न्यायीकरण, और 5) महिमा। इन पांच सिद्धांतों को "उद्धार की स्वर्ण श्रृंखला" के रूप में जाना जाता है और विश्वासियों और गैर-विश्वासियों दोनों के लिए समान रूप से सत्य के रूप में फैलाया गया है। लेकिन उनके दावे खामियों से भरे हैं।
सभी पाँच सिद्धांत केवल वही बोलते हैं जो परमेश्वर ने किया है—अर्थात, "परमेश्वर पहले से ही किसीको जानता था, पहले से ही उसने किसीको चुना था, पहले से ही किसीको बुलाया था, किसीको न्यायोचित किया था, और किसी की महिमा की थी।" लेकिन पूर्वनियति का सिद्धांत एक ऐसा सिद्धांत है जो दावा करता है कि परमेश्वर ने बिना शर्त उन लोगों को चुना है जिन्हें वह उनके जन्म से पहले ही बचा लिया था। तौभी पूर्वनियति का बाइबल सत्य यह शिक्षा देता है कि परमेश्वर ने पापियों को उनके ऊपर अपना प्रेम उंडेलने के द्वारा अपनी सन्तान बना लिया है। इस प्रकार उन्हें चुनकर, परमेश्वर ने उन्हें बुलाया, धर्मी ठहराया और महिमावंत किया।
 


धर्मशास्त्र के पूर्वनियति और चुनाव के सिध्धांत में त्रुटी


मसीही धर्मशास्त्र में, हम जॉन केल्विन द्वारा घोषित केल्विनवाद के "पांच महान सिद्धांत" पा सकते हैं। इनमें पूर्वनियति का सिद्धांत और चुनाव का सिद्धांत शामिल हैं। निम्नलिखित चर्चा में, मैं इन सिद्धांतों की बाइबिल त्रुटियों को इंगित करूंगा और पानी और आत्मा के सुसमाचार की गवाही दूंगा।
चुनाव का सिद्धांत जॉन केल्विन नामक एक धर्मशास्त्री से उत्पन्न हुआ। बेशक, परमेश्वर ने केल्विन के समय से बहुत पहले यीशु मसीह में चुनाव की बात कही थी, लेकिन उसके चुनाव के सिद्धांत ने कई लोगों को भ्रम में डाल दिया है। यह झूठा सिद्धांत परमेश्वर के प्रेम को सीमित करता है और इसे भेदभावपूर्ण और अनुचित रूप में परिभाषित करता है। मूल रूप से कहें तो, परमेश्वर के प्रेम की न तो कोई हद है और न ही सीमाएँ, और इस तरह, पूर्वनियति का सिद्धांत जो परमेश्वर के प्रेम पर ऐसी सीमाएँ लगाता है वह झूठ के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता। फिर भी वास्तविकता यह है कि आज यीशु में बहुत से विश्वासियों ने इस सिद्धांत को स्वाभाविक और भाग्यवादी के रूप में स्वीकार किया है। 
पूर्वनियति के इस सिद्धांत के विचार ने कई दिमागों पर शासन कर लिया हैं, क्योंकि यह सिद्धांत उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो दार्शनिकता पसंद करते हैं, और इस तरह, उनके दिमाग पर हावी होते हैं, जिससे यह उनके लिए विश्वसनीय हो जाता है। सिद्धांत का दावा है कि सृष्टि से पहले भी, परमेश्वर ने बिना शर्त पूर्वनिर्धारित किया और कुछ लोगों को चुना, जबकि अन्य लोगों को इस चुनाव से बाहर रहने के लिए पूर्वनिर्धारित किया गया था। क्या यह सिद्धांत सही था, जिन आत्माओं का चयन नहीं किया गया था, उनके पास परमेश्वर का विरोध करने का कारण है, और वह एक अनुचित और पूर्वाग्रही परमेश्वर में बदल जाएगा।
