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उपदेश

विषय ३ : पानी और पवित्र आत्मा का सुसमाचार

[3-7] याजकपद में परिवर्तन (इब्रानियों ७:१-२८)

याजकपद में परिवर्तन
(इब्रानियों ७:१-२८)
‘यह मलिकिसिदक शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजक, सर्वदा याजक बना रहता है। जब अब्राहम राजाओं को मारकर लौटा जाता है, तो इसी ने उससे भेंट करके उसे आशीष दी। इसी को अब्राहम ने सब वस्तुओं का दसवां अंश भी दिया। यह पहले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धर्म का राजा, और फिर शालेम अर्थात् शान्ति का राजा है। जिसका न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके दिनों का न आदि है, और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरुप ठहर कर वह सदा के लिए याजक बना रहता है। अब इस पर ध्यान करो कि वह कैसा महान् था जिसको कुलपति अब्राहम ने लूट के अच्छे से अच्छे माल का दशवां अशं दिया। लेवी की सन्तान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है कि लोगों, अर्थात् अपने भाइयों से, चाहे वे अब्राहम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवां अंश लें। पर इसने, जो उनकी वंशावली में से भी न था, अब्राहम से दसवां अंश लिया, और जिसे प्रतिज्ञाएं मिली थीं, उसे आशीष दी। इसमें संदेह नहीं कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। और यहां तो मरनहार मनुष्य दसवां अंश लेते हैं, पर वहां वही लेता है जिसकी गवाही दी जाती है कि वह जीवित है। तो हम यह भी कह सकते हैं कि लेवी ने भी जो दसवां अंश लेता है, अब्राहम के द्वारा दसवां अंश दिया। क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय वह अपने पिता की देह में था। यदि लेवीय याजक पद के द्धारा सिद्धि प्राप्त हो सकती (जिसके सहारे लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारुन की रीति का न कहलाए? क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है, तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है। क्योंकि जिसके विषय में ये बात कहीं जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की, तो प्रगट है कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है, और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की चर्चा नहीं की। हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रगट हो जाता है, जब मलिकिसिदक के समान एक और याजक उत्पन्न हो जाता है, जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ्य के अनुसार नियुक्त हुआ हो। क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, ‘‘तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है।’’ इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण लोप हो गई (इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं किया) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं। मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई, क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए, पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्त किया गया जिसने उसके विषय में कहा कि ‘‘प्रभु ने शपथ खाई, और वह उससे फिर न पछताएगा कि तू युगानुयुग याजक है।’’ इस प्रकार यीशु एक उत्तम वाचा का ज़ामिन ठहरा। वे तो बहुत बड़ी संख्या में याजक बनने आए, इसका कारण था कि मृत्यु उन्हें रहने न ही देती थी; पर यह युगानुयुग रहता है, इसी कारण उसका याजक पद अटल है। इसी लिये जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिए विनती करने को सर्वदा जीवित है। अतः ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था जो पवित्र, और निष्कपट, और निर्मल और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो। उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिए बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उसने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार में पूरा कर दिया। क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है, परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिए सिद्ध किया गया है”। 
 
 

यीशु स्वर्गीय याजकीय पद का सेवक

 
कौन श्रेष्ठ है, महायाजक मलिकिसिदक या हारुन की रीति के अनुसार पृथ्वी पर का महायाजक?
महायाजक मलिकिसिदक

पुराना नियम में, मलिकिसिदक नाम का एक महायाजक था। अब्राहम के समय में, राजा कदोर्लाओमेर और अन्य राजाओं के मध्य संधि हुई, वे सदोम और अमोरा के सारे धन और भोजन की वस्तुओं को लूट कर चले गये। तब अब्राहम ने अपने कुटुम्ब के युद्ध कौशल में निपुण दासों को लेकर, और अस्त्र-शस्त्र धाराण करके राजा कदोर्लाओमेर और उसके साथी राजाओं के विरुद्ध युद्ध किया।
वहां अब्राहम ने कदोर्लाओमेर जो एलाम का राजा था, और उसके साथी राजाओं को हराकर उसने अपने भतीजे लूत और उसके धन को वापस ले आया। जब अब्राहम अपने शत्रु राजाओं को हराकर वापस आ रहा था, तब शालेम का राजा मलिकिसिदक जो परमप्रधान ईश्वर का याजक था, रोटी और दाखमधु ले आया और उसने अब्राहम को आशीर्वाद दिया, तब अब्राहम ने उसको सब वस्तुओं का दशमांश दिया (उत्पत्ति १४)।
बाइबल में महायाजक मलिकिसिदक की महानता और महायाजको के क्रम का चित्रण किया गया है। जिसमें महायाजक मलिकिसिदक शांन्ति का राजा और धर्म का राजा है, जिसका न कोई पिता, न माता, न वशांवली है, जिसके दिनों का न आदि है और न जीवन का अन्त है, परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरुप ठहरकर वह सदा के लिए याजक बना रहता है। 
बाइबल हमें यह कहती है कि सावधानी पूर्वक यीशु मसीह की महानता पर विचार करें जो मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है, नए नियम में यीशु मसीह की महायाजकीय तुलना पुराने नियम के हारुन महायाजक से की गई है। 
लेवी गोत्र के वंशज याजक बने और वे उन लोगों से दशवांश लेते थे जो उनके भाई थे, भले ही फिर वे अब्राहम के वंशज क्यों न हो। लेकिन जब अब्राहम ने मलिकिसिदक महायाजक को दशवांश दिया, उस समय लेवी अपने पिता की देह ही में था। 
क्या पुराने नियम के याजक यीशु मसीह से उत्तम थे? यह बाइबल में वर्णित है। क्या यीशु मसीह सांसारिक याजको से उत्तम है? कौन किसके द्वारा आशीषित किया जाएगा? इब्रानियों की पत्री का लेखक इस विषय पर शुरू से चर्चा करता है। ‘इसमें संदेह नहीं कि छोटा बड़े से आशीष पाता है।ʼ इब्राहम भी मलिकिसिदक याजक द्वारा आशीषित किया गया। 
अब हमें अपने विश्वास में कैसे जीना चाहिए? क्या हमें पुराने नियम के मिलापवाले तम्बू की बलिदान की प्रथा पर जो परमेश्वर ने आज्ञा दी है उस पर निर्भर होना चाहिए या हमें यीशु मसीह पर जो हमारे बिच पानी और आत्मा के बलिदान के द्वारा आया उसके ऊपर निर्भर होना चाहिए? 
अब यह इस बात पर निर्भर करती है कि हम कौन सी व्याख्या को चुनते हैं। या तो हम आशीषित होंगे या शापित होंगे। क्या हम परमेश्वर के वचन पर विश्वास कर जीवन जीते हैं और प्रतिदिन बलिदान चढ़ाते हैं या हम यीशु मसीह पर विश्वास कर उसके उद्धार पर भरोसा कर जो उसने पानी और लहू से एक ही बार हमेशा के लिए दिया है। हमें उक्त दोनों में से एक को चुनना ही पड़ेगा । 
पुराने नियम के दिनों में इस्राएली लोग हारुन याजक के और लेवी याजक की सन्तानों को देखा करते थे। लेकिन नए नियम के दिनों में यदि यह पूछा जाए कि कौन उत्तम है, यीशु मसीह या हारुन के वंश के याजक? तो बिना संकोच यह उत्तर होगा कि यीशु मसीह उत्तम है। लेकिन लोग इस सत्यता को जानते हुए भी बहुत कम लोग इसका अनुसरण करते है। 
बाइबल इस प्रश्न का साफ तौर पर उत्तर देती है। यह हमें कहती है कि यीशु दूसरे गोत्र का था जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की थी, उसने स्वर्गीय याजकीय पद को सम्भाला, ‘क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है, तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।ʼ
परमेश्वर ने मूसा के द्वारा इस्राएलियों को आज्ञा दी जिसमें ६१३ प्रकार के विस्तृत नियमों का वर्णन है। मूसा ने इस्राएलियों से कहा कि वे आज्ञा का अनुसरण कर उसका पालन करें, तब लोगों ने से ऐसा ही करने का प्रण किया। 
 
क्यों परमेश्वर ने प्रथम वाचा को दूर कर दूसरी को स्थापित किया?
क्योंकि मनुष्य इतने कमजोर थे कि वे उस प्रथम वाचा के अनुरुप नहीं चल सकते थे।

बाइबल के अनुसार इस्राइलियों ने यह शपथ खाई कि वे परमेश्वर कि व्यवस्था अनुरुप उसका पालन करेंगे जो पंचग्रंथ की पुस्तक, उत्पत्ति, निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती व व्यवस्थाविवरण में है, उसे परमेश्वर ने उसके सामने उद्घोषित किया, तब उन्होंने बिना संकोच के सभी के पालन हेतु ‘हाँʼ किया। 
जैसा कि हम देखते है कि व्यवस्थाविवरण के बाद यहोशू से आगे, वे कभी भी परमेश्वर की व्यवस्था के अनुरुप नहीं चल सके। 
तब न्यायियों से प्रथम राजाओं के वृतान्त से दूसरा राजाओं के वृतान्त तक वे अपने अगुवों का निरादर करने लगे। उसके बाद तो उन्होंने मिलापवाला तम्बू की पवित्र बलिदान की प्रथा को बदल दिया। 
और अन्त में मलाकी के समय में वे बलिदान हेतु लंगड़े एवं रोगी पशु को लाने लगे, जबकि परमेश्वर ने उन्हें निष्कलंक पशु भेंट चढ़ाने को कहा था। यहाँ तक वे याजको से मना किए हुए पशु के बारे में उन्हें इसे स्वीकारन करने व उस पर ध्यान नहीं देने हेतु आग्रह करते थे। बजाय इसके कि उन्होंने बलिदान चढ़ा कर मनमाना नियम विरुद्ध व्यवस्था को बदल डाला। 
पुराने नियम में इस्राएलियों ने कभी भी परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं किया। वे सरलता से उन उद्धार की योजनाओं को जो व्यवस्था में प्रगट थी उसे भूल गए, और जानबूझ कर उसका त्याग किया। यिर्मयाह कि पुस्तक में परमेश्वर कहता है, ‘मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों के साथ एक नई वाचा बाँधूँगा।ʼ
आइये, यिर्मयाह ३१:३१-३४ को देखे, ‘फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बांधूंगा। वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से उस समय बाँधी थी जब मैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया, क्योंकि यद्यपि मैं उनका पति था, तो भी उन्होंने मेरी वह वाचा तोड़ डाली। परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बांधूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊँगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरुँगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे। यहोवा की यह वाणी है। तब उन्हें फिर एक दूसरे से यह न कहना पड़ेगा कि यहोवा को जानों, क्योंकि, यहोवा की यह वाणी है, छोटे से लेकर बड़े तक सब के सब मेरा ज्ञान रखेंगे; क्योंकि मैं उनका अधर्म क्षमा करुँगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।ʼ
परमेश्वर कहता है कि वह एक नई वाचा बांधेगा। उसने इस्राएल के घरानों के साथ पहली वाचा बांधी थी, वह तोड़ दी गई और वे परमेश्वर के वचन अनुसार उसमें नहीं चल सके। अत: उसने पुनः एक नई उद्धार की वाचा अपने लोगों के साथ बाँधने की प्रतिज्ञा की। 
इस्राएलियों ने परमेश्वर के सामने मन्नत माँगी थी कि वे परमेश्वर के वचन और उसकी आज्ञा का पालन करेंगे, परमेश्वर ने उनसे कहा था, ‘तुम मुझे छोड़ किसी और को ईश्वर करके न मानना।ʼ तब इस्राएलियों ने कहा था कि ‘निश्चय हम किसी अन्य ईश्वर कि उपासना नहीं करेंगे, केवल तू ही हमारा परमेश्वर है, तुझे छोड़ और कोई हमारा ईश्वर नहीं है।ʼ परन्तु वे इस वाचा का पालन नहीं कर सके। सम्पूर्ण आज्ञा का सारांश दस आज्ञाओं में इस प्रकार वर्णित है।
तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना, तू अपने लिए कोई मूर्ति बनाकर उसको दण्डवत न करना, और न उसकी पूजा करना, तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना, तू विश्राम दिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना, तू अपने माता-पिता का आदर करना, खून न करना, तू व्यभिचार न करना, तू चोरी न करना, तू किसी के विरुद्ध झूठी गवाही न देना, और तू किसी की किसी वस्तु का लालच न करना (निर्गमन अध्याय २०)।
इसके आगे इनको ६१३ प्रकार के उपनियमों के रुप से विभाजित किया गया था जिसे उन्हें मानना था। जैसे ‘अपने बेटे और बेटियों से ये करना और ये नहीं करना, और वैसे ही अपने सौतेली माता से क्या करना और क्या नहीं करना इत्यादि।ʼ परमेश्वर की आज्ञा में उन्हें सभी अच्छे कार्यों को करने को कहा गया था और बुराई से दूर रहने कहा गया था। यही दस आज्ञाएं और उसके ६१३ विस्तृत उप-नियम हैं। 
जैसा कि सम्पूर्ण मनुष्यजाति में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जिसने सम्पूर्ण नियमों, उपनियमों का पालन किया हो। इसलिए परमेश्वर ने मनुष्यों के पापों से उद्धार हेतु एक वैकल्पिक रास्ता अपनाया। 
कब याजकीय पद बदल गया? यीशु मसीह के इस संसार में आने के बाद यह याजकीय पद बदल गया। यीशु मसीह ने हारुन के रीतिनुसार सब याजकों के पद को अपने ऊपर ले लिया। उसने मिलापवाले तम्बू की बलिदान प्रथाओं को दूर किया जो लेवियों का अधिकार थीं। उसने अकेले स्वर्गीय याजकीय पद की सेवा की, वह इस संसार में हारुन के वंशज के रुप में नहीं आया, परन्तु वह यहूदा के वंशज के रुप में इस संसार में आया। 
जो राजाओं के वंशज का गोत्र है। उसने अपने आप को बलिदान किया, अपने बपतिस्मा और क्रूस पर अपने लहू के बहाये जाने के द्वारा सारी मनुष्यजाति को उसके पापों से बचाया। 
उसने अपने आप को बलिदान होने के लिए दे दिया जिसके द्वारा पापों की समस्या का समाधान हुआ और उसने सम्पूर्ण मानव जाति के पापों को बपतिस्मा के बलिदान और लहू के द्वारा धो डाला। उसने एक ही बार में सदा के लिए सारे पापों लिए सिद्ध व अनंत बलिदान दिया ।
 