इन सिद्धांतों के कारण, आज का मसीही धर्म बड़ी उलझन में पड़ गया है। परिणामस्वरूप, बहुत से मसीही यह सोचकर पीड़ित हो रहे हैं, "क्या मेरा चुनाव हुआ है? यदि सृष्टि से पहले परमेश्वर ने मेरी निन्दा की होती, तो यीशु पर विश्वास करने का क्या फायदा?” वे अंत में इस बात में अधिक रुचि रखते हैं कि क्या उन्हें परमेश्वर के चुनाव में शामिल किया गया था या बाहर रखा गया था। यही कारण है कि पूर्वनियति के सिद्धांत ने यीशु में विश्वासियों के बीच इतना भ्रम पैदा कर दिया है, क्योंकि वे अपने चुनाव के प्रश्न को अधिक महत्व देते हैं, न कि पानी और आत्मा के सच्चे सुसमाचार को, जो परमेश्वर द्वारा दिया गया है।
इस सिद्धांत ने मसीही धर्म की सच्चाई को केवल एक जगत के धर्म में बदल दिया है। लेकिन अब समय आ गया है कि हम इन गलत सिद्धांतों को मसीही जगत से उस सुसमाचार के साथ निकाल दें जिसने परमेश्वर की धार्मिकता की गवाही दी है। इस प्रकार, आपको पहले स्वयं देखना चाहिए कि पूर्वनियति का सिद्धांत सही है या नहीं, और पानी और आत्मा के सुसमाचार को जानने और विश्वास करने के द्वारा अपने सभी पापों से छुटकारा पाएं। वे लोग जिन्हें वास्तव में परमेश्वर द्वारा चुना गया है, वे वो हैं जो उसकी धार्मिकता को जानते हैं और उसमें विश्वास करते हैं।
 


सत्य के द्वारा कही गई पूर्वनियति और चुनाव


इफिसियों १:३-५ कहता है, “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता का धन्यवाद हो कि उसने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आत्मिक आशीष दी है। जैसा उसने हमें जगत की उत्पत्ति से पहले उसमें चुन लिया कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों। और अपनी इच्छा के भले अभिप्राय के अनुसार हमें अपने लिये पहले से ठहराया कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों।” इफिसियों के इस भाग में जिस चुनाव के बारे में बात की गई है वह “जगत की उत्पत्ति से पहले उसमे (मसीह में) चुन लिया” (इफिसियों १:४)। ये हमें यह भी कहता है की यीशु मसीह ने एक भी व्यक्ति को पाप से उद्धार के अनुग्रह से वंचित नहीं रखा।
इस भाग से, हमें यह पता लगाना चाहिए कि पूर्वनियति के सिद्धांत में वास्तव में क्या गलत है। इस सिद्धांत की मूलभूत त्रुटि यह है कि यह परमेश्वर के चुनाव के मानक के खिलाफ पक्षपाती है-अर्थात, किसको बचाया जाना है ओर किसको नहीं इसका आधार परमेश्वर के वचन पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि उसके मनमाने और बिना शर्त निर्णय पर निर्भर करता है। 
यदि हम बिना शर्त पूर्वनियति और चुनावों के तर्क पर यीशु में अपने विश्वासों को आधार बनाते हैं, तो हम अपनी घबराहट वाली अनिश्चितताओं और चिंताओं में यीशु पर कैसे विश्वास कर सकते हैं? केल्विनवाद एक झूठे सिद्धांत का प्रचार करता है जो धर्मी परमेश्वर को एक अनुचित और अन्यायी परमेश्वर में बदल देता है। केल्विन ने ऐसी गलती क्यों की, इसका कारण यह है कि उसने "यीशु मसीह में" की शर्त को परमेश्वर की पूर्वनियति से निकाल लिया, और त्रुटि इतनी गंभीर है कि बहुतों को भ्रमित और भरमा सकती है। परन्तु पवित्रशास्त्र हमें स्पष्ट रूप से बताता है, "परमेश्वर ने हमें यीशु मसीह में चुना" (इफिसियों १:४)।