 
याजकीय पद के परिवर्तन के साथ व्यवस्था में भी परिवर्तन हुआ 
 
उद्धार की बदली हुई व्यवस्था कौनसी थी?
यीशु का एक अनंत बलिदान

प्रिय मित्रो, पुराने नियम का याजक पद नए नियम में बदल दिया गया। पुराने नियम के समयों में महायाजक हारुन के वंश के लेवी घराने के होते थे। वे ही इस्राएलियों के पापों के प्रायश्चित हेतु बलिदान चढ़ाते थे। महायाजक परमपवित्र स्थान में प्रवेश करता था और दया के सिहांसन के पास पशुओं का लहू लेकर जाता था, केवल महायाजक ही पर्दे के उस पार अतिपवित्र स्थान में जा सकते थे। 
परन्तु, यीशु मसीह के आने से हारुन की रीति का याजकीय पद उसे सौंप दिया गया और यीशु ने उस अनन्त याजकीय पद को अपने ऊपर ले लिया। उसने अपने आपको बलि कर उस अनंत याजकीय पद की सेवा की ताकि सारी मनुष्यजाति को उनके पापों से बचाया जाए। 
पुराने नियम में महायाजक भी अपने पापों हेतु वह पापबलि के बछड़े के ऊपर अपना हाथ रखकर प्रायश्चित किया करता था, फिर वह इस्राएलियों की मंडली की सेवा करता था। वह पापबलि के बछड़े के ऊपर हाथ रखने के द्वारा अपने पाप को उस पर डाल देता था, तब यह कहता था कि ‘परमेश्वर मैंने पाप किया है।ʼ तब वह उस पशु बलि को भेंट चढ़ाकर उसके लहू को दया आसन के ऊपर सात बार छिड़कता था। 
यदि हारुन महायाजक स्वयं सिद्ध नहीं था, तो आप सोच सकते हैं कि एक आम आदमी कितना और कैसे कमजोर है। लेवी का पुत्र हारुन महायाजक भी पापी था, इसलिए उसे अपने और अपने घराने के लिए पापबलि चढ़ाना पड़ता था। 
यहोवा परमेश्वर ने यिर्मयाह के अध्याय ३१ में कहता है, मैं अपनी वाचा तोड़ दूंगा जो मैंने तुम लोगों से बांधी थी, क्योंकि उसका पालन नहीं किया गया। इसलिए में उस वाचा को पूरा कर एक ऐसी उद्धार की वाचा दूंगा जिससे तुम्हारे पापों की क्षमा हो सके। मैं अब से तुम्हें अपनी आज्ञाओं के द्वारा नहीं, परन्तु मैं तुम्हारा उद्धार पानी और आत्मा के सुसमाचार से करुंगा। 
परमेश्वर ने हमें नई वाचा प्रदान की है। जब समय पूरा हुआ तब यीशु मसीह मनुष्य की समानता में होकर आया और अपने आपको क्रूस पर बलिदान कर हमारे पापों को हर लिया ताकि जो उस पर विश्वास करें वह नाश न हो। उसने अपने बपतिस्मा के द्वारा सारी मानव जाति के पापों को अपने ऊपर उठा लिया। 
परमेश्वर की व्यवस्था को दूर कर उसे हटाया गया। इस्राएल के घराने बचाये गये होते, यदि वे परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार जीते। परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके क्योंकि ‘व्यवस्था से पाप की पहचान होती हैʼ (रोमियों ३:२०)।
परमेश्वर की इच्छा थी कि इस्राएल इस बात को जाने कि वे पापी हैं और व्यवस्था उन्हें बचा नहीं सकती है। उसने पानी और आत्मा के द्वारा उन्हें उद्धार की व्यवस्था से बचाया, उनके कर्मो के द्वारा नहीं। परमेश्वर के असीमित प्रेम के कारण उसने हमें एक नई वाचा को दिया जिसके द्वारा हम अपने पापों से इस संसार में यीशु के बपतिस्मा और उसके लहू के द्वारा बचाये जा सकें। 
यीशु के बपतिस्मा और उसके लहू के अर्थ को जाने बिना यदि कोई उस पर विश्वास करता है, तो उसका विश्वास व्यर्थ है। यदि कोई ऐसा करता है तो वह बड़ी मुसीबत में है और तब आपका यीशु पर विश्वास नहीं के बराबर है। परमेश्वर कहता है कि वह सारे मानव जाति को बचाने हेतु एक नई वाचा देगा। फलस्वरुप अब हम अपने कर्मों की व्यवस्था द्वारा नहीं बचाये गये, परन्तु अब हम उस धार्मिकता से बचाये गये जो हमें यीशु के पानी और लहू के द्वारा मिलती है। 
यह उसकी अनंत प्रतिज्ञा थी जिसे परमेश्वर ने यीशु मसीह के ऊपर विश्वास करने वालों पर परिपूर्ण किया और उसने हमें यीशु की महानता के विषय में उसने यीशु की उत्तम होने की तुलना पुराना नियम के हारुन की रीति पर के याजकों से किया। 
हम यीशु मसीह के पानी और लहू के द्वारा इस पर विश्वास करने से विशेष लोग बनाये जाते हैं। कृपया इस पर ध्यानपूर्वक विचार करें। ये कोई मायने नहीं रखता कि आपका पास्टर कितना ज्ञानी और विख्यात है, तो भी क्या वह यीशु से महान है? हमारे पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है, हम केवल मसीह यीशु के पानी और लहू के सुसमाचार से बचाये जा सकते है। केवल परमेश्वर की आज्ञाओं को मान लेने से नहीं क्योंकि याजकीय पद तो बदल चुका है। और उसके साथ ही साथ उद्धार के नियम भी बदल चुके हैं।
 
 
परमेश्वर के प्रेम की श्रेष्ठता
 
कौन श्रेष्ठ है, परमेश्वर का प्रेम या परमेश्वर की व्यवस्था?
परमेश्वर का प्रेम

हम केवल यीशु मसीह के ऊपर विश्वास के द्वारा उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। यह जानते हुए कि यीशु ने हमें कैसे बचाया, हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम कितना अद्भुत है, तभी हम जानेंगे परमेश्वर की आज्ञाओं और परमेश्वर के प्रेम दोनों पर विश्वास करने में कितना अंतर है। व्यवस्था से बंधे हुए लोग परमेश्वर के वचन की अपेक्षा अपनी ही संस्थाओं और अपनी व्यक्तिगत शिक्षाओं को ज्यादा ही महत्व देते हैं। पर जैसा कि आप जानते हैं, सच्चा और परिपूर्ण विश्वास तभी मिलता है, जब हम यीशु के उत्तम उद्धार पर विश्वास करते हैं जो हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा प्राप्त होता है। 
आज भी बहुत से लोग ये कहते हैं, कि हमें हमारे मूल पाप से क्षमा मिल चुकी है, परन्तु हमें प्रतिदिन अपने प्रतिदिन के पापों के लिए पश्चताप करना है। बहुतेरे यही विश्वास करके पुराने नियम में दी गई आज्ञा अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं, परन्तु बहुतेरे आज उस सच्चाई से जो कि यीशु मसीह के श्रेष्ठ उद्धार जो उसने हमें पानी और आत्मा के द्वारा प्रदान किया है, उससे अनजान हैं। 
पुराने नियम में यहूदियों को उनके पापों की क्षमा हेतु परमेश्वर द्वारा प्रदान की गई व्यवस्था के अनुरुप चलना पड़ता था। परन्तु, फिर भी वे बचाये नहीं जाते थे। क्योंकि परमेश्वर मनुष्यों की कमजोरियों को जनता था कि मनुष्य अपरिपूर्ण है। तब उसने अपनी व्यवस्था को हटा दिया क्योंकि हम अपने कर्मों के द्वारा कभी उद्धार नहीं पा सकते। यीशु मसीह ने कहा कि वह हमें अपने पानी और आत्मा के सुसमाचार से बचा सकता है। उसने यह भी कहा कि ‘मैं ही केवल तुम्हें तुम्हारे सभी पापों से बचा सकता हूँ।’ परमेश्वर ने उत्पत्ति कि पुस्तक में स्वंय भविष्यवाणी की थी।
‘वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगाʼ (उत्पत्ति ३:१५)। आदम और हव्वा के पापों में गिरने के पश्चात् उन्होंने अंजीर के पत्तों से अपने लिए अंगरखे बनाकर उसे लपेट लिया, ताकि उनका नंगापन परमेश्वर के सामने ढ़क जाये। परन्तु परमेश्वर ने उन्हें पुकारा और उनके लिए उसने चमड़े का अंगरखा बनाया जो उद्धार का प्रतीक है। उत्पत्ति कि पुस्तक में दो प्रकार के उद्धार के वस्त्रों के बारे में बताया गया है। पहला जो अंजीर के वृक्ष के पत्तों से बनाया हुआ था, और दूसरा, जो चमड़े से बनाया गया। इसमें से कौन आपकी समझ अनुसार उत्तम है? निश्चित चमड़े का वस्त्र उत्तम है क्योंकि वह उस पशु की खाल से था जो मनुष्यों को बचाने हेतु बलि चढ़ाया जाता था। 
अंजीर के पत्तों का वस्त्र शीघ्र ही मुरझा जाता था जैसा कि आप जानते हैं कि अंजीर के पत्ते हाथ की पांच अंगुलियों के समान दिखाई पड़ते थे। अतः अंजीर के पत्तों के वस्त्र बनाने का अर्थ केवल अच्छे कर्म से पापों को छिपाने के बराबर है। यदि तुम अंजीर के पत्तों का अंगरखा पहिनकर बैठ जाओ तो वह शीघ्र ही टुकड़े-टुकड़े होकर फट जाएगा। जब मैं एक बालक था, तब मैं पत्ते की डाल से औजार बनाकर सिपाही का खेल खेलता था। परन्तु, मैं बड़ी सावधानी पूर्वक उन्हें पहिनता था, फिरभी दिन के अन्त होने तक वह फट जाता था। ठीक इसी तरह से, मनुष्य जाति के कमजोर शरीर द्वारा पवित्रीकरण असंभव है। 
परन्तु, यीशु का बपतिस्मा, क्रूस पर उसका लहू और मृत्यु बहुत से पापियों के पापों के उद्धार के लिए उपयुक्त है जो परमेश्वर का प्रेम प्रगट करता है। इस तरह से परमेश्वर का प्रेम परमेश्वर की व्यवस्था से श्रेष्ठ है।
 
 
वे जिन्हें अभी भी परमेश्वर की व्यवस्था पर विश्वास है 
 
आज्ञाओं पर विश्वास करने वाले अपने कर्मो का रोज नया अंगरखा क्यों बनाते हैं ?
क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि उनके कर्म उन्हें धर्मी नहीं बना सकते।

जो लोग अपने लिए आज भी अंजीर के पत्तों से वस्त्र बनाते हैं, वे व्यवस्था के अधीन जी रहे हैं। ये भटके हुए विश्वासी हैं जिन्हें प्रतिदिन अपना वस्त्र बदलना पड़ता है। उन्हें अपना नया वस्त्र प्रति रविवार के दिन कलीसिया जाने के लिए बदलना पड़ता है। प्रिय परमेश्वर, मैंने पिछले सप्ताह बहुत पाप किये, परन्तु प्रभु मैं विश्वास करता हूँ, आपने मुझे क्रूस के द्वारा बचाया। प्रभु कृपया मेरे पापों को यीशु के लहू के द्वारा धो दीजिए। वे तुरंत ही नयी वस्तु से तत्काल वस्त्र बना कर देते है। ‘ओह परमेश्वर की महिमा हो। हालेलूय्याह!ʼ
परन्तु, वे फिर से एक नया वस्त्र अपने घर पर सिल लेते हैं। क्यों? क्योंकि उनका पुराना अंगरखा फट चुका होता है। ‘प्रिय प्रभु, मैंने पिछले तीन दिनों में बहुत पाप किये हैं। कृपया मुझ पर दया कीजिए।ʼ वे पश्चाताप के द्वारा नये-नये अंगरखे बनाकर बार-बार पहनते हैं। 
शुरुआत में, वह अंगरखा काफी दिनों तक चलता है, उसके बाद नये जोड़े की उन्हें प्रतिदिन जरुरत पड़ती है। मानो जैसा वे बिना व्यवस्था के रह नहीं सकते, उन्हें खुद पर भी लज्जा आती है, ‘ओह प्रभु, यह तो बहुत ही शर्मनाक है। ओह प्रभु, मैंने फिर से पाप किया है।ʼ वे फिर से पश्चाताप का एक और अंगरखा बनाते हैं। ‘ओह प्रभु, यह तो बहुत ही कठिन है आज फिर अंजीर के पत्तों से अंगरखा बनाना है।ʼ वे कठोर परिश्रम करके एक नया जोड़ा बनाते हैं।
जब कभी ऐसे लोग ईश्वर की दोहाई देते हैं, तो यह केवल उनके पापों को कबूल करने के मकसद से होता है। वे अपने होठों को दबा कर प्रभु की दोहाई देते हैं। ‘प्रभु!ʼ और प्रतिदिन एक नया अंगरखा बनाते हैं, परिणाम यह होता है कि वे ऐसा करके क्या थक जाते हैं? 
वर्ष में एक या दो बार वे पहाड़ों पर उपवास करने जाते हैं, और वे अधिक मजबूत वस्त्र बनाने का प्रयास करते हैं। वे इस तरह कुछ कहते है, ‘‘प्रभु मेरा पाप धो दीजिए, मुझे नया मनुष्य बनाइये, मैं आप पर विश्वास करता हूँ।’’ वे सोचते हैं, कि रोज की प्रार्थना सबसे उत्तम होती है। इसलिए वे दिन को सोते हैं और जैसे ही अंधेरा होता है, वे पेड़ों पर मानों लटक जाते हैं या किसी अंधेरी गुफा में चले जाते हैं। और फिर इस प्रकार दुहाई देते है। ‘♪हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ।’ ‘मैं खेदित व टूटा हुए मन के साथ आपके पास आता हूँ ♪।ʼ वे चिल्ला कर दुआ करते हैं कि ‘‘मैं विश्वास करता हूँ’’। इस तरह वे एक विशेष टिकाऊ वस्त्र बनाते हैं, परन्तु जल्द ही वह भी मुर्झा जाता है। 
कितना शक्तिवर्धन होता है जब पहाड़ों से प्रार्थना कर नीचे आते हैं! मानों जैसे तरो ताजा व बारिश की उन बूंदों के समान जो पेड़ पौधों को व फूलों में ताजगी भर देता है। वैसा ही वे अपने आत्मा में ईश्वरीय सार्मथ से भरा महसूस करते हैं। यहाँ तक कि वे पहाड़ों की आबो हवा से खुद को ज्यादा पवित्र मानते हैं। वे दुनिया को एक नया वस्त्र धारण किए हुए देखते हैं। 
लेकिन जल्द ही जब वे अपने घरों व कलीसिया में जाते हैं, और पुनः जीवन जीना आरंभ करते हैं, तब यह अंगरखा गंदा व उतारने के योग्य हो जाता है। 
उनके दोस्त उन्हें पूछते हैं, ‘तुम कहाँ थे?ʼ
‘वाकई, मैं कुछ दिनों के लिए बाहर गया था।ʼ
‘तुम ऐसे दिख रहे हो जैसे तुमने अपना वजन घटाया हो।ʼ
‘वाकई, हाँ, परंतु यह एक अलग ही कहानी है।ʼ
परन्तु, वे सीधे आराधनालय में जाकर कुछ इस तरह प्रार्थना करते हैं। ‘‘मैं फिर कभी किसी औरत को कुदृष्टि से नहीं देखूंगा, मैं कभी भी झूठ नहीं बोलूंगा, मैं अपनी पड़ोसी की किसी वस्तु का लालच नहीं करुंगा, मैं दूसरों से प्रेम करुंगा।’’
परन्तु जैसे ही वे किसी सुंदर और छरहरी बदन वाली महिला को देखते हैं, वैसे ही उनकी धार्मिकता खत्म हो जाती है, और उनके मन में हवस समा जाती है। तदुपरान्त वे फिर ऐसा कहते, ‘देखा स्कर्ट कितना छोटा है! स्कर्ट दिनों दिन छोटे होते जा रहे हैं! मुझे उन जाघों पर फिर ध्यान देना चाहिए! ऐसा नहीं, ओह! प्रभु मैंने फिर पाप किया है।’ 
व्यवस्था के अधीन जीने वाले अपने को ज्यादा धर्मी बताते हैं। परन्तु आप जानते हैं कि उन्हें हर रोज नया अंगरखा बनाना पड़ता है। व्यवस्था के अधीन जीने वालों की आस्था अंजीर के पत्तों से बने वस्त्र पर होती है, जो एक गलत आस्था है। बहुत से लोग पूरी कोशिश करते हैं कि परमेश्वर की उस व्यवस्था के आधीन जीएं। वे पहाड़ों पर अपने फेफड़ों से ज्यादा हवा फेंकते हैं ताकि उनकी आवाजों में ज्यादा धार्मिकता झलके। 
व्यवस्था के अधीन जीने वाले बहुत ही बनावटी किस्म के चेहरे को प्रस्तुत करते हैं, जब वे आराधना आदि का संचालन करते हैं। ‘हे स्वर्गीय पिता हमने पिछले सप्ताह गुनाह किये हैं, कृपया हम पर दया करें।ʼ वे आंसुओं के साथ शुरु करते हैं तब पूरी कलीसिया भी उनका अनुसरण करने लगती है। व्यवस्था के अधीन जीनेवाले कलीसिया में प्रार्थना सभा की अगुवाई करते समय बहुत ही प्रभावशील अंग विन्यास प्रस्तुत करते हैं। जैसे ‘हे पवित्र पिता, हमें क्षमा कीजिए। हमने बीते सप्ताह पाप किये है।ʼ वे आंसुओं के साथ भावुक हो जाते हैं, और उनके साथ पूरी कलीसिया भी ऐसा करती है। वे अपने बारे में ऐसा सोचते हैं कि उन्होंने अपना काफी समय पहाड़ों पर उपवास और प्रार्थना में व्यतीत किया है। अतः उनकी आवाज़ में काफी धार्मिकता झलकती है। परन्तु, उनका विश्वास केवल कर्मों की व्यवस्था पर होने की वजह से प्रार्थना खत्म होने के पूर्व ही उनके हृदय कटुता और पाप से भर जाते हैं।
जब लोग फिर से अंजीर के पत्तों से नया वस्त्र बनाते हैं। वह केवल दो या तीन माह तक टिकता है, तब जल्द ही वे नया अंगरखा बनाते हैं। वह भी जल्द मुर्झा व सुख जाता है। तब वे नया अंगरखा बनाकर अपनी झूठी धार्मिकता को छुपाते हैं। एसी ही हालत व्यवस्था के अधीन जीने वालों का होता है। उन्हें अपने उद्धार को बचाये रखने के लिए बार बार अंजीर के पत्तों से वस्त्र सिलना पड़ता है। 
व्यवस्था के अधीन लोगों का विश्वास अंजीर के पत्तों के सदृय होता है। वे हमेशा आपको कहते हैं, ‘तुमने पिछले सप्ताह जो पाप किये हैं, क्यों उसकी क्षमा हेतु तुम्हें पश्चाताप करना जरुरी है?’
वे आपके ऊपर जोरों से चिल्लाकर पश्चात्ताप हेतु दबाव डालते हैं। 
व्यवस्था के अधीन जीनेवाला एक व्यक्ति अच्छी तरह से अपनी आवाज को पवित्र होने का नमूना पेश करता है। जैसे ‘हे प्रभु, मैं व्यवस्था के अनुरुप जी नहीं सकता, मुझे क्षमा करें। मैं आपके वायदे को पूरा नहीं कर सका। कृपया प्रभु मुझे एक बार माफ कर दें।’ 
वे कभी भी व्यवस्था के अनुरुप नहीं चल सकते, भले ही वे ऐसा करने का कठोर परिश्रम क्यों न करे। पर वास्तव में परमेश्वर और उसकी व्यवस्था को वे खुद बदल रहे हैं। वे परमेश्वर के सम्मुख विद्रोही बनते जा रहे हैं। 
 
 
सुदाल-बे के सदृश्य
 
क्यों परमेश्वर ने व्यवस्था को हटाया?
क्योंकि पापों से छुटकारा देने में उसका कोई उपयोग नहीं रह गया था।