यदि, जैसा कि केल्विनवादियों का दावा है की परमेश्वर उनका परमेश्वर बनने के लिए बिना किसी शर्त उनको चुनता है और दूसरों को बेवजह छोड़ देता है, तो इससे ज्यादा बेतुका क्या हो सकता है? कई लोगों के मन में केल्विन ने परमेश्वर को एक अनुचित परमेश्वर में बदल दिया। परन्तु बाइबल हमें रोमियों ३:२९ में बताती है, "क्या परमेश्वर केवल यहूदियों ही का है? क्या अन्यजातियों का नहीं? हाँ, अन्यजातियों का भी है।” परमेश्वर सबका परमेश्वर और सबका उद्धारकर्ता है।
यीशु सबका उद्धारकर्ता है। उसने यूहन्ना द्वारा अपने बपतिस्मा और क्रूस पर अपने लहू के द्वारा मनुष्यजाति के सभी पापों को अपने ऊपर लेने के द्वारा सभी को छुटकारा दिया (मत्ती ३:१५)। पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि मसीह ने जगत के सभी पापों को अपने बपतिस्मा के द्वारा उठाकर और इन पापों को क्रूस पर ले जाकर (यूहन्ना १:२९), हमारे स्थान पर इन पापों के लिए दण्ड सहने के द्वारा हर पापी को बचाया (यूहन्ना १९)। साथ ही, यूहन्ना ३:१६ हमें बताता है, "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, कि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।" यीशु मसीह ने अपने बपतिस्मा के द्वारा सभी के पापों को अपने ऊपर ले लिया, क्रूस पर मर गया, और परमेश्वर की धार्मिकता में पूरी मनुष्यजाति के लिए मृत्यु से जीवित हुआ। 
परमेश्वर ने किसे बुलाया है उसके बारे में हमारी समझ उसके वचन पर आधारित होनी चाहिए। ऐसा करने के लिए, आइए हम रोमियों ९:१०-११ के परिच्छेद को देखें। “और केवल यही नहीं, परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात् हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी, और अभी तक न तो बालक जन्मे थे, और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था; इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे।”
यह यहाँ कहता है कि परमेश्वर का उद्देश्य "जिसे उसने बुलाया है" उनके लिए बना रहे। तो फिर, परमेश्वर ने यीशु मसीह में किसे बुलाया है? वे पापी हैं जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया है। एसाव और याकूब के बीच, परमेश्वर ने किससे प्रेम किया? वह याकूब से प्रेम करता था। परमेश्वर ने एसाव जैसे लोगों से प्रेम नहीं किया, जो अपनी धार्मिकता से भरे हुए थे, परन्तु उन्होंने याकूब के समान पापियों को बुलाया और उन्हें पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा नया जन्म प्राप्त करने की अनुमति दी। यह परमेश्वर की धार्मिकता की इच्छा थी जिसने याकूब जैसे पापियों को यीशु मसीह के द्वारा प्रेम करने और बुलाने के लिए चुना।
क्योंकि आदम सभी का पूर्वज था इसलिए सभी मनुष्य एक पापी की संतान के रूप में पैदा हुए थे। भजन संहिता ५१ में, दाऊद कहता है कि जब वह अपनी माता के गर्भ में था तब से उसने पाप में गर्भ धारण किया था। क्योंकि लोग पापियों के रूप में पैदा होते हैं, वे पाप करते हैं, चाहे उनका कोई भी संकल्प क्यों न हो। वे जीवन भर अपने अंत तक पाप का फल भोगते रहते हैं। मरकुस ७:२१-२३ हमें बताता है कि जैसे सेब के पेड़ सेब और नाशपाती के पेड़ नाशपाती के फल देते हैं, वैसे ही मनुष्य अपने पूरे जीवन के लिए पाप में जीने के लिए बाध्य हैं क्योंकि वे पाप के साथ पैदा हुए थे।