सुदाल-बे नामक एक युवक था। सन् १९५० में कोरियन युद्ध के समय कुछ कम्यूनिस्ट सैनिकों ने उन्हें सब्त के दिन आंगन को झाडू लगाने का आदेश दिया। उन्होंने उसकी धार्मिकता को परखने व उसे कम्यूनिस्ट बनाने के ध्येय से ऐसा किया। परन्तु, इस धार्मिक युवक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। वे लगातार उसे जोर देते रहे, परन्तु उसने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। 
अन्त में, सैनिकों ने उसे पेड़ से बांध दिया और बन्दूक उसके माथे पर टिका कर उससे कहा, ‘तुम क्या चाहते हो, आंगन में झाड़ू लगाना या फिर मरना?ʼ
जब उस पर निर्णय लेने का दबाव डाला गया, उसने कहा, ‘मैं सब्त के दिन काम करने के बजाय मरना पसंद करूंगा।ʼ 
‘तुमने अपना फैसला कर लिया है और हम तुम्हारे चुनाव का आदर करते हैं।ʼ
और उन्होंने उसे मार डाला। बाद में, कलीसिया के अगुवों ने उसकी मृत्युपरान्त धर्म के प्रति उसके अटल विश्वास और हौसले के लिए उसे डीकन पद की उपाधि से नवाजा। 
उसका अटल विश्वास और हौसला उसके धर्म के प्रति उसके मजूबत इरादों के बावजूद उसका धार्मिक विश्वास भ्रमित था। क्यों न, उसे उन सैनिकों कि आज्ञा मानकर आंगन की सफाई कर, उन्हें सुसमाचार का प्रचार करना चाहिये था। क्यों अपनी ढिठाई के कारण उसे अपनी जांन गवाना पड़ी। क्या परमेश्वर सब्त के दिन काम न करने पर उसकी प्रसंशा करता? नहीं। 
हमें आत्मिक जीवन में आगे जरुर बढ़ना चाहिये। परमेश्वर के सामने हमारे कर्म नहीं, परन्तु हमारा विश्वास महत्वपूर्ण है। कलीसिया के अगुवे सुदाल जैसे लोगों से आंनद मनाना चाहते हैं, ताकि वे अपने संस्था के कठोर नियमों के पालनार्थ अपने पाखण्ड को सदूकी व फरीसियों जैसा दिखा सकें, जिन्होंने यीशु का भी विरोध किया था। 
विधिवाद से ऐसा कुछ भी नहीं है जो हम सीख सकें। परन्तु हमें आत्मिक जीवन के बारे में सिखना चाहिए। हमें विचार करना चाहिये कि क्यों यीशु को बपतिस्मा लेने की और क्रूस पर लहू बहाने की जरुरत पड़ी और साथ ही हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार के स्वभाव पर विचार करना चाहिये। 
हमें पहले उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर ढूंढने चाहिये। तब हमें पूरे संसार में उसके सुसमाचार को फैलाना है ताकि वे नया जन्म पा सकें। हमें अपने जीवन को आत्मिक कार्यों के लिए समर्पित करना चाहिए। 
यदि कोई प्रचारक आपसे कहता है कि तुम्हें भी सुदाल-बे की तरह बनना और सब्त का पालन करना है, तो वह आपको केवल रविवार की आराधना हेतु निमंत्रण दे रहा है। 
यहाँ एक और घटना है जो शायद आपके अतःकरण को प्रकाशित करें। एक ऐसी महिला थी जिसे रविवार को कलीसिया जाने के लिए कठिन चुनौतियों से होकर गुजरना पड़ता था। उसके सास व ससुर मसीही नहीं थे। वे पूरी कोशिश करते थे कि वह कलीसिया न जा सके। वे उसे रविवार को भी काम करने हेतु मजबूर करते थे। वह शनिवार को ही रात्रि में बाहर काम करने चली जाती थी, ताकि परिवार के लोगों को रविवार को कोई तकलीफ न हो। वह चंद्रमा की रोशनी में रात्रि में कार्य कर लेती थी और रविवार को कलीसिया जाया करती थी। 
रविवार को कलीसिया जाना निश्चय ही महत्वपूर्ण है। पर क्या यह काफी है कि रविवार को कलीसिया आकर यह साबित करना कि हम काफी विश्वासयोग्य धर्मी हैं? परन्तु सच्चा विश्वासी वही है जो पानी और आत्मा से जन्मा हो। सच्चा विश्वास तभी जागता है जब कोई व्यक्ति नया जन्म प्राप्त करता है। 
क्या आप व्यवस्था के अधीन जी कर अपने पापों से बच सकते हैं? नही! मेरा मतलब यह कतई नहीं है कि आप व्यवस्था को नजरअंदाज करें, परन्तु हम सब यह जानते हैं कि मानवता के नाते यह कठिन है कि सभी नियमों व उप-नियमों का पूरा पूरा पालन किया जा सके। 
याकूब २:१० में लिखा है कि ‘क्योंकि जो कोई सारी व्यवस्था का पालन करता है, परन्तु एक ही बात में चूक जाए तो वह सब बातों में दोषी ठहरा।ʼ इसलिए पहले यह सोचना है कि आप पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा कैसे नया जन्म प्राप्त कर सकते हैं। तब आप किसी एक कलीसिया में जाइये, वहां आप वह सुसमाचार सुन सकेंगे। नया जन्म पाने के बाद आप एक धर्मी जीवन को जी सकेंगे, तब जब प्रभु आपको पुकारे तो आप उसके सामने आनंदपूर्वक जा सकें। 
किसी गलत कलीसिया में जाकर अपना कीमती समय बर्बाद न करें। गलत तरह से दान देने के द्वारा आप अपना पैसा भी व्यर्थ बर्बाद न करें। झूठे नबी आपको नरक जाने से बचा नहीं सकेंगे। अतः सर्वप्रथम पानी व आत्मा के शुभ संदेश को सुनें व नए जन्म के भागीदारी बनें। 
क्यों यीशु इस संसार में आया, उन कारणों के बारे में सोच विचार करें। यदि हम ने आज्ञाओं के पालन करने से स्वर्ग राज्य में प्रवेश कर लिया होता, तो यीशु को इस संसार में आने की क्या जरुरत थी। उसके आने के बाद से याजकीय पद बदल गया। व्यवस्था व उसके नियम भूतकाल की चीज बन गए। इससे पूर्व कि हम उद्धार पायें, हमारा सोचना था कि हम व्यवस्था के पालन से बचाये जाएंगे। परन्तु यह सच्चे विश्वास की पहचान नहीं है। यीशु ने अपने प्रेम के द्वारा हमें संसार के सब पापों से बचाया। 
यीशु ने अपने प्रेम से, अपने बपतिस्मा के पानी से, अपने लहू और आत्मा से हमें बचाया है। उसने यरदन नदी में बपतिस्मा लेने के द्वारा हमारे उद्धार को परिपूर्ण किया और उसके क्रूस पर लहू बहाने और पुनरुत्थान से यह संभव हुआ। 
परमेश्वर ने पुरानी व्यवस्था व नियमों को दूर हटा दिया क्योंकि अब उनकी कोई उपयोगिता नहीं थी। ‘इसलिए कि व्यवस्था ने किसी बात को सिद्धि नहीं किया; और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम विश्वास के समीप जा सकते हैं। और इसलिए कि मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुईʼ (इब्रानियों ७:१९-२०)। यीशु ने प्रतिज्ञा लेने व अपने बपतिस्मा और लहू के द्वारा हमें अपने सारे पापों से छुटकारा दिया। व्यवस्था के अधीन शुद्ध होना व्यर्थ मृत्यु है। केवल पानी व आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करना ही सच्चा व फलदायी विश्वास है। 
हमारे पास फलदायी विश्वास होना चाहिये। आप सोचते हैं कि आपके प्राण और आत्मा के लिये क्या अच्छा है। क्या यह अच्छा होगा कि आप लगातार कलीसिया जाएं व व्यवस्था के अधीन जीवन जीएं या फिर यह अच्छा होगा कि आप परमेश्वर की कलीसियां में जाएं जहां पानी व आत्मा के नया जन्म का सुसमाचार का प्रचार हो, ताकि आपका नया जन्म हो सके। कौन सा प्रचारक व कौन सी कलीसिया आपके लिए फायदे और आपके प्राण व आत्मा के लिए फायदेमंद होगा? आप इस बारे में विचार करें और वही चुनें जो आपकी आत्मा के लिए अच्छा हो। 
परमेश्वर आपके आत्मा की रक्षा उस प्रचारक के द्वारा करता है जिसके पास पानी व आत्मा के वचन का सुसमाचार है। प्रत्येक जन अपनी आत्मा की जिम्मेदारी स्वयं ले। एक सच्चा व बुद्धिमान विश्वासी वहीं है जो परमेश्वर के वचन द्वारा अपनी आत्मा को सौंपता हो। 
 
 

यीशु शपथ के द्वारा याजक बना

 
क्या लेवी के वंशज शपथ के द्वारा याजक बनते थे?
नहीं, केवल यीशु शपथ के द्वारा याजक बना।

इब्रानियों ७:२०-२१ में इस प्रकार लिखा है, ‘मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई, क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराये, पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्त किया गया जिसने उसके विषय में कहा, प्रभु ने शपथ खाई और वह उस से फिर न पछताएगा कि तू युगानुयुग याजक है।ʼ
भजन संहिता ११०:४ इस प्रकार कहता है : ‘यहोवा ने शपथ खाई और न पछतायेगा। तू मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा का याजक है।ʼ प्रभु ने हमसे प्रतिज्ञा की कि उसने हमसे वाचा बांधी और उसे लिखित शब्दों के द्वारा प्रगट किया। इस प्रकार; मेल्कीसेदेक ‘मैं मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा के लिये याजक हूँ, मेल्कीसेदेक धर्म का राजा और शान्ति का राजकुमार और सर्वदा के लिये याजक था, मैं मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा के लिये याजक हूँ, तुम्हारे उद्धार हेतु।’
यीशु इस संसार में आया और वह एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा (इब्रानियों ७:२२)। उसने बकरों और बैलों के लहू के बदले अपने आपको क्रूस पर चढ़ा कर बलिदान किया। उसने अपने बपतिस्मा और क्रूस पर लहू बहाये जाने के द्वारा हमारे पापों को धो डाला । 
पुराने नियम के समय में जब महायाजक मरता था, तो उसके स्थान पर उसके पुत्र उस याजकीय पद को जब वे ३० वर्ष के होते थे, आगे बढ़ाते थे और जब वह बूढ़ा होता था, तो उसके पुत्र जो ३० वर्ष के होते थे, और उसे वह पद सौंप देता था।
महायाजकों के बहुत से वंशज थे। इसलिए दाऊद ने एक ढ़ाँचा बनाया था जिसमें वे सभी याजक अपने दल के अनुसार बारी-बारी से सेवा करते थे। हारुन के वंशज सब याजक पद पर नियुक्त होते थे। उन्हें अधिकार और जिम्मेदारी थी कि वे अपनी याजकीय पद का निर्वाह करें। जैसे लूका अपने सुसमाचार में कहता है - ‘अबिय्याह के दल में जकरयाह नाम का एक याजक था, और . . .जब वह अपने दल की पारी पर परमेश्वर के सामने याजक का काम करता था।ʼ
हारून महायाजक के वंशज कमजोर और अपूर्ण थे। जब एक महायाजक की मृत्यु हो जाती है, तब क्या होता है? उसके पुत्र उसके स्थान पर महायाजक का पद ले लेता था, परंतु इस प्रकार के बलिदानों से मानव जाति का उद्धार कभी नहीं हो सकता था। मनुष्य के माध्यम से विश्वास कभी भी सिद्ध नहीं हो सकता। 
नए नियम के समय में जब यीशु इस संसार में आए। उसे हमेशा बलिदान चढ़ाने की आवश्यकता नहीं हुई क्योंकि वे हमेशा के लिए जीवित हैं। उसने अपने बपतिस्मा के द्वारा हमारे सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया। उसने अपने आप को बलिदान किया और जो उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें पाप से पूरी रीति से मुक्त करने के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया। 
अब, वह जीवित है और हमारे लिए गवाह होकर परमेश्वर पिता के दाहिने हाथ विराजमान है। ‘हे पिता, ये अभी भी अपूर्ण है, परन्तु इन्होंने मुझ पर विश्वास किया है। बहुत समय पूर्व क्या मैंने इनके पापों को नहीं लिया है?’
यीशु हमारे उद्धार के लिए स्वर्गीय महायाजक हैं। 
पृथ्वी पर के याजक कभी भी सिद्ध नहीं थे। याजक की मृत्यु पश्चात् उनके पुत्र याजकीय पद प्राप्त कर लेते थे। हमारा यीशु सदा के लिए जीवित है। यीशु ने इस संसार में आकर हमारे लिए अनन्त उद्धार के कार्य को पूरा कर दिया है, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के द्वारा बपतिस्मा लिया, और तब हमारे सारे पापों के लिए क्रूस पर अपना लहू बहा दिया। 
‘जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा’ (इब्रानियों १०:१८)। 
यीशु जगत के अंत तक हमारे उद्धार की गवाही हैं। क्या आपका पानी और आत्मा से नया जन्म हुआ है?
‘सो ऐसा महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ होʼ (इब्रानियों ७:२६)। ‘व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया हैʼ (इब्रानियों ७:२८)। 
जो मैं आपसे कहना चाहता हूँ वो यह है की यीशु मसीह, जो निर्दोष है, उसने हमारे पापों को एक बार और हमेशा के लिए अपने बपतिस्मा के पानी और क्रूस पर अपने लहू के द्वारा धो दिया है। उसने हमारे सारे पापों से हमें व्यवस्था के कार्यो से नहीं बचाया, लेकिन हमारे सारे पापों को उठा लिया और हमेशा के लिए उनका दण्ड चुका दिया। 
क्या आप विश्वास करते हैं कि यीशु ने अनन्त उद्धार के द्वारा हमारे सारे पापों से हमें बचा लिया है? यदि आप विश्वास करते हैं, तो आप बच जाते हैं। परन्तु यदि आप विश्वास नहीं करते, तो आपको अभी भी यीशु के अनन्त उद्धार के बारे में बहुत कुछ सिखना है।
सच्चा विश्वास पानी और आत्मा के सुसमाचार से मिलता है, जो पूर्णतः धर्मशास्त्र पर आधारित है। यीशु मसीह, अनन्त स्वर्गीय महायाजक है, यीशु अपने बपतिस्मा और क्रूस पर बहाए लहू के द्वारा हमारा अनन्त उद्धारकर्ता बन गया है। 
 
 
हमें सम्पूर्ण रुप से अपने विश्वास को समझना है
 
यीशु पर विश्वास करने का क्या मतलब है?
यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु पर विश्वास करना।