आपको अपनी इच्छा के विरुद्ध पाप करने का अनुभव होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरू से ही आप एक पापी पैदा हुए थे। लोग व्यभिचार, परस्त्रीगमन, हत्या, चोरी, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, और ऐसे ही अन्य पापों सहित बुरे विचारों के साथ जन्म लेते हैं। यही कारण है कि हर कोई अपना जीवन पाप में जीता है। पाप विरासत में मिला है। चूँकि हम उन पापों के साथ पैदा हुए थे जो हमारे पूर्वजों ने हमें दिए थे, हम मूल रूप से पाप में जीने के लिए नियत हैं। यही कारण है कि हमें यीशु पर अपने उद्धारकर्ता के रूप में विश्वास करने और परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करने की आवश्यकता है।
तो क्या इसका यह अर्थ है कि परमेश्वर की पहली सृष्टि, आदम, असफलता में समाप्त हुआ? नहीं, ऐसा नहीं है। परमेश्वर ने मनुष्यजाति को अपनी सन्तान बनाने का निश्चय किया, इसलिए उसने पहले मनुष्य को पाप में गिरने दिया। उसने मूल रूप से हमें पापी होने की अनुमति दी ताकि परमेश्वर हमें बचाए और हमें यीशु मसीह के बपतिस्मा और उसके लहू के साथ अपनी सन्तान बना सके। इसलिए, हमें पता होना चाहिए कि हम बिना किसी अपवाद के पापियों के रूप में पैदा हुए थे। 
हालाँकि, परमेश्वर ने सृष्टि से पहले यीशु मसीह को इस पृथ्वी पर भेजने का फैसला किया, यह जानते हुए कि मनुष्यजाति पापी बन जाएगी। उसके बाद उसने यूहन्ना द्वारा प्राप्त यीशु के बपतिस्मा के द्वारा जगत के सारे पापों को यीशु पर रखा, और उसे क्रूस पर मरने दिया। दूसरे शब्दों में, उसने पाप से छुटकारे पर विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति को परमेश्वर की सन्तान बनने की आशीष प्रदान करने का निर्णय लिया। यह परमेश्वर की योजना है और मनुष्यजाति को बनाने का उसका उद्देश्य है।
कुछ लोग अपनी गलतफहमी में पूछ सकते हैं, “याकूब और एसाव को देखो। क्या एक को चुना नहीं गया था और दूसरे को परमेश्वर ने त्याग नहीं दिया था?” परन्तु परमेश्वर ने बिना शर्त उन लोगों को नहीं चुना जो यीशु मसीह के बाहर बचाए जाने पर जोर देते थे। उसने स्पष्ट रूप से यीशु मसीह के द्वारा सभी को अपनी सन्तान बनाने का चुनाव किया। जब केवल पुराने नियम पर विचार किया जाता है, तो हमें यह आभास हो सकता है कि परमेश्वर ने केवल एक पक्ष को चुना है, लेकिन नए नियम के साथ, हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि उसने यीशु मसीह के माध्यम से सभी पापियों को बचाने के लिए याकूब जैसे लोगों को चुना। हमें एक स्पष्ट समझ और विश्वास होना चाहिए कि परमेश्वर ने अपने वचन के साथ किसे बुलाया है।
एसाव और याकूब में से किस को परमेश्वर ने बुलाया और प्रेम किया? उसने याकूब को छोड़ और किसी को नहीं बुलाया, एक ऐसा व्यक्ति जो कमियों से, छल से और अधर्म से भरा हुआ था, उसे प्रेम करने और उसे परमेश्वर की धार्मिकता में बचाने के लिए बुलाया। आप भी इस सत्य पर विश्वास करो, कि परमेश्वर पिता ने आपको यीशु मसीह के द्वारा अपनी धार्मिकता में बुलाया है। आपको इस तथ्य में भी विश्वास करना चाहिए कि यीशु मसीह में पानी और आत्मा का सुसमाचार परमेश्वर की धार्मिकता है। 