हमें यह सोचना है कि हम कैसे सही रीति से यीशु पर विश्वास करें और अपने विश्वास को दुरुस्त रखें। हम किस तरह से यीशु पर सही और उचित विश्वास करें? हम यीशु पर उसके बपतिस्मा के सुसमाचार और उसके क्रूस पर बहाये लहू पर विश्वास करने के द्वारा सही और उचित विश्वास कर सकते है। 
उचित और सही विश्वास यह है कि हम यीशु के कार्यों और उसके बपतिस्मा और लहू पर यकीन करें, बिना हमारी गलत धारणाओं को उससे अलग रखते हुए। क्या आप यकीन करते है कि यह सत्य है? आपकी आत्मिक दशा कैसी है? क्या आप अपने कर्मों पर ज्यादा यकीन करते है? 
बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ है मुझे यीशु पर विश्वास रखते हुए, परन्तु मैंने व्यवस्था के अधीन लोगों के कारण दस वर्षों तक काफी दुःख उठाया। अतः मैं उस प्रकार के जीवन से थक चुका था। मैं अपने आपको उस जीवन से जोड़कर याद करना भी नहीं चाहता हूँ। मेरी पत्नी अभी यहाँ पर बैठी है। वह अच्छी तरह से वाकिफ है कि वह कितनी भयानक दशा थी। 
रविवार के दिन मैं कहता था, ‘हनी, आओ हम आज आनंद मनाए।ʼ
‘परन्तु आज रविवार है।ʼ
वह रविवार को कपड़े नहीं धोती थी। एक रविवार को मेरा पतलून फटा हुआ था, परन्तु उसने मुझ से कहां सोमवार तक रूकना पड़ेगा। हकीकत तो यह है कि हम लोग सब्त के दिन की पालना करने में काफी उत्साही होते थे, परन्तु सब्त को सही ढंग से मानना बहुत कठिन था। मैं आज भी उन दिनों को याद करता हूँ। 
प्रिय मित्रो, यीशु पर सही रुप से विश्वास तभी किया जा सकता है जब हम ने उसके बलिदान को जो उसने हमारे पापों हेतु उसके बपतिस्मा और क्रूस पर लहू बहाये जाने के द्वारा प्राप्त हुआ। सही विश्वास यह है कि हमें यीशु के ईश्वरत्व और उसके मनुष्यत्व पर जो कुछ उसने इस संसार में किया और उसके वचनों पर विश्वास करना ही सच्चा विश्वास है। 
‘प्रभु यीशु पर विश्वास करने का मतलब क्या है? अर्थात् उसके बपतिस्मा और उसके लहू पर विश्वास करना ही सही विश्वास है। यह एक बहुत ही सरल उपाय है। हमें बाइबल को गम्भीरता से देखना है और उसके सुसमाचार पर विश्वास करना है। हमें उस पर सही रुप से विश्वास करना है। 
‘धन्यवाद प्रभु जी, मैं अब देखता हूँ कि यह मेरी कोशिशों के द्वारा नहीं हुआ क्योंकि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है (रोमियों ३:२०)। अब मैं सब कुछ समझ चुका। मैं सोचता था कि व्यवस्था अच्छी है क्योंकि यह परमेश्वर की आज्ञा है, मैंने इसके अनुरुप जीने की पूरी कोशिश की। मैं पूरी निष्ठा के साथ अब भी करता हूँ। परन्तु अब मैं देखता हूँ कि मैं गलत था कि मैं व्यवस्था को पूर्ण रुप से पालन कर सकता हूँ। परन्तु मैं कभी भी परमेश्वर के आज्ञाओं का पालन नहीं कर सकता। मैं अब महसूस करता हूँ कि मेरा हृदय पाप व बुराईयों से भरा है। अब मैं समझ गया कि व्यवस्था हमें पाप की पहिचान हेतु दी गई है। ओह! धन्यवाद प्रभु जी, मैं आपकी इच्छा को समझ सका और पूरा प्रयास किया कि व्यवस्था को पालन कर सकूं, पर वह मेरे लिये विद्रोह करने के बराबर था। मैंने पश्चाताप किया कि यीशु ने मेरे लिए पानी से बपतिस्मा लिया व क्रूस पर अपना लहू बहाया। मेरे उद्धार हेतु यही अब मैं विश्वास करता हूँ।
आपको स्पष्ट और शुद्ध रुप से विश्वास करना है। आपको ईश्वर के लिखित वचनों पर विश्वास करना है। यही एकमात्र तरीका है जिससे आप पूर्ण रुप से नया जन्म प्राप्त कर सकते हैं। 
यीशु में विश्वास करना क्या है? क्या यह ऐसा है कि एक समय की अवधि के बाद कुछ बातों पूरा करना? क्या हमारा विश्वास एक धर्म है कि जिसके लिए आपको कार्य करना है? लोगों ने अनेक ईश्वरों को बनाया है, और उन्होंने उन ईश्वरों के लिए उचित धर्मों को भी बनाया है। धर्म एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग लक्ष्य तक पहुँचने का कार्य करते हैं, मनुष्य अच्छे कार्यों से कुछ पाने की इच्छा करते हैं।
तब विश्वास क्या है? इसका अर्थ है परमेश्वर में विश्वास करना और उसकी ओर देखना है। हम यीशु के उद्धार की ओर देखते हैं और इन आशीषों के लिए उसका धन्यवाद करते हैं। यही सच्चा विश्वास है। विश्वास और धर्म में यही अंतर है। एक बार जब आप इन दोनों के बीच में अंतर की पहचान कर लेते हैं, तो आपके १०० प्रतिसत विश्वास की समझ हो जाति है।
धर्म वैज्ञानिक जिनका नया जन्म नहीं हुआ है, वे बताते हैं कि हमें विश्वास करना चाहिए और भक्तिपूर्ण जीवन जीना चाहिए। क्या कोई भक्ति द्वारा धर्म में गहरा विश्वास करने के द्वारा सचमुच सच्चा और निष्ठावान हो सकता है? बेशक हमें अच्छा बनना है। हम जो नया जन्म पाए हुए हैं उनकी अपेक्षा कौन भक्ति पूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकता है?
परन्तु, तथ्य यह है कि वे यह पापियों को बता रहे हैं। एक सामान्य पापी मनुष्य के अंदर बारह प्रकार के पाप होते हैं। ऐसे में कैसे वह भक्तिपूर्ण जीवन जी सकता है? निश्चित रूप से उसे क्या करना है उसका मन पूरी तरह से समझ सकता है, परन्तु उसका हृदय इस कार्य को नहीं कर सकता। जब एक पापी कलीसिया के बाहर कदम रखता है, भक्तिपूर्ण जीवन जीना उसके लिए केवल एक सिद्धांत बन जाता है और उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति उसे पाप की ओर ले जाती है। 
इसलिए हमें अपने हृदयों में निर्णय करना है, चाहे हम व्यवस्था के द्वारा जी रहे हों या यीशु के बपतिस्मा और उसके क्रूस पर बहाए हुए लहू में विश्वास करने के द्वारा एवं स्वर्ग राज्य के अनंत महायाजक के ऊपर विश्वास करने के द्वारा बचाए गए हैं।
स्मरण रखें कि यीशु उन लोगों का सच्चा महायाजक है जो उस पर विश्वास करते हैं। आइये हम सब सच्ची मुक्ति यीशु के बपतिस्मा और उसके क्रूस पर बहाए हुए लहू को जानने और विश्वास करने के द्वारा बच जाएं।
 
 
नया जन्म पाए हुए लोग दुनिया के अंत से नहीं डरते
 
नया जन्म पाए हुए लोग दुनिया के अंत से क्यों नहीं डरते?
क्योंकि पानी और आत्मा के सुसमाचार में उनका विश्वास उन्हें पाप से मुक्त कर देता है।

जब आप सचमुच नया जन्म लेते हैं, आपको दुनिया के आनेवाले अंत से भयभीत नहीं होना है। कोरिया में अनेक मसीहियों ने दावा किया कि २८ अक्टूबर १९९२ में दुनियां का अंत हो जाएगा। वे कहते हैं, यह क्या ही अशांत और नीरस दिन होगा। परन्तु, अंत में उनके सारे दावे गलत हो गए। सचमुच नया जन्म पाये हुए लोग भक्तिभाव से जीते हैं, वे अंतिम क्षण तक सुसमाचार फैलाते रहते हैं। जब कभी दुनिया का अंत आएगा हम सबको पानी और आत्मा के सुसमाचार का प्रचार करना है।
जब दूल्हा आएगा, वह दुल्हिन जिसने सचमुच पानी और आत्मा से नया जन्म लिया है, वे महाआनंद के साथ उससे मिल सकती हैं और कहेंगी, ‘ओह आखिरकार आप आ गए। मेरी देह अभी भी बहुत अपूर्ण है, परन्तु आप मुझे प्रेम करते हैं और मुझे मेरे सारे पापों से बचा लिया है। अतः अब मेरे हृदय में पाप नहीं है। आपका धन्यवाद, प्रभु। आप मेरे उद्धारकर्ता हैं।ʼ
यीशु सब धर्मियों के लिए आत्मिक दूल्हा है। उसने विवाह का स्थान ले लिया है क्योंकि दुल्हिन से दूल्हा प्रेम करता है, किसी दूसरी तरह से नहीं। मैं जानता हूँ कि यह कुछ समय में होने वाला है उसी तरह इस दुनिया में, परन्तु स्वर्ग में यह दूल्हा निर्णय करेगा कि यह विवाह का स्थान लेगा या नहीं। यह दूल्हा यीशु है जो कि अपने प्रेम के और उद्धार देने के आधार पर किसी भी दुल्हिन की परवाह न करते हुए विवाह हेतु चुनेगा। इस तरह विवाह को स्वर्ग में बनाया गया है।
दूल्हा अपनी दुल्हिन के बारे में सब कुछ जानता है। क्योंकि उसकी प्रिय दुल्हिन पापी थी, वह उस पर दया करेगा और बपतिस्मा और क्रूस पर लहू बहाने के द्वारा सारे पापों से उसे बचाएगा।
हमारा यीशु हारून के वंशज की भांति इस दुनियां में नहीं आया। वह इस दुनिया में संभावित बलिदान देने नहीं आया था। वहाँ पर बहुत से लेवी जो हारून के वंशज थे, यह कार्य करते थे।
सचमुच पुराने नियम के बलिदानों का मुख्य चरित्र कोई और नहीं स्वयं यीशु ही था। इसलिए, जब सही चीज इस दुनिया में आयी, तब उसकी परछाई का क्या हुआ? परछाई बाद के लिए बची हुई थी।
जब यीशु इस दुनिया में आया तब, कभी भी उसने हारून के समान बलिदान नहीं चढ़ाया। उसने बपतिस्मा लेने के द्वारा और पापियों के उद्धारक के लिए लहू बहाकर अपने आप को मनुष्यजाति के लिए दे दिया। उसने क्रूस पर उद्धार के कार्य को पूरा कर दिया। 
उनके लिए जो यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसके लहू में विश्वास करते हैं, उनके लिए उद्धार अनिश्चित रूप में नहीं आया। हमारे पापों के लिए यीशु ने अस्पष्ट रूप से प्रायश्चित नहीं किया। ‘मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँʼ (यूहन्ना १४:६)। यीशु इस दुनिया में आए और बपतिस्मा तथा उसकी मृत्यु और उसके पुनरूत्थान के द्वारा हमें बचा लिया है।
 
 
पुराना नियम यीशु का प्रतिरूप है
 
दूसरी वाचा स्थापित करने का क्या कारण था?
क्योंकि पहली वाचा अस्थिर और अनुपयोगी थी।

पुराना नियम, नए नियम की छाया है। हालांकि यीशु ने पुराने नियम के महायाजक की भांति कभी भी बलिदान नहीं चढ़ाया, उसने एक अच्छे याजक एवं अनंत स्वर्गीय याजक जैसे सेवा की। क्योंकि इस संसार के लोग जन्म से ही पापी हैं, वे पापी बन गए और वे कभी भी परमेश्वर की व्यवस्था के द्वारा धर्मी नहीं बन सकते। इसलिए परमेश्वर ने दूसरी वाचा को स्थापित किया।
हमारे स्वर्गीय पिता ने अपने एकलौते पुत्र को इस संसार में भेजा एवं वह हमें उसके बपतिस्मा, लहू और उसके पुनरूत्थान में विश्वास करके वापस आने को कहता है। यही परमेश्वर की दूसरी वाचा है। दूसरी वाचा हमसे मांग करती है कि हम पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करें।
प्रभु हमारे भलाई के कार्यों को करने के लिए नहीं कहता। वह हमें नहीं कहता कि हम उद्धार पाने के लिए कैसा जीवन जीएं। वह हमसे कहते हैं कि हम केवल उसके पुत्र के द्वारा उद्धार में विश्वास करें। वह हमसे कहते हैं कि हम उसके बपतिस्मा और क्रूस पर बहाये गए लहू में सबसे बढ़कर विश्वास करें और हमें हाँ कहना है।
बाइबल में यहूदा का घराना राजकीय घराना था। सुलेमान तक इस्राएल के सभी राजा यहूदा के घराने से थे। राज्य के बटवारे के बाद भी यहूदा के घरानों ने राज्य के दक्षिणी भाग में ५८६ ई.पू. में इसके अंत तक सिंहासन पर अपना कब्जा जमाये रखा। इस प्रकार यहूदा के लोग इस्राएल के लिए खड़े होते हैं। लेवी के घराने के लोग याजक थे। इस्राएल के प्रत्येक गोत्र के पास अलग-अलग कार्य थे। परमेश्वर ने यहूदा के गोत्र से प्रतिज्ञा की थी कि यीशु उनके वंश से आयेगा।
उसने यहूदा के गोत्र से यह वाचा क्यों बांधी? इस वाचा का बांधा जाना वैसा ही है जैसा संसार के सभी लोगों से क्योंकि इस्राएल संपूर्ण संसार के लोगों को दिखाता है। यीशु ने नयी वाचा को अपने बपतिस्मा, क्रूस पर अपनी मृत्यु और अपने पुनरूत्थान के द्वारा पूरा किया जो मनुष्य जाति का उद्धार है।
 
 