तो फिर, परमेश्वर ने याकूब जैसे लोगों को क्यों चुना? परमेश्वर ने याकूब को इसलिए चुना क्योंकि वह सभी अधर्मी मनुष्यजातियों का प्रतिनिधि था। परमेश्वर के द्वारा याकूब की बुलाहट उसकी इच्छा के अनुरूप बुलाहट थी; परमेश्वर के वचन के अनुसार एक बुलाहट कि "हम यीशु मसीह में चुने गए हैं।" यह बुलाहट सत्य के उस वचन से भी मेल खाती है कि “इसलिये कि परमेश्‍वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है, कर्मों के कारण नहीं परन्तु बुलानेवाले के कारण है, बनी रहे।”
यीशु मसीह के द्वारा पापियों को बचाने का तरीका यह था कि परमेश्वर की धार्मिकता को उसके प्रेम से सम्पूर्ण तरीके से परिपूर्ण किया जाए। यह पापियों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता द्वारा निर्धारित उद्धार की व्यवस्था थी। उन्हें अपनी धार्मिकता के वस्त्र पहनाने के लिए, परमेश्वर ने याकूब जैसे लोगों को बुलाया, जिनमें कोई आत्म-धार्मिकता नहीं थी, और जिन्होंने यीशु मसीह के द्वारा उसकी बुलाहट का उत्तर दिया था।
क्या परमेश्वर ने उन्हें बुलाया जो स्वयं धर्मी थे और जो ठीक लग रहे थे? या क्या उसने उन लोगों को बुलाया जिनमें आत्म-धार्मिकता नहीं थी जो कमियों से भरे हुए थे? जिन्हें परमेश्वर ने बुलाया, वे याकूब जैसे लोग थे। परमेश्वर ने उन पापियों को बुलाया और बचाया जो अपने पापों के कारण नरक में बंधे हुए थे। आपको यह अवश्य समझना चाहिए कि अपने जन्म से ही, आप भी एक पापी है जो परमेश्वर की महिमा से रहित हो गए है, और इस तरह, आप नरक के लिए नियत थे। दूसरे शब्दों में, आपको अपने सच्चे व्यक्तित्व को जानना जरुरी है। परमेश्वर ने सभी पापियों को यीशु मसीह के द्वारा बुलाया और अपनी धार्मिकता में उनका उद्धार किया।
परमेश्वर के लोग वे हैं जो उसकी धार्मिकता में विश्वास करके धर्मी ठहराए गए हैं। परमेश्वर ने सभी पापियों को बुलाने और उन्हें यीशु में छुड़ाने के लिए उन्हें पहले से ही ठहराया, और जो कुछ उसने पहले से ठहराया था उसे पूरा किया। यह यीशु मसीह में पूर्वनियति और सच्चा चुनाव है जिसके बारे में परमेश्वर बोलता है। परमेश्वर के सच्चे चुनाव को समझने के लिए, हमें पहले चुनाव पर इस सच्चाई की पृष्ठभूमि को समझना होगा, जैसा कि पुराने नियम में वर्णित है।
 

पुराने नियम से परमेश्वर के चुनाव की पृष्टभूमि

उत्पत्ति २५:२१-२६ हमें याकूब और एसाव की कहानी के बारे में बताता है जब वे अपनी माँ रेबेका के गर्भ में थे। इन दोनों में से परमेश्वर ने याकूब को चुना। केल्विन ने अपने चुनाव के सिद्धांत को इस भाग पर आधारित किया, लेकिन हम जल्द ही पता लगा लेंगे कि उनकी समझ परमेश्वर की इच्छा से दूर है। परमेश्वर याकूब को एसाव से अधिक प्रेम करता था उसका एक कारण था। इसका कारण यह है कि एसाव जैसे लोग, परमेश्वर पर भरोसा करने और उस पर विश्वास करने के बजाय, अपनी ताकत पर विश्वास करके जीवन जीते हैं, जबकि याकूब जैसे लोग परमेश्वर की धार्मिकता पर भरोसा और विश्वास करके जीवन जीते हैं। जब यह कहता है कि परमेश्वर ने याकूब को एसाव से अधिक प्रेम किया, तो इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने याकूब जैसे लोगों से प्रेम किया। यही कारण है कि हम "मसीह में चुने गए" (इफिसियों १:४)।