मनुष्यजाति के पाप पश्चात्ताप के द्वारा नहीं धोये जा सकते

 
क्या मनुष्य का पाप पश्चात्ताप से धोया जाता है?
नहीं।

यिर्मयाह १७:१ में लिखा गया है कि प्रत्येक मनुष्य का पाप दो स्थानों पर अंकित किया गया है। ‘यहूदा का पाप लोहे की टांकी और हीरे की नोंक से लिखा हुआ है; वह उनके हृदय रूपी पटिया और उनकी वेदियों के सींगों पर भी खुदा हुआ है।ʼ
हमारे पाप हमारे हृदय रूपी पट्टियों पर लिखे हुए हैं। इसी से हम जानते हैं कि हम पापी हैं। यीशु में विश्वास में आने से पहले वह नहीं जानता कि वह पापी है। क्यों? क्योंकि परमेश्वर की व्यवस्था उसके हृदय में है ही नहीं। इसलिए जब कोई यीशु पर विश्वास करता है, वह महसूस करता है कि परमेश्वर के सामने वह पापी है।
कुछ लोग यीशु में विश्वास में आने के दस साल बाद महसूस करते हैं कि वे पापी हैं। हे प्रिय! मैं पापी हूँ। मैंने सोचा था कि मैं बचाया गया हूँ, परन्तु जैसे भी हो मैं आज भी पापी हूँ। यह अनुभूति उस दिन आती है जब हम अपने आपको वास्तव में वैसा ही देखते हैं जैसे हैं। वे दस वर्ष से प्रसन्न थे, परन्तु अचानक सत्य को देखते हैं। क्या आप जानते हैं, क्यों? यह अनुभूति होती है क्योंकि अंततः उनके वास्तविक पाप और अपराध परमेश्वर की व्यवस्था के द्वारा प्रकट होते हैं। ऐसा मनुष्य बिना नया जन्म पाये दस वर्ष से यीशु पर विश्वास रखे हुए हैं।
क्योंकि पापी अपने पाप को अपने हाथ से मिटा नहीं सकता, इसलिए परमेश्वर के सम्मुख पापी बना रहता है। कुछ ५ वर्ष तथा कुछ १० वर्षों में इस अनुभूति तक पहुंच पाते हैं। कुछ और ३० साल बाद, कुछ ५० साल और कुछ लोग तो सच्चाई की अनुभूति में अंत तक नहीं पहुँच पाते। प्रिय परमेश्वर, मैं मेरे मन से आज्ञाओं के सामने अच्छा बना करता था। मैं व्यवस्था का अच्छी रीति से पालन करने में विश्वास करता था, लेकिन अब महसूस करता हूँ कि मैं प्रतिदिन पाप करता हूँ। जैसे कि प्रेरित पौलुस कहता है, ‘मैं स्वयं पहले व्यवस्था बिना पहिले जीवित था, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गयाʼ (रोमियों ७:९)। मैं एक पापी हूँ यद्यपि मैं यीशु में विश्वास करता हूँ।
यह आपका अपना पाप है जो आपको परमेश्वर के वचन के द्वारा जीवन जीने से दूर करता है। आपके पाप आपके हृदय में अंकित हैं। क्योंकि परमेश्वर ने आपके पापों को वहां दर्ज किया है। जब आप प्रार्थना में सिर झुकाते हैं, तो आपके सारे पाप प्रगट हो जाते हैं। ‘आश्चर्य! मैं वही पाप हूँ जो तुमने किए हैं।ʼ
‘परन्तु मैंने २ वर्ष पहले तुम्हारे लिए इसकी कीमत चुका दी है, क्यों आप अचानक अपने आपको फिर से प्रकट कर रहे हो? तुम क्यों नहीं चले गये?ʼ
‘ओह, बुरा मत मानो! मैं तुम्हारे मन में लिखा हुआ हूँ। आप जो भी सोचे, लेकिन आप अभी भी पापी है।ʼ
‘नहीं! नहीं!ʼ
इसलिए, पापी २ वर्ष पहले किए हुए अपने पापों का पश्चात्ताप फिर से करता है। ‘कृपया मुझे माफ कीजिए प्रभुजी! मैं अभी भी सताया जा रहा हूँ जो पाप मैंने २ वर्ष पहले किए हैं। मैंने अपने पापों का पश्चात्ताप किया था लेकिन अब भी पाप मेरे साथ हैं। कृपया मुझे मेरे पापों के लिए क्षमा कीजिए।ʼ
परन्तु, क्या यह पाप पश्चाताप करने से चला जाता है? क्योंकि लोगों के पाप उनके मनों में अंकित हैं, वे पानी और आत्मा के सुसमाचार के बिना नहीं मिटाए जा सकते। केवल पानी और आत्मा के सुसमाचार के द्वारा ही सच्चा प्रायश्चित किया जा सकता है। हम केवल यीशु के सच्चे सुसमाचार में विश्वास करने के द्वारा बचाए जा सकते हैं।
 
 
मैं तुम्हारा उद्धारकर्ता बनूँगा
 
हमें नयी वाचा का प्रतिउत्तर कैसे देना चाहिए?
इसे हमें अपने हृदय में विश्वास करना है और सम्पूर्ण संसार में प्रचार करना है।

हमारे प्रभु जो स्वर्ग में हैं, हमसे एक नई वाचा बांधी है। ‘मैं तुम्हारा उद्धारकर्ता बनूंगा। मैं तुम्हे पानी और लहू के द्वारा दुनिया के सारे पापों से पूर्णतः मुक्त करूंगा। मैं उन्हें जो मुझ पर विश्वास करते हैं निश्चय ही आशीष दूंगा।ʼ
क्या आप परमेश्वर के साथ इस नई वाचा पर विश्वास करते हैं? हम अपने सारे पापों से बचाए जा सकते हैं, और नया जन्म पा सकते हैं। जब हम पानी और लहू के द्वारा उसकी नई वाचा में और उसके उद्धार की सच्चाई में विश्वास करते हैं।
हम डॉक्टर पर विश्वास नहीं करते, यदि वह हमारा सही उपचार नहीं करता है। एक डॉक्टर को चाहिए कि पहले वह अपने मरीज का सही उपचार करे और उसके बाद सही औषधि निर्देश दे। विभिन्न प्रकार की औषधि हैं, लेकिन डॉक्टर को यह जानना है कि कौन सी औषधि बिलकुल उपयुक्त है। एक बार डॉक्टर अपने मरीज का उचित रूप से ईलाज करता है। बहुत सी औषधि हैं जो उन्हें स्वस्थ करती हैं। लेकिन गलत उपचार से अच्छी औषधि भी मरीज के हालत को और खराब कर सकती है।
इसी प्रकार जब आप यीशु पर विश्वास करते हैं, आपको अपनी आत्मिक दशा को परमेश्वर के वचन के अनुसार जानना होगा। जब आप परमेश्वर के वचन के द्वारा अपनी आत्मा को जांचते हैं, तो आप वैसा ही पाते हैं जो आपकी आत्मा की वास्तविक स्थिति है। आत्मिक डॉक्टर अपने मरीजों को बिना किसी अपवाद के स्वस्थ्य कर सकता है। वे सभी नया जन्म पा सकते हैं।
यदि आप कहते हैं, ‘मैं नहीं जानता कि मेरा छुटकारा हुआ है कि नहीं।ʼ इसका अर्थ है कि आपका उद्धार नहीं हुआ है। यदि एक पादरी यीशु का सच्चा शिष्य है, तो उसे अपने विश्वासियों के पाप संबंधी समस्याओं का समाधान करने के योग्य बनना है। तब वह उनके विश्वास संबंधी समस्याओं का समाधान कर उन्हें आत्मिक जीवन में अगुवाई कर सकता है। उसे अपने अनुयायियों की वास्तविक आत्मिक हालात को जानना है।
यीशु इस संसार में दुनिया के सारे पापों को उठाने आया। वह आया और बपतिस्मा लिया और क्रूस पर अपना प्राण दिया। जब उन्होंने संपूर्ण पापों का दाम चुकाया, तो क्या उन्होंने आपके पापों को दूर किया? पानी और आत्मा के वचन ने सभी विश्वासियों के पापों को मिटा दिया है।
सुसमाचार एक विस्फोटक जैसा है। यह ऊंची इमारतों से पहाड़ों तक विस्फोट करता है। यीशु का कार्य ऐसा ही है। उसने उन सबके पापों को मिटा दिया है जो उस पर और पानी और आत्मा के सुसमाचार में विश्वास करते हैं। आईये, अब हम पानी और आत्मा के सुसमाचार को वैसे ही देखें जैसे बाइबल में इसे व्यक्त किया गया है।
 
 

पुराने नियम में हाथों को रखने का सुसमाचार

 
पुराने नियम में हाथों को रखने का क्या उद्देश्य था?
इसका उद्देश्य पापों को पापबलि पर डालना था।

आइये हम छुटकारे के सुसमाचार की सच्चाई को लैव्यव्यवस्था १:३-४ में देखें। ‘यदि वह गाय-बैलों में से होमबलि करे, तो निर्दोष नर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर चढ़ाए, कि यहोवा उसे ग्रहण करे। और वह अपना हाथ होमबलि पशु के सिर पर रखे, और वह उसके लिए प्रायश्चित करने को ग्रहण किया जाएगा।ʼ
यह अनुच्छेद बताता है कि होमबलि मिलापवाले तम्बू के द्वार पर परमेश्वर के सम्मुख, बलिदान पर हाथ रखने के द्वारा चढ़ाया जाता था और बलिदान दोषरहित जीवित पशु होना चाहिए।
पुराना नियम के काल में एक पापी अपने प्रतिदिन के पापों की कीमत के लिए बलिदान पर अपना हाथ रखता था। वह प्रभु के सामने पापबलि का वध करता था और याजक कुछ लहू को लेकर होमबलि कि वेदी के सींगों पर लगाता था। उसके बाद वह बाकी लहू को वेदी के नीचे उण्डेल देता था और इस प्रकार पापी का एक दिन का पाप क्षमा हो जाता था।
एक वर्ष के पाप के लिए लैव्यव्यवस्था १६:६-१० में यों लिखा है, ‘हारून उस पाप बलि के बछड़े को जो उसी के लिये होगा, चढ़ाकर अपने और अपने घराने के लिए प्रायश्चित करे। और उन दोनों बकरों को लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के सामने खड़ा करे; और हारून दोनों बकरों पर चिट्ठियां डाले, एक चिट्ठी यहोवा के लिये और दूसरी चिट्ठी अजाजेल के लिये हो। और जिस बकरे पर यहोवा के नाम की चिट्ठी निकले उसको हारून पापबलि के लिये चढ़ाए; परन्तु जिस बकरे पर अजाजेल के लिये चिट्ठी निकले, वह यहोवा के सामने जीवता खड़ा किया जाए कि उस से प्रायश्चित किया जाए, और वह अजाजेल के लिये जंगल में छोड़ा जाए।’ जैसे बाइबल में वर्णन है, अजाजेल का अर्थ है, ‘बाहर रखना।ʼ अतः एक वर्ष का पाप सातवें महिने के दसवें दिन को क्षमा होता था। 
लैव्यव्यवस्था १६:२९-३० में यह लिखा है, ‘तुम लोगों के लिये यह सदा की विधि होगी कि सातवें महीने के दसवें दिन को तुम अपने जीव को दुःख देना, और उस दिन कोई, चाहे वह तुम्हारे निज देश का हो, चाहे तुम्हारे बीच रहने वाला कोई परदेशी हो, कोई भी किसी प्रकार का काम-काज न करे; क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिये तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित किया जाएगा; और तुम अपने सब पापों से यहोवा के सम्मुख पवित्र ठहरोगे।’
यह वही दिन है जिस दिन इस्राएली एक वर्ष के पाप का प्रायश्चित करते थे। यह कैसे हो सका? पहले, महायाजक हारून को बलि के लिए उपस्थित होना पड़ता था। इस्राएलियों का प्रतिनिधि कौन था? परमेश्वर ने हारून और उसकी संतानों को महायाजक नियुक्त किया।
हारून अपने और अपने घराने के प्रायश्चित के लिए बैल की बलि चढ़ाता था। वह बैल का बलिदान करता था और कुछ लहू को सात बार दया आसन के सामने छिड़कता थ। उसे सबसे पहले अपने और अपने घराने के लिए प्रायश्चित करना पड़ता था।
प्रायश्चित का अर्थ एक व्यक्ति के पाप को पापबलि पर स्थानांतरित करना है और वह पापबलि को पापी व्यक्ति की जगह बलि चढाते थे। पापी को ही मरना चाहिए, लेकिन पापबलि के ऊपर पापों को स्थानांतरित कर उसके स्थान पर बलि चढ़ाया जाता था।
अपने और अपने घराने के पाप के प्रायश्चित के बाद वह एक बकरे को प्रभु के सामने चढ़ाता था, तथा दूसरे को बलि के बकरे के रूप में जंगल में इस्राएलियों की उपस्थिति में छोड़ देता था।
एक बकरे को पापबलि के रूप में चढ़ाया जाता था। पापबलि पर हारून हाथ रखकर यह अंगीकार करता था, ‘हे परमेश्वर आपकी इस्राएली प्रजा ने दस आज्ञाओं का एवं ६१३ नियमों का उल्लंघन किया है। इस्राएली पापी हो गये हैं। अब मैं इस बकरे पर अपना हाथ रखकर हमारे वर्ष भर के संपूर्ण पापों को स्थानांतरित करता हूँ।ʼ
वह बकरे के गले को काटता था और तम्बू के अंदर परमपवित्र स्थान में उसके लहू के साथ प्रवेश करता था। उसके पश्चात् वह कुछ लहू लेकर दया आसन के सामने सात बार छिड़कता था।
परमपवित्र स्थान के अंदर वाचा का संदूक होता था। इसके ढक्कन को दया आसन कहा जाता था और इसमें पत्थर की दो वाचा की पट्टियां, मन्ने से भरा हुआ सोने का पात्र और हारून की छड़ी जिसमें फूल आ गये थे।
हारून की छड़ी पुनरूत्थान, पत्थर की दो वाचा की पट्टियां उसके न्याय और मन्ने से भरा सोने का पात्र उसके जीवन के वचन का प्रतीक है।
वाचा के संदूक के ऊपर एक ढक्कन होता है। दया आसन के सामने सात बार लहू को छिड़का जाता था। जैसे कि महायाजक के वस्त्र के छोर पर सोने की घंटी बंधी होती थी। उसे लहू के छिड़के जाने के समय बजती थी।
लैव्यव्यवस्था १६:१४-१५ में इस प्रकार लिखा है, ‘तब वह उस बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर पूरब की ओर प्रायश्चित के ढकने के ऊपर अपनी उंगली से छिड़के, और फिर उस लहू में से कुछ उंगली के द्वारा उस ढकने के सामने भी सात बार छिड़क दे। फिर वह उस पापबलि के बकरे को जो साधारण जनता के लिये होगा, बलिदान करके उसके लोहू को बीच वाले पर्दे के भीतर ले आए, और जिस प्रकार बछड़े के लोहू से उसने किया था, ठीक वैसा ही वह बकरे के लोहू से भी करे, अर्थात् उसको प्रायश्चित के ढकने के ऊपर और उसके सामने छिड़के।ʼ
जब-जब वह बछड़े के लहू को छिड़कता था, तब-तब घंटी बजाता था और सारे इस्राएली जो बाहर एकत्र रहते थे, घंटी की आवाज सुनते थे। जब महायाजक द्वारा उनके पापों का प्रायश्चित का कार्य समाप्त हो जाता था। घंटी की आवाज से यह समझा जाता था कि उनके पाप क्षमा हो गये। यह सभी इस्राएली लोगों के लिए आशीष की ध्वनि थी।
जब सात बार घंटी बज जाती थी, तो वे कहते थे, ‘अब मैं चिंता मुक्त हो गया हूँ। मैं साल भर के पापों की चिन्ता में था, अब मैं आजादी महसूस करता हूँ।ʼ और लोग अपने पापों से मुक्त होकर अपने घर चले जाते थे। उस समय की घंटी की आवाज वैसी ही है, जैसे पानी और आत्मा का सुसमाचार यीशु का बपतिस्मा हमारे उद्धार के लिए है।
जब हम पानी और आत्मा के छुटकारे का सुसमाचार सुनते हैं और अपने हृदय से विश्वास करते और अपने मुंह से अंगीकार करते हैं, तो यही पानी और आत्मा का संपूर्ण सुसमाचार है। जब घंटी सात बार बज जाती थी, तो इस्राएलियों के वर्ष भर के सभी पाप माफ हो जाते थे। उनके पाप परमेश्वर के सामने से धुल जाते थे।
इस्राएलियों के लिए बकरे का बलिदान चढ़ाने के बाद महायाजक तम्बू के बाहर प्रतीक्षा करते हुए लोगों के पास चला जाता था। उनके देखते हुए महायाजक हारून उस दूसरे बकरे के सिर पर अपना हाथ रखता था।
लैव्यव्यवस्था १६:२१-२२ पद में ‘और हारून अपने दोनों हाथों को जीवित बकरे के सिर पर रखकर इस्राएलियों के सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, निदान सारे पापों को अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिर पर डाल कर उसको किसी मनुष्य के हाथ जो इस काम के लिए तैयार हो जंगल में भेज कर छुड़वा दे। और वह बकरा उनके सब अधर्म के कामों को अपने ऊपर लादे हुए किसी निराले देश में उठा ले जाएगा; इसलिये वह मनुष्य उस बकरे को जंगल में छोड़ दे।’
महायाजक हारून, दूसरे बकरे के ऊपर अपने हाथों को रखता था और परमेश्वर के सामने इस्राएलियों के साल भर के पापों का अंगीकार करता था। ‘हे परमेश्वर इस्राएलियों ने आपके सामने पाप किये हैं। उन्होंने व्यवस्था की दस आज्ञाओं और सभी ६१३ नियमों का उल्लंघन किया है। हे परमेश्वर मैं इस्राएलियों के साल भर के सभी पापों को इस बकरे के सिर पर स्थानांतरित करता हूँ।’
यिर्मयाह १७:१ के अनुसार, पाप दो स्थानों में अंकित है। पहला न्याय की किताब में, दूसरा उनके हृदय की पट्टियों पर।
इसलिए यदि लोगों को अपने पापों का प्रायश्चित करना है, तो उनके पापों को न्याय की किताब एवं उनके हृदय के पट्टियों से मिटाना है। प्रायश्चित के दिन एक बकरा न्याय की किताब में लिखे हुए पापों के लिए तथा दूसरा हृदय की पट्टियों पर खोदे गए पापों के लिए होता था।
 