यीशु के बिना और परमेश्वर की धार्मिकता के बाहर "बिना शर्त चुनाव" केवल एक झूठा मसीही सिद्धांत है। यह विचार मसीही धर्म में भाग्य के देवता में विश्वास करने और लाने के समान है। लेकिन सच्चाई हमें बताती है कि परमेश्वर ने सभी पापियों को यीशु में चुना है। क्योंकि परमेश्वर ने  सभी पापियों को बचाने के लिए “यीशु मसीह” में चुन लिया, उसका चुनाव एक न्यायपूर्ण चुनाव था। यदि परमेश्वर ने याकूब को बिना किसी शर्त के चुना होता और एसाव को निराधार रूप से दोषी ठहराया होता, तो वह एक अनुचित परमेश्वर होता, परन्तु उसने हमें यीशु मसीह में बुलाया। और उसने जिनको बुलाया उन्हें बचाने के लिए, उसने यीशु को इस पृथ्वी पर भेजा कि वह अपने बपतिस्मा के द्वारा जगत के पापों को ग्रहण करे, जिसने परमेश्वर की धार्मिकता को पूरा किया है, और क्रूस पर अपना बहुमूल्य लहू बहाया है। इस प्रकार परमेश्वर ने हमें मसीह यीशु के द्वारा चुना और प्रेम किया।
हमें अपने मानवीय विचारों को त्यागने और पवित्रशास्त्र के वचन में विश्वास करने की आवश्यकता है, न कि शाब्दार्थ के विश्वास में, बल्कि हमारे आत्मिक विश्वासों में। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर पिता ने हम सभी को यीशु मसीह के द्वारा चुना है। लेकिन केल्विन परमेश्वर के चुनाव के साथ कैसा व्यवहार करता है? सच्चा विश्वास तब मिलता है जब व्यक्ति परमेश्वर की धार्मिकता को जानता है और विश्वास करता है। मनुष्य के विचार को सत्य मानना मूर्ति की आराधना करने के समान है, परमेश्वर की नहीं।
यीशु के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करना, पूर्वनियति के गलत सिद्धांत में विश्वास करने से स्पष्ट रूप से भिन्न है। यदि हम परमेश्वर के लिखित वचन के अनुसार यीशु को नहीं जानते और उस पर विश्वास नहीं करते, तो हम केवल तर्क करने में असमर्थ पशुओं से भिन्न नहीं है। "यीशु मसीह में" परमेश्वर की धार्मिकता की मुहर के द्वारा हमें परमेश्वर की सन्तान के रूप में चुना गया है। हमें पवित्रशास्त्र के वचन के आधार पर अपने विश्वासों की जांच करनी चाहिए।
केल्विनवाद के पाँच सिद्धांतों में से एक "सीमित प्रायश्चित" की बात करता है। यह सिद्धांत दावा करता है कि दुनिया के कई लोगों में से कुछ लोगों को परमेश्वर के उद्धार से बाहर रखा गया है। परन्तु परमेश्वर का प्रेम और उसकी धार्मिकता इतनी अनुचित नहीं हो सकती। पवित्रशास्त्र हमें बताता है कि परमेश्वर "चाहता है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो, और वे सत्य को भली भाँती पहचान ले” (१ तीमुथियुस २:४)। यदि उद्धार की आशीष एक सीमित आशीष होती जो कुछ लोगो को ही दी जाती है लेकिन दूसरों को इसकी अनुमति नहीं दी जाती है, तो ऐसे कई लोग होंगे जो यीशु में अपने विश्वासों को त्याग देंगे। जो लोग इस तरह के झूठे सिद्धांतों में विश्वास करते हैं, उन्हें पानी और आत्मा के सुसमाचार की ओर लौटना चाहिए, अपने पापों से बचाना चाहिए और यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में जानने और विश्वास करने के द्वारा अनन्त जीवन प्राप्त करना चाहिए। परमेश्वर ने यीशु मसीह के द्वारा अपनी धार्मिकता से सबका उद्धार किया है।
यदि परमेश्वर वास्तव में कुछ लोगों से प्रेम करता और दूसरों से घृणा करता, तो लोग परमेश्वर से मुंह मोड़ लेते। आइए मान लें कि परमेश्वर यहीं खड़े हैं, अभी। यदि परमेश्वर उन सभी को जो दाहिनी ओर खड़े है उनको उद्धार के लिए पसंद करते है और जो बाईं ओर खड़े है उनको नरक के लिए पसंद करते है तो क्या यह उचित होगा? जो उसके बाईं ओर हैं, उनके पास परमेश्वर के विरुद्ध जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। यदि परमेश्वर ऐसा होता, तो इस संसार में कौन सच्चे परमेश्वर के रूप में उसकी सेवा और उसकी आराधना करता? वे सभी जो बिना शर्त परमेश्वर के द्वारा घृणित किए गए, वे विरोध करेंगे और बदले में, वे भी परमेश्वर से घृणा करेंगे। इस दुनिया के अपराधियों के बारे में भी कहा जाता है कि उनकी अपनी नैतिकता और निष्पक्षता होती है। तो फिर, हमारा सृष्टिकर्ता इतना अन्यायी कैसे हो सकता है, और ऐसे अनुचित परमेश्वर पर कौन विश्वास करेगा?
हमारे पिता ने अपने पुत्र यीशु मसीह में पाई गई परमेश्वर की धार्मिकता से सभी पापियों को बचाने का फैसला किया। यही कारण है कि सीमित प्रायश्चित के कैल्विनवादी सिद्धांत का परमेश्वर की धार्मिकता से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी इस तरह के गलत सिद्धांतों के कारण, बहुत से लोग दुर्भाग्य से अभी भी भटक रहे हैं, गलत तरीके से परमेश्वर पर विश्वास कर रहे हैं या उससे दूर हो रहे हैं, सबकुछ अपनी गलतफहमियों की वजह से।
 

झूठी फिल्म
 
स्टीफन किंग का उपन्यास जिसका शीर्षक है, "द स्टैंड", कुछ साल पहले एक टीवी मिनी-सीरीज़ में बनाया गया, और पूरी दुनिया में इसकी बहुत प्रशंसा हुई थी। उपन्यास का कथानक इस प्रकार सामने आता है: वर्ष १९९१ में, एक प्लेग ने अमेरिका पर हमला किया, केवल कुछ हज़ार लोगों को जीवित छोड़ दिया, जो महामारी के लिए "बचे हुए" हैं। बचे लोगों में से, जो सहज रूप से परमेश्वर की सेवा करते हैं, वे बोल्डर, कोलोराडो में मिलते हैं, जबकि जो लोग "डार्क मैन" की आराधना करते हैं, वे लास वेगास, नेवादा में आते हैं। दो समूह अलग-अलग समाजों का पुनर्निर्माण करते हैं, जब तक कि एक समूह दुसरे का नाश नहीं करता।
बचे लोगों में, स्टुअर्ट नाम का एक युवक बार-बार सपने देखता है कि दुनिया का अंत आ गया है, और अबीगैल नाम की एक बुजुर्ग महिला उसे सपने में एक निश्चित स्थान पर जाने के लिए कहती है, उसे याद दिलाती है कि परमेश्वर ने उसे पहले ही चुन लिया है। इस फिल्म में, परमेश्वर ने इस युवक को बचाया क्योंकि उसने उसे सृष्टि से पहले नियुक्त किया था, तब भी जब वह परमेश्वर या यीशु में विश्वास नहीं करता था।
तो क्या परमेश्वर उन लोगों को बिना शर्त बचाता है जो यीशु पर विश्वास भी नहीं करते हैं? बिलकूल नही। जो लोग उसकी धार्मिकता में विश्वास करते हैं, उन्हें उनके पापों से बचाने के लिए परमेश्वर ने यीशु मसीह में सभी को पहले से ठहराया है। 