पुराने नियम के बलिदान की प्रथा द्वारा परमेश्वर इस्राएलियों को क्या दर्शाता था?
यह कि उद्धारकर्ता आयेगा और एक ही बार में सभी के पापों को सही रीति से मिटा देगा

बकरे के सिर पर हाथ रखने के द्वारा, महायाजक लोगों को दिखाता है कि उनके साल भर के पाप बकरे के ऊपर चले गए है। जब बकरे के सिर पर पाप डाल दिए जाते थे, तो एक नियुक्त व्यक्ति बकरे को जंगल में छोड़ देता था।
फलीस्तीन की जमीन मरूभूमि है। वह बकरा जो इस्राएलियों के वार्षिक पापों को अपने ऊपर उठाता था, वह एक व्यक्ति के द्वारा जंगल के ऐसी जगह में जहाँ न ही पानी हो, न ही घास, छोड़ दिया जाता था। लोग खड़े होकर बकरे को जंगल की ओर जाते देखते थे।
वे अपने आप से कहते थे, ‘मुझे मरना चाहिए था, लेकिन बलि का बकरा मेरे बदले में मरा। पाप की मजदूरी मृत्यु है। लेकिन बकरा मेरे बदले में मरा। बलि के बकरे आपका धन्यवाद। आपकी मृत्यु का अर्थ है, मैं जी सकता हूँ। इस प्रकार बकरे को जंगल में दूर छोड़ दिया जाता था और इस्राएली अपने वार्षिक पापों को भूल जाते थे।
जब आपके हृदय का पाप, पापबलि पर डाल दिया जाता है, तो आप शुद्ध किये जाते हैं। यह आसान है। सच्चाई हमेशा आसान होती है, जब हम इसे समझते हैं।
बकरा क्षितिज में अदृश्य हो जाता था। आदमी जो उसे छोड़ने जाता था, अकेला छोड़कर वापस आ जाता था। इस्राएलियों का वर्ष भर का पाप दूर हो जाता था। बकरा जंगल में बिना पानी व घास के इस्राएलियों के पापों के लिए मर जाता था।
पाप की मजदूरी मृत्यु है, और परमेश्वर का न्याय तय किया गया है। परमेश्वर बकरे की बलि देता था जिससे इस्राएली जीवित रह सकें। इस्राएलियों का सारे एक वर्ष का पाप धोकर साफ कर दिया जाता था।
जैसे पुराना नियम में एक दिन का पाप और एक वर्ष का पाप इस प्रकार से क्षमा किया जाता था। वैसे ही परमेश्वर की वाचा है कि हमारे पाप एक ही बार में सबके लिए क्षमा किये जायेंगे। यह उसकी वाचा है कि वह ‘मसीहाʼ को भेजेगा और वह हमें हमारे जीवन भर के पाप से छुड़ायेगा। यह वाचा यीशु के बपतिस्मा के द्वारा आगे जाती है।
 
 
नये नियम में पानी और आत्मा से नया जन्म प्राप्त करना
 
क्यों, यीशु ने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा लिया?
जगत के सारे पापों को अपने ऊपर उठाकर धार्मिकता को पूरा करने के लिये। नए नियम में यीशु का बपतिस्मा पुराने नियम में हाथों को रखने जैसा ही है।

आइये मत्ती ३:१३-१५ पढ़ें, ‘उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे पर यूहन्ना के पास उस से बपतिस्मा लेने आया। परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, कि मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है? यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है, तब उस ने उसकी बात मान ली।’ 
यीशु ने यरदन नदी में जाकर यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा लिया और सारी धार्मिकता को पूरा किया। उसका बपतिस्मा यूहन्ना द्वारा हुआ। यूहन्ना जो स्त्रियों से उत्पन्न होनेवालों में सबसे बड़ा है।
मत्ती ११:११-१२ कहता है, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ जो स्त्रियों से जन्में हैं, उनमें से यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बड़ा कोई नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उस से बड़ा है।’
यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले को मनुष्यों के प्रतिनिधि के रूप में चुना गया और यीशु से छः माह पहले संसार में भेजा गया था। वह हारून के वंश का और अंतिम याजक था।
जब यीशु उसके पास आया तब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने कहा, ‘मुझे तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?’
‘अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धार्मिकता को पूरा करना उचित है, तब उस ने उस की बात मान ली।’ उसका उद्देश्य मानव जाति को पापों से क्षमा देना था जिससे वे ईश्वर की संतान बन जायें। यीशु ने यूहन्ना से कहा, ‘हमें पानी और आत्मा के द्वारा नये जन्म के सुसमाचार को पूरा करना है, इसलिए मुझे अभी बपतिस्मा दे।ʼ
यूहन्ना ने यीशु को बपतिस्मा दिया। यीशु को संसार के पापों को उठाने के लिए बपतिस्मा लेना उचित था। क्योंकि उसने सही रीति से बपतिस्मा लिया, हम लोग अपने सारे पापों से उचित रीति से बचाये गए हैं। यीशु का बपतिस्मा इसीलिए हुआ ताकि हमारे पाप उसके ऊपर डाल दिये जायें।
यीशु इस संसार में आया और उसका बपतिस्मा तीस वर्ष की आयु में हुआ था। यह उसकी प्रथम सेवकाई थी। यीशु ने संसार के सारे पापों को उठाकर सारी धार्मिकता को पूरा किया, इसलिए वह सब लोगों को पवित्र करता है।
यीशु इस संसार में आया और उचित रीति से बपतिस्मा लिया, ताकि हमें सारे पापों से छुड़ाये। ‘इस प्रकार’ सम्पूर्ण धार्मिकता पूरी हुई।
परमेश्वर ने कहा, ‘यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँʼ (मत्तीः ३:१७)। यीशु मसीह जानता था कि वह मनुष्य जाति के पापों को लेकर क्रूस पर मारा जायेगा, परन्तु वह पिता की इच्छा का आज्ञाकारी बना रहा, यह कहते हुए कि ‘तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही होʼ (मत्ती २६:३९)। पिता की इच्छा थी कि मनुष्य जाति के सभी पापों को क्षमा कर संसार के सभी लोगों का उद्धार करे।
अतः यीशु ने आज्ञाकारी पुत्र बनकर अपने पिता की आज्ञा को मानकर यूहन्ना बपतिस्मादाता के द्वारा बपतिस्मा लिया।
यूहन्ना १:२९ में, ‘दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेमना है, जो जगत का पाप उठा ले जाता है।‘यीशु ने गुलगुता में क्रूस पर प्राण देकर सभी पापों को अपने ऊपर उठा लिया। ‘देखो! यह परमेश्वर का मेमना जो जगत का पाप उठा ले जाता है।ʼ यूहन्ना बपतिस्मादाता ने यह गवाही दी।
क्या आप में पाप है या नहीं? क्या आप एक धर्मी व्यक्ति हैं या एक पापी? सच्चाई यह है कि यीशु संसार के पापों को उठाकर हम सब के लिए क्रूस पर बलिदान हो गया।
 
कब इस संसार के सारे पाप यीशु के ऊपर डाल दिये गये।
जब यीशु ने यरदन नदी में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से बपतिस्मा लिया, उसी समय हमारे पापों को अपने ऊपर उठा लिया।

जब हम इस संसार में पैदा होते हैं, तो हम १ से १० वर्ष के आयु में भी पाप करते हैं। लेकिन यीशु ने उन पापों को भी अपने ऊपर उठा लिया। हम ११ से २० वर्ष की आयु में भी पाप करते हैं, उसने उन्हें भी उठा लिया। 
हम २१ से ४५ वर्ष के बीच भी पाप करते हैं। उसने उन सभी को जैसे वह हैं वैसा ही उठा लिया। वह संसार के सभी पापों को उठाकर क्रूस पर चढ़ गया। हम अपने जन्म के दिन से लेकर मृत्यु के दिन तक पाप करते हैं। लेकिन उसने सब को उठा लिया।
‘देखो! परमेश्वर का मेमना जो जगत का पाप उठा ले जाता है।ʼ सब पाप, पहले मनुष्य आदम से लेकर अंतिम मनुष्य जो इस संसार में पैदा होगा, चाहे वह जहाँ कहीं का भी हो, उसने उन सबका पाप उठा लिया। उसने चुनाव नहीं किया कि किसका पाप अपने ऊपर उठाऊं। 
उसने हम में से कुछ लोगों को प्रेम करने का निर्णय नहीं लिया। वह शरीर में पैदा हुआ और सारे संसार के सभी पापों को उठाकर क्रूस पर बलिदान हो गया। उसने हम सबका न्याय अपने ऊपर ले लिया और संसार के सभी पापों को हमेशा के लिए मिटा दिया।
कोई भी व्यक्ति उसके उद्धार से वंचित नहीं किया गया। ‘संसार के सब पापों काʼ में हमारे सभी पाप सम्मिलित हैं। यीशु ने उन सबको उठा लिया।
अपने बपतिस्मा और लहू से उसने संसार के सब पापों को शुद्ध किया है। उसने अपने बपतिस्मा के द्वारा उसे उठा लिया और हमारे बदले में न्याय चुका दिया। क्रूस पर मरने से पहले उसने कहा, ‘पूरा हुआʼ (यूहन्ना १९:३०)। जिसका अर्थ है मनुष्य जाति के लिए उद्धार का कार्य पूरा हो गया।
क्यों यीशु मसीह क्रूस पर बलिदान हुए? क्योंकि शरीर का जीवन लहू में है, और लहू द्वारा ही प्रायश्चित होता है (लैव्यव्यवस्था १७:११)। यीशु ने बपतिस्मा क्यों लिया? क्योंकि वह संसार के सभी पापों को उठाना चाहता था।
‘इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका है; इसलिये कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो। उसने कहा, ‘मैं प्यासा हूँ‘ (यूहन्ना १९:२८)। पुराना नियम में परमेश्वर की सभी वाचाएं उसके यरदन नदी में बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु द्वारा पूरा किया गया है, यह जानकर यीशु ने अपने प्राण त्यागे।
यीशु यह जानते हुए कि उद्धार का कार्य उसके द्वारा पूरा हो गया है, कहा ‘यह पूरा हुआ।ʼ और वह क्रूस पर मर गया। उसने हमें पवित्र किया और तीन दिन के बाद मुर्दों में से जी उठकर स्वर्ग पर उठा लिया गया, जहाँ वह परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठा हुआ है। 
यीशु का बपतिस्मा और क्रूस पर मृत्यु द्वारा सभी पापों को धोना ही पानी और आत्मा से नया जन्म पाने का धन्य सुसमाचार है। इस पर विश्वास कीजिए, आपके सब पाप क्षमा किये जायेंगे।
हम हर दिन पश्चात्ताप करके अपने पापों का प्रायश्चित कर सकते हैं। छुटकारा सभी के लिए एक ही बार यीशु का बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु के द्वारा उपलब्ध है। ‘जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा’ (इब्रानियों १०:१८)। 
अब हमें यीशु के बपतिस्मा और क्रूस के बलिदान के द्वारा छुटकारे पर विश्वास करना है। विश्वास कीजिए और आप का उद्धार हो जायेगा।
रोमियों ५:१-२ कहता है, ‘सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें। जिसके द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक जिसमें हम बने हैं, हमारी पहुँच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें।ʼ
धर्मी ठहरने का और कोई रास्ता नहीं है, केवल पानी और आत्मा के धन्य सुसमाचार पर विश्वास करना।
 
 
परमेश्वर की व्यवस्था का उद्देश्य
 
क्या हम व्यवस्था के द्वारा पवित्र हो सकते हैं?
नहीं, हम नहीं हो सकते, व्यवस्था हमें केवल पापों की जानकारी देती है।

इब्रानियों १०:९ यह लिखा है, ‘फिर यह भी कहता है, कि देख मैं आ गया हूँ, ताकि तेरी इच्छा पूरी करूँ; निदान, वह पहले को उठा देता है, ताकि दूसरे को नियुक्त करे।ʼ हम व्यवस्था के द्वारा पवित्र नहीं हो सकते। यह केवल हमें पापी बनाती है। पवित्र ठहरने के लिए परमेश्वर का अर्थ यह नहीं है कि व्यवस्था का पालन किया जाये।
रोमियों ३:२० कहता है, ‘व्यवस्था के द्वारा पाप की पहचान होती है।ʼ अब्राहम से वाचा बांधने के ४३० साल बाद परमेश्वर ने मूसा के द्वारा इस्राएलियों को व्यवस्था दी गई। व्यवस्था इसलिए दी गई कि वे जानें कि परमेश्वर के सम्मुख पाप क्या हैं। परमेश्वर की व्यवस्था की अनुपस्थिति में मनुष्य को पाप का कोई ज्ञान नहीं था। परमेश्वर ने व्यवस्था को इसलिए दिया ताकि लोग पाप को समझ सकें। 
अतः व्यवस्था का उद्देश्य केवल यह है कि हम जान सकें कि परमेश्वर के सामने में हम सब पापी हैं। इस ज्ञान के द्वारा हमें यीशु के पास पानी और आत्मा के द्वारा नया जन्म पाने के सुसमाचार के द्वारा वापस आना है। यही व्यवस्था का उद्देश्य है जो परमेश्वर ने हमें दिया है।
 
 
यीशु परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने आया
 
हमें परमेश्वर के सामने क्या करना है?
हमें यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के छुटकारे पर विश्वास करना है।

‘मैं आ गया हूँ, ताकि तेरी इच्छा पूरी करूँ; निदान, वह पहले को उठा देता है, ताकि दूसरे को नियुक्त करेʼ (इब्रानियों १०:९)। क्योंकि हम व्यवस्था के द्वारा पवित्र नहीं बन सकते, परमेश्वर ने हमें छुड़ाया ही नहीं, लेकिन पूर्ण छुटकारा भी दिया है। परमेश्वर ने हमें अपने प्रेम और न्याय से बचा लिया।
‘उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह में एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं। और हर एक याजक तो खड़े होकर प्रतिदिन सेवा करता है, और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापों को कभी भी दूर नहीं कर सकते; बार बार चढ़ाता है। पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा।’ (इब्रानियों १०:१०-१२)।
वह परमेश्वर के दाहिने हाथ जा बैठा क्योंकि उसका उद्धार का कार्य पूर्ण हो चुका और उसके पास कुछ नहीं है जो उसे करना है। उसे न तो बपतिस्मा लेना है, न ही हमें बचाने के लिए अपने आप को फिर से बलिदान चढ़ाना है।
अब संसार के सभी पाप धो दिए गए हैं, अब उसको जो उस पर विश्वास करते हैं, केवल अनंत जीवन देता है। अब वे जो पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करते हैं, उन्हें अपनी आत्मा की मुहर देता है।
यीशु इस संसार में आया और संसार के सभी पापों को अपने ऊपर उठाया और क्रूस पर मर गया। इस प्रकार उसने अपना कार्य पूरा किया। अब प्रभु का कार्य समाप्त हो गया वह पिता के दाहिने हाथ में जा बैठा है। 
हमें अपने यीशु पर विश्वास करना है कि उसने हमें अन्तकाल तक के पापों से बचाया है। उसने अपने लहू और बपतिस्मा के द्वारा हमें हमेशा के लिए सिद्ध किया है।
 
 
वो जो परमेश्वर के बैरी बनते हैं
 
परमेश्वर के बैरी कौन हैं?
वे जो यीशु में विश्वास करते हैं, लेकिन जिनके हृदयों में पाप है।

इब्रानियों १०:१२-१४ में प्रभु कहता है, ‘पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा। और उसी समय से इसकी बाट जोह रहा है, कि उसके बैरी उसके पांवों के नीचे की पीढ़ी बनें। क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है।’ 
उसके बैरी अब भी कहते हैं, ‘परमेश्वर, कृपया मेरे पापों को क्षमा करें।ʼ शैतान और उसके अनुयायी पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास नहीं करते और लगातार माफी मांगते रहते हैं।
हमारा प्रभु परमेश्वर अभी उनका न्याय नहीं करेगा। लेकिन जब यीशु दुबारा आयेगा, उस दिन वे दोषी ठहराये जायेंगे और हमेशा के लिए नरक का दण्ड पायेंगे। जब तक उनके पास पश्चाताप करके छुटकारा पाकर धर्मी बनने की आशा है, परमेश्वर सह सकता है।
हमारे यीशु हमारे सब पापों को अपने ऊपर उठाकर क्रूस पर चढ़ गये, उनके लिए जो उस पर विश्वास करते हैं। यीशु दूसरी बार उन सबके लिए जो उस पर विश्वास करते हैं, छुटकारा देगा। ‘हे प्रभु कृपया जल्दी आइये।ʼ वह दूसरी बार जो निर्दोष हैं, उन्हें अपने साथ ले जायेगा और वे स्वर्ग में हमेशा राज्य करेंगे।
जो लोग पापी बने ही रहेंगे, जब तक प्रभु आयेगा तो उन्हें स्वर्ग में कोई स्थान नहीं मिलेगा। अंतिम दिन उनका न्याय किया जायेगा और वे नरक की आग में डाल दिये जायेंगे। यह दण्ड उन लोगों का इंतजार कर रहा है जो पानी और आत्मा द्वारा नये जन्म पर विश्वास करने से इंकार करते हैं।
हमारे यीशु उनको जो असत्य पर विश्वास करते हैं, अपना बैरी कहता है। इस कारण हमें असत्य से लड़ना है। इसलिए हमें पानी और आत्मा के द्वारा नया जन्म पाने के धन्य सुसमाचार पर विश्वास करना है।
 
 
हमें पानी और आत्मा के सुसमाचार पर विश्वास करना ही है।
 
क्या, अब हमें अपने पापों के लिए प्रायश्चित करने की आवश्यकता है या हमारा करजा (पाप) पूरी रीति से चुका दिए गए हैं?
नहीं, बिल्कुल नहीं।

इब्रानियों १०:१५-१६ कहता है, ‘पवित्र आत्मा भी हमें यही गवाही देता है; क्योंकि उसने पहले कहा था कि प्रभु कहता है; कि जो वाचा मैं उन दिनों के बाद उनसे बान्धूंगा, वह यह है, कि मैं अपनी व्यवस्थाओं को उन के हृदय पर लिखूंगा और मैं उन के विवेक में डालूंगा।’ 
हमारे पापों को मिटाने के बाद परमेश्वर ने कहा, जो वाचा मैं उन दिनों के बाद उन से बान्धूंगा वह यह है, यह वाचा क्या है? ‘कि मैं अपनी व्यवस्थाओं को उनके हृदय में लिखूंगा और उनके विवेक में डालूंगा।ʼ हमने पहले उसकी व्यवस्था के अनुसार कानूनी जीवन व्यतीत करने का प्रयास किया, लेकिन हम व्यवस्था के द्वारा पूरी रीति से उद्धार नहीं पा सके।
बाद में हम जान पाए कि यीशु पहले से ही उन सबका उद्धार कर चुका है जो पानी और आत्मा के धन्य सुसमाचार पर विश्वास करते हैं। जो कोई भी यीशु के बपतिस्मा और लहू पर विश्वास करते हैं, वो छुटकारा पाते हैं।
यीशु उद्धार का प्रभु है। ‘स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सकेंʼ (प्रेरितों ४:१२)। यीशु हमारे उद्धारकर्ता के रूप में दुनिया में आया क्योंकि हम अपने कर्मों के द्वारा नहीं बच सकते हैं। यीशु ने हमें बचाया और हमारे हृदय की पट्टियों पर लिख दिया है कि उसने अपने प्रेम के विधान और उद्धार से हमें बचाया है।
‘मैं उनके पापों को, और उनके अधर्म के कामों को फिर कभी स्मरण नहीं करूंगा। और जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा’ (इब्रानियों १०:१७-१८)।
अब वह हमारे अधर्म के कामों को फिर कभी स्मरण नहीं करेगा। अब उसने हमारे सारे पापों को हर लिया है, हम विश्वासियों के पास और कुछ बाकी नहीं है जिसके लिए क्षमा किया जाये। हमारे कर्ज पूरी रीति से चुका दिये गये हैं, और कुछ भी शेष नहीं रहा जिसका पुनः भुगतान किया जाए। यीशु की सेवकाई में विश्वास करने के द्वारा लोग बच जाते हैं जो हमें उसके बपतिस्मा और क्रूस पर बहाए गए लहू के द्वारा बचाता है।
अब हमें यीशु के पानी और लहू में विश्वास करना है, ‘तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगाʼ (यूहन्ना ८:३२)। इसलिए यीशु के उद्धार में विश्वास करें। उद्धार पाना श्वास लेने की अपेक्षा सरल है। आपको केवल जैसा वह है, वैसा ही विश्वास करना है। परमेश्वर के वचन पर विश्वास करना ही उद्धार है।
विश्वास कीजिए कि यीशु हमारा उद्धारकर्ता है (यीशु के बपतिस्मा और क्रूस पर उसकी मृत्यु में), और यह विश्वास करें कि उद्धार आपका है। अपने विचारों का इनकार करें और केवल यीशु के उद्धार में विश्वास करें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप यीशु पर सचमुच विश्वास करें और वह अपने साथ अनन्त जीवन की ओर आपकी अगुवाई करने के लिए तैयार है।