इस फिल्म की कहानी केल्विन के पूर्वनियति और चुनाव के सिध्धांत पर आधारित है। यह फिल्म केवल एक कहानी है जो केवल एक धर्मशास्त्री के सिद्धांत का एक हिस्सा बताती है। कैसे परमेश्वर मनमाने ढंग से कुछ लोगों को नरक में भेजने और फिर उद्धार के लिए दूसरों को चुनने का निर्णय ले सकता है? क्योंकि परमेश्वर धर्मी है, उसने यीशु मसीह के द्वारा सभी को ठहराया और चुन लिया है, और कोई भी ऐसा नहीं है जो उसकी धार्मिकता के उद्धार से वर्जित है। यीशु मसीह के बिना परमेश्वर का पूर्वनियति और चुनाव अर्थहीन और बाइबल आधारित नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने सारे धर्मशास्त्री यह दावा करना जारी रखते हैं कि परमेश्वर ने कुछ लोगों को चुना जबकि उन्होंने दूसरों की निंदा की।
इससे पहले कि उसने ब्रह्मांड को बनाया, परमेश्वर ने सभी पापियों को बचाने और यीशु मसीह के माध्यम से अपनी धार्मिकता के साथ उन्हें अपनी संतान बनाने की योजना बनाई। दूसरे शब्दों में, उसने यीशु के सुसमाचार के द्वारा सभी पापियों को चुना। तो आप कैसे विश्वास करते हैं?
क्या आप विश्वास करते हैं कि पहाड़ों में गहरे ध्यान करने वाले बौद्ध भिक्षुओं को परमेश्वर के चुनाव से बाहर रखा गया है? यदि यीशु मसीह के बिना परमेश्वर का पूर्वनियति और चुनाव बिना शर्त होता, तो हमें उसके वचन का प्रचार करने, या उस पर विश्वास करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। यदि, उद्धारकर्ता यीशु मसीह के बिना, कुछ लोगों का उद्धार होना नियत है और अन्य का नहीं, तो पापियों को यीशु पर विश्वास करने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं होगी। यीशु ने हमें हमारे पापों से अपने बपतिस्मा और क्रूस पर अपने लहू के द्वारा बचाया है, अंत में, यह भी अर्थहीन होगा। लेकिन यीशु मसीह में पाए गए परमेश्वर की धार्मिकता में, परमेश्वर ने इन बौद्ध भिक्षुओं को भी मुक्ति की अनुमति दी, जो यीशु में विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन केवल तभी यदि वे वे पश्चाताप करते हैं और अपने मन को परमेश्वर की ओर मोड़ते हैं।
इस दुनिया में बहुत से लोग हैं जो यीशु पर विश्वास करके अपना जीवन जीते हैं। यदि हम उन्हें दो समूहों में बांट दें, तो एक समूह वे होंगे जो एसाव के समान हैं, और दूसरा वे होंगे जो याकूब के समान हैं। याकूब जैसे लोग खुद को नरक के लिए बाध्य पापियों के रूप में पहचानते हैं, और इस तरह, यीशु द्वारा दी गए पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करने के द्वारा वे अपने पापों से बचाए जाते हैं। दूसरा समूह एसाव जैसे लोगों से बना है, जो यीशु में अपने विश्वासों में अपने स्वयं के प्रयासों को जोड़कर स्वर्ग के द्वार में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं। 
आप किसकी तरह हैं? याकूब या एसाव? क्या आप परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास करते हैं? या क्या आप पूर्वनियति के गलत सिद्धांत में विश्वास करते हैं? इन दो विश्वासों के बीच आपकी पसंद तय करेगी कि आप स्वर्ग में जायेंगे या नरक में। आपको इन गलत सिद्धांतों को फेंक देना चाहिए और परमेश्वर की धार्मिकता के द्वारा बोले गए पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करके उसके साथ शांति बनाने के लिए परमेश्वर की धार्मिकता को प्राप्त करना चाहिए। केवल यही विश्वास हमें हमारे पापों और अनन्त जीवन से सम्पूर्ण छूटकारा देता है